ब्रिटेन में राज परिवार के पास कोहिनूर हीरा है और इसे लंदन के टॉवर में रखा गया है। वर्तमान में कोहिनूर ब्रिटिश ताज का गौरव है। यह हीरा लगभग 105.6 कैरेट का है। सन 1846 में दिलीप सिंह ने ब्रिटिश साम्राज्य को यह हीरा पहले एंग्लो-सिख युद्ध में हार के बाद दिया था। इस युद्ध के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने सिख साम्राज्य के साथ लाहौर की संधि की थी।
इस संधि के बाद लॉर्ड डलहौजी ने महाराजा रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी दिलीप सिंह की ओर से महारानी विक्टोरिया को कोहिनूर भेंट करने की व्यवस्था की गई। कोहिनूर हीरा 1850 -51 में महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया गया था। इस तरह से कोहिनूर ब्रिटिश साम्राज्य के पास पहुंचा। ब्रिटिश साम्राज्य की सिख साम्राज्य के साथ संधि में कहा गया कि कोहिनूर जिसे महाराज रणजीत सिंह ने शाह सूजा-उल-मुल्क से लिया था, उसे लाहौर के महाराज की तरफ से इंग्लैंड की महारानी को सौंप दिया जाना चाहिए।
वहीं इस कोहिनूर को लेकर कई तरीके की कहानियां भी हैं। ऐसा भी माना जाता है कि ब्रिटिश शासकों को कोहिनूर कभी नहीं भाया और वे इस बेशकीमती हीरे को अभिशप्त मानते रहे।
‘कोहिनूर के अभिशाप’ के बारे में चर्चा इंग्लैंड में इसके आगमन के साथ हुई घटनाओं के साथ मजबूत हुई। हीरा इंग्लैंड पहुंचने से कुछ दिन पहले महारानी विक्टोरिया लंदन में अपने बीमार चाचा से मिलने जा रही थीं। उनके घर से निकलने के ठीक बाद उनकी गाड़ी के पास एक आदमी आया, जिसने महारानी के सिर पर एक पतली डंडी से प्रहार किया। रानी की एक आँख काली पड़ गई और उनके माथे पर एक कट लग गया था। जबकि व्यक्ति के हमले का मकसद पता नहीं चला। अखबारों ने रानी पर हमले के साथ-साथ कोहिनूर के आने की खबरें भी चलाईं।
इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल और पत्रकार अनीता आनंद ने अपनी पुस्तक ‘कोहिनूर: हिस्ट्री ऑफ द वर्ल्ड्स मोस्ट फेमस डायमंड’ में लिखा है कि 2 जुलाई, जिस दिन कोहिनूर इंग्लैंड पहुंचा, उस दिन रानी विक्टोरिया के विश्वासपात्र और पूर्व प्रधान मंत्री रॉबर्ट पील की अचानक मृत्यु हो गई। हालांकि कई अप्राकृतिक संयोगों के बीच रानी दुनिया का सबसे बड़ा रत्न प्राप्त करने के बारे में चुप रहीं।