पाकिस्तान के एक पूर्व राजनयिक का कहना है कि जेहादियों से मुकाबले के नाम पर पाकिस्तान ने अमेरिका से करीब एक अरब डॉलर के जो जंगी हेलिकॉप्टर, मिसाइलें और अन्य रक्षा उपकरण खरीदे हैं उनका इस्तेमाल भारत के खिलाफ लड़ाई में किया जा सकता है।
अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने कहा कि पाकिस्तान को अमेरिका में हेलिकॉप्टरों, मिसाइलों और अन्य उपकरण बेचने के ओबामा प्रशासन के फैसले से इस्लामी चरमपंथियों के खिलाफ देश की लड़ाई का मकसद तो पूरा नहीं होगा, बल्कि इससे दक्षिण एशिया में संघर्ष भड़केगा।
हक्कानी ने ‘क्यों हम ये हमलावर हेलिकाप्टर पाकिस्तान को भेज रहे हैं’ शीर्षक से वाल स्ट्रीट जर्नल में लिखा है-‘अपने जेहादियों से निपटने में पाकिस्तान को नाकामी हथियारों की कमी के कारण नहीं, बल्कि इच्छाशक्ति नहीं रहने के कारण मिली है। जब तक पाकिस्तान अपना वैश्विक नजरिया नहीं बदलता, अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल जेहादियों से मुकाबले की बजाए भारत और कथित घरेलू दुश्मनों के खिलाफ लड़ने में या उन्हें धमकाने में होता रहेगा।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के ‘पिछले व्यवहार’ को देखते हुए ऐसा लगता है कि 15 एएच-एक जेड वाइपर हेलिकाप्टर और 1000 हेलिफायर मिसाइलों के साथ ही संचार और प्रशिक्षण उपकरणों का इस्तेमाल उत्तर पश्चिम में जेहादियों के खिलाफ लड़ने की जगह कश्मीर में विवादित सीमा पर और दक्षिण पश्चिम बलूचिस्तान प्रांत में बागियों के खिलाफ होगा।
हक्कानी ने कहा कि भारत के साथ प्रतिस्पर्धा अभी भी पाकिस्तान की विदेशी और घरेलू नीतियों में दबदबे वाला विचार बना हुआ है। पिछले वर्षों में पाकिस्तान को 1950 के बाद से करीब 40 अरब डालर की सहायता से भारत के साथ क्षेत्रीय सैन्य बराबरी की खुशफहमी को बल मिला। अपने से बड़े पड़ोसी के खिलाफ सुरक्षा लक्ष्य की बात तो जायज है, लेकिन हमेशा बराबरी में लगे रहना, ये ठीक नहीं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को और सैन्य उपकरण बेचने की बजाए अमेरिकी अधिकारियों को इस्लामाबाद को समझाना चाहिए कि भारत से होड़ वैसी ही है, जैसे बेल्जियम प्रतिद्वंद्वी फ्रांस और जर्मनी से करता है।
दोनों दक्षिण एशियाई परमाणु हथियार संपन्न प्रतिद्वंद्वियों के बीच तुलना करते हुए हक्कानी ने कहा कि भारत की आबादी पाकिस्तान की आबादी से छह गुना ज्यादा है, जबकि 10 गुना बड़ी होने के साथ 2000 अरब डॉलर की भारत की अर्थव्यवस्था लगातार बढ़ रही है, वहीं 245 अरब डॉलर के साथ पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कभी-कभार ही बढ़ती है और जिहादी आतंकवाद का इस पर साया है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान आतंरिक राष्ट्रवादी एकता को बनाए रखने के लिए अपने स्कूली पाठ्यक्रम, प्रचार और इस्लामी विधान तक इस्लामी विचारधारा पर टिका हुआ है। निस्संदेह, इससे चरमपंथ और धार्मिक असहिष्णुता को बढ़ावा मिलता है।