हाल में अफगानिस्तान की सीमा से सटे पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के बाजौर में आत्मघाती बम विस्फोट में 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। इस हमले में जमीयत उलेमा इस्लाम (जेयूआइ-एफ) के समर्थकों को निशाना बनाया गया। जेयूआइ-एफ के प्रमुख ने इस हमले की निंदा करते हुए कहा कि यह खुफिया बल की नाकामी है। हमारे जख्मों को कब भरा जाएगा? सरकार कब ऐसी व्यवस्था बनाएगी, जिससे हमारी आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी?
बाजौर में हुए विस्फोट की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट मिलिशिया के स्थानीय सहयोगी ने ली है। इस्लामिक स्टेट खुरासान (आइएस-के) का आरोप है कि जेयूआइ-एफ पाखंडी समूह है। यह सिर्फ इस्लामिक स्टेट ही नहीं, बल्कि अन्य चरमपंथी समूह भी पाकिस्तान में अपने राजनीतिक दुश्मनों को निशाना बनाने के लिए आत्मघाती कदम उठा रहे हैं।
वर्ष 2007 में आतंकी समूह टीटीपी का हुआ था गठन
वर्ष 2007 में आतंकी समूह टीटीपी का गठन हुआ था। तब से यह आत्मघाती हमलों को अंजाम दे रहा है। टीटीपी के अलावा आइएस-के उत्तरी वजीरिस्तान स्थित कमांडर हाफिज गुल बहादुर का गुट और हाल ही में गठित तहरीक-ए-जिहाद पाकिस्तान, आत्मघाती हमलों में शामिल है। बलूच लिबरेशन आर्मी ने भी आत्मघाती विस्फोट को युद्ध रणनीति के रूप में अपनाया है।
इस्लामाबाद स्थित थिंक-टैंक, ‘पाकिस्तान इंस्टीट्यूट फार कांफ्लिक्ट एंड सिक्योरिटी स्टडीज’ की रपट के अनुसार, देश में 2023 की पहली छमाही में एक दर्जन से अधिक आत्मघाती हमले हुए हैं। इसमें पेशावर की एक मस्जिद में हुआ विस्फोट भी शामिल है, जिसमें 100 से अधिक लोग मारे गए थे। इसी तरह 18 जुलाई को पेशावर में हुए आत्मघाती विस्फोट में आठ लोग घायल हो गए थे। 20 जुलाई को खैबर जिले में हुए आत्मघाती विस्फोट में चार पुलिस अधिकारियों की मौत हो गई थी।
पाकिस्तान में 1990 के दशक के मध्य से कई आत्मघाती हमले हुए हैं। हालांकि उस दौरान अधिकांश बम विस्फोट की घटना को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों और सांप्रदायिक संगठनों ने अंजाम दिया था। नवंबर 1995 में आतंकवादियों ने इस्लामाबाद में मिस्र के दूतावास को निशाना बनाया था, जिसमें 17 लोग मारे गए थे। मई 2002 में कराची में एक बस में आत्मघाती विस्फोट में 11 फ्रांसीसी इंजीनियरों सहित 14 लोगों की मौत हो गई थी। जून 2002 और मार्च 2006 में कराची में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास पर भी आत्मघाती हमले हुए थे।
वर्ष 2003 और 2004 में पाकिस्तान के शीर्ष अधिकारियों को भी निशाना बनाया गया था। वर्ष 2005 में पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-झांगवी ने बलूचिस्तान प्रांत के झाल मगसी जिले में पीर राखील शाह और इस्लामाबाद में बारी इमाम की दरगाहों पर आत्मघाती हमले किए थे।
जून 2007 में इस्लामाबाद की कट्टरपंथी लाल मस्जिद में आतंकवादियों के खिलाफ सैन्य अभियान के बाद पाकिस्तान में संगठित आत्मघाती आतंकवाद ने जड़ें जमा लीं।
इस घेराबंदी के दौरान गोलीबारी में 100 से अधिक आतंकवादी और सुरक्षा बल के 11 लोग मारे गए थे। इसके कई महीनों बाद टीटीपी एक आतंकवादी संगठन के रूप में उभरकर सामने आया। इस हमले को अहम मोड़ माना गया, क्योंकि टीटीपी ने एक-के-बाद-एक कई आत्मघाती हमलों को अंजाम दिया। सेना, सरकारी कार्यालयों, सार्वजनिक स्थानों और नागरिक सभाओं को निशाना बनाया गया। ये हमले तेजी से बढ़ते गए। 27 दिसंबर, 2007 को इसी तरह के एक आत्मघाती हमले में पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या कर दी गई। पाकिस्तानी अधिकारियों के मुताबिक, 2008 में देश में 59 आत्मघाती हमले हुए।
आंतरिक कलह की वजह से बिखर गया अभियान
वर्ष 2014 में पाकिस्तान की सेना ने जर्ब-ए-अज्ब नाम से अभियान शुरू किया। इसका उद्देश्य टीटीपी और अल-कायदा से जुड़े अन्य आतंकी समूहों का खात्मा करना था। इसके बाद आत्मघाती हमलों की संख्या कम हुई। जर्ब-ए-अज्ब अभियान, अमेरिकी ड्रोन हमलों में शीर्ष नेताओं की मौत और आंतरिक कलह की वजह से टीटीपी बिखर गया और इसके ज्यादातर सदस्य 2020 के अंत तक पड़ोसी अफगान प्रांतों में चले गए।
टीटीपी फिर से कब्जा करने की कोशिश में जुटा
अगस्त 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान की वापसी के बाद टीटीपी फिर से एक बड़ा खतरा बन गया है। 25 जुलाई को जारी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा रपट के मुताबिक, कई अलग-अलग समूहों के साथ मिलने के बाद टीटीपी फिर से पाकिस्तानी क्षेत्र में अपना नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। सत्ता में तालिबान की वापसी के बाद से उनका मनोबल बढ़ गया है। यह समूह सीमा से लगे शहरी क्षेत्रों को निशाना बना रहा है।