Oxford University Research: अत्यधिक गर्मी और जमीन के उपयोग में बदलाव की वजह से इस सदी के आखिर तक दुनिया भर में जानवरों की करीब 8,000 प्रजातियां पर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। यह तथ्य एक अध्ययन में सामने आया है। ब्रिटेन के आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ताओं के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय दल ने उभयचरों, पक्षियों, स्तनपायी और रेंगने वाले जीवों की करीब 30,000 प्रजातियों पर अध्ययन किया। ग्लोबल चेंज बायोलाजी जर्नल में छपे अध्ययन में बताया गया है कि 2100 तक 7,895 कशेरुकी प्रजातियां अत्यधिक गर्मी और भूमि उपयोग परिवर्तन के कारण वैश्विक विलुप्ति का सामना कर सकती हैं।

हर प्रजाति के लिए सही पर्यावास के आंकड़े ‘इंटरनेशनल यूनियन फार कंजर्वेशन आफ नेचर’ (आइसीयूएन) से लिए गए थे और प्रजातियों के लिए भविष्य की प्रजातियों के प्रकार का मानचित्र ‘लैंड-यूज हार्मोनाइजेशन 2’ (एलयूएच-2) से लिए गए थे, जिसका प्रबंधन अमेरिका का मैरीलैंड विश्वविद्यालय करता है।

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क्लाइमेट चेंज का जिक्र

आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भूगोल व पर्यावरण स्कूल के अध्ययनकर्ता रयूट वर्डी ने कहा कि हमारा अध्ययन कई खतरों के संभावित असर पर एक साथ विचार करने के महत्त्व पर जोर देते हैं, ताकि उनके संभावित असर का बेहतर अंदाजा लगाया जा सके। यह जैव विविधता को होने वाले बड़े नुकसान को रोकने के लिए दुनिया भर में विभिन्न प्रकार के कदम उठाने की जरूरत पर और बल देता है।

अध्ययन में चार परिदृश्यों पर विचार किया गया। इनमें से सबसे गंभीर परिदृश्य में प्रजातियों को उस क्षेत्र के 52 फीसद हिस्से में खराब हालात का सामना करना पड़ सकता है, जहां वे फैली हुई हैं। सबसे अच्छे परिदृश्य में प्रजातियां के 10 फीसद पर ही प्रभाव पड़ेगा।

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बड़े बदलावों की भविष्यवाणी

जलवायु और भूमि उपयोग में बदलाव का मिला-जुला असर साहेल (जैसे, सूडान, चाड और नाइजर), मध्य पूर्व और ब्राजील जैसे इलाकों में खास तौर पर बहुत अधिक होने का अनुमान है। अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि ये नतीजे पिछली अध्ययन से मिलते-जुलते हैं, जो दिखाते हैं कि भविष्य के परिदृश्य में भूमि उपयोग में सबसे बड़े बदलाव होंगे, जिसमें जलवायु परिवर्तन को कम करने और उसके हिसाब से ढलने में बड़ी चुनौतियां होंगी।

रिसर्चर्स ने कहा कि यह अध्ययन नीति बनाने में मदद कर सकता है और यह बताता है कि भविष्य में पर्यावरण में होने वाले बदलाव कैसे वैश्विक जैव विविधता को पूरी तरह से बदल सकते हैं। यह अध्ययन एक-दूसरे से जुड़े खतरों को पहचानने और उन्हें कम करने के महत्त्व पर भी जोर देती है।

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