पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने ईशनिंदा के एक मामले में दोषी ठहराये जाने के खिलाफ एक ईसाई महिला की याचिका स्वीकार करते हुए उनकी फांसी की सजा पर रोक लगा दी। इस मामले से इस विवादित कानून को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आक्रोश पैदा हो गया था।
तीन न्यायाधीशों के एक पैनल ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की लाहौर रजिस्ट्री में मामले की सुनवाई की और आसिया बीबी के वकील की शुरुआती दलीलों के बाद उनकी सजा पर रोक लगाते हुए मामले की पूर्ण सुनवाई के लिए याचिका स्वीकार कर ली।
खेत में काम करते समय पानी के एक कटोरे को लेकर पांच बच्चों की मां बीबी का एक साथी मुस्लिम महिला से झगड़ा हो गया था। बीबी पर तीखी बहस के दौरान ईशनिंदा से जुड़े शब्दों का इस्तेमाल करने का आरोप है जिससे उसने इंकार किया।
उसे वर्ष 2009 में कथित तौर पर ईशनिंदा करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था और 2010 में दोषी ठहराया गया था। उसकी फांसी की सजा को लाहौर हाई कोर्ट ने बरकरार रखा जिसे उसने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। हालांकि फांसी की सजा के अमल के लिए कोई तारीख तय नहीं की गई थी।
सैन्य शासक जिया उल हक ने 1980 के दशक में ईशनिंदा कानून बनाया था और इस कानून के तहत दोषी ठहराये गये लोगों को कट्टरपंथी भी निशाना बनाते हैं।