पाकिस्तान सरकार द्वारा सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के तीन साल के कार्यकाल विस्तार को मान्य करने के लिए शुक्रवार को संसद में एक संशोधन बिल पेश करने की संभावना है। दिसंबर में देश की सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि पाकिस्तान के आर्मी एक्ट के तहत बाजवा के कार्यकाल विस्तार को सही नहीं ठहराया जा सकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार को पाकिस्तान सेना प्रमुख की पुनर्नियुक्ति या कार्यकाल के विस्तार पर कानून बनाने का आदेश दिया था।
पाकिस्तानी अखबार डॉन के अनुसार प्रधानमंत्री इमरान खान ने संविधान और आर्मी एक्ट में संशोधन के लिए बुधवार को कैबिनेट की बैठक की और इसमें संशोधन प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। मामले पर विपक्ष के साथ सहमति बनाने के बाद सरकार शुक्रवार को संसद में संशोधन विधेयक भी पेश करेगी। बता दें कि बाजवा इस साल 60 साल के हो रहे हैं।
बुधवार की बैठक में शामिल एक कैबिनेट सदस्य ने कहा कि यह संशोधन कार्यकाल विस्तार के मामले में आर्मी चीफ की उम्र को 60 साल से बढ़ाकर 64 साल करने के लिए किया जा रहा है। हालांकि सामान्य तौर पर आर्मी प्रमुख की अधिकतम उम्र 60 साल ही रहेगी। इसके अलावा यह प्रधानमंत्री पर निर्भर करेगा कि वह आर्मी चीफ का कार्यकाल बढ़ाना चाहते हैं या नहीं। प्रधानमंत्री इमरान खान के 19 अगस्त 2019 को ही मौजूदा आर्मी चीफ बाजवा के कार्यकाल को अगले तीन साल के लिए बढ़ा दिया था।
एएनआई के अनुसार बाजवा के कार्यकाल का विस्तार को चुनौती दी गई थी कि यह संविधान अनुच्छेद 243(4)(बी) का उल्लंघन है। यह मामला शुरू में न्यायविदों के फाउंडेशन द्वारा दायर किया गया था, लेकिन इस विस्तार को वापस लेने के आश्वासन के बाद अदालत ने इसे अपने खिलाफ लेने का फैसला किया। सुनवाई के दौरान, अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 243 और पाकिस्तान सेना अधिनियम, 1952 के दायरे सामने लाया।
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28 नवंबर को अदालत ने बाजवा के कार्यकाल को छह महीने के लिए बढ़ा दिया और सरकार को ऐसी नियुक्तियों को वैध करने वाला कानून बनाने का आदेश दिया। मामले में 43-पृष्ठ का लिखित फैसला 16 दिसंबर को जारी किया गया था। फैसले में कहा गया कि भविष्य में ऐसी गलतियां न हो, इसके लिए मामले को संसद को सौंपा जा रहा है। इसने संसद से सेना प्रमुख के पद के लिए एक कार्यकाल बताने को भी कहा गया।
फैसले में आगे कहा गया कि संघीय सरकार ने 26 नवंबर को सुनवाई के दौरान ‘विस्तार’ शब्द को शामिल किया था। हालांकि यह कानूनन गलत था क्योंकि इसमें सेना प्रमुख की सेवाओं की अवधि और सेवानिवृत्ति की आयु का विवरण नहीं था। अदालत ने अपने फैसले की घोषणा करते हुए सरकार को संसद से मामले पर कानून बनाने के लिए छह महीने का समय दिया था।