उत्तर कोरिया में तानाशाह किंम जोंग उन को लेकर लगातार तरह-तरह की खबरें आती हैं। किम जोंग की तानाशाही के चर्चे दुनिया में आम हैं और अपने विरोधियों को तानाशाह छोड़ता नहीं है। उत्तर कोरिया में अगर कोई किम जोंग के आदेश को नहीं मानता है तो उसे कठोर सजा दी जाती है। लेकिन हैरानी भरी बात यह है कि नॉर्थ कोरिया में सुप्रीम लीडर की मौत पर 10 दिनों का राष्ट्रीय शोक होता है और इस दौरान लोगों को रोना जरूरी होता है। इससे भी हैरान करने वाली बात यह है कि कौन असली में रो रहा है और कौन नकली में रो रहा है, इसको चेक करने के लिए जासूस लगाए जाते हैं।

आंसुओं को चेक करते हैं जासूस

अगर सुप्रीम लीडर की मौत पर कोई नकली में रो रहा है और उसे दुख नहीं है तो उसे कठोर सजा दी जाती है। ऐसी गलती करने वाले व्यक्ति को 6 महीने तक जेल में रहना पड़ सकता है। कुछ इस तरह का नजारा उत्तर कोरिया में सुप्रीम लीडर की मौत पर राजधानी प्योंगयांग में दिखता है। प्योंगयांग के सभी नागरिकों को अंतिम दर्शन में शामिल होना जरूरी होता है और सभी को वहां पर रोना होता है।

किम जोंग इल की मौत पर रोना था जरूरी

नॉर्थ कोरिया के दूसरे सुप्रीम लीडर किम जोंग इल की मौत 17 दिसंबर 2011 को हुई थी। हालांकि वहां की सरकार ने दो दिन बाद टीवी के जरिए इसकी सूचना दी थी। इसके बाद 10 दोनों के राष्ट्रीय शोक का ऐलान हुआ और जनता को अपने दुख का प्रदर्शन करने को कहा गया। इस दौरान किसी भी किस्म के उत्सव और मनोरंजन पर रोक लगा दी गई। शोकसभा के कुछ फोटोज और वीडियोज भी सामने आए थे, जिसमें लोग छाती पीट-पीट कर रो रहे थे। लेकिन माना जाता है कि ऐसा लोगों को आदेश मिला था। अगर वह यह नहीं करते तो उन्हें कठोर सजा भुगतनी पड़ती। यह एक तरह से किम परिवार के लिए उनकी वफादारी का सबूत भी था। इस दौरान कुछ जासूस लगाए गए थे, जो यह नोट कर रहे थे कि कौन ठीक से नहीं रो रहा है। जिसने भी ऐसा नहीं किया, उसे किम परिवार के प्रति कम वफादार माना गया।

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डेली मेल की एक रिपोर्ट के अनुसार जब 10 दिन का राष्ट्रीय शोक खत्म हुआ, उसके बाद एक क्रिटिसिज्म सेशन आयोजित किया गया, जिसमें नए शासक किम जोंग उन भी मौजूद थे। इस दौरान उन लोगों को रातों रात उठा लिया गया, जिन्होंने शोक सभा में शामिल होकर नहीं रोया था।

किम जोंग के दादा की मौत के बाद भी लोगों को रोना था जरूरी

कुछ इस तरह का नजारा नॉर्थ कोरिया के पहले शासक किम इल सुंग की मौत के दौरान भी देखा गया था। 8 जुलाई 1994 को सुंग की मौत हुई थी। इसके बाद 10 दिन के राष्ट्रीय शोक का आयोजन किया गया था। इस दौरान भी सभी लोगों के लिए रोना अनिवार्य कर दिया गया था और उसका पता लगाने के लिए जासूस भी लगाए गए थे। पहले शासक की मौत के 34 घंटे बाद सूचना दी गई थी, ताकि किसी प्रकार की बगावत न हो। इसके बाद सभी देशवासियों को पब्लिक प्लेस पर रोना अनिवार्य कर दिया गया था। जासूसों को यह पता लगाने के लिए लगाया गया था कि क्या लोगों को वाकई में दुख पहुंचा है या फिर रोने का नाटक कर रहे हैं।