ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के निधन के बाद उनके ताज में जड़ा बेशकीमती कोहिनूर हीरा किंग चार्ल्स तृतीय की पत्नी और डचेज ऑफ कॉर्नवेल कैमिला को सौंपा जाएगा। एलिजाबेथ द्वितीय ने इसी साल की शुरुआत में कैमिला के नाम का ‘क्वीन कंसोर्ट’ (पटरानी) के तौर पर ऐलान किया था। ‘डेली मेल’ के मुताबिक चार्ल्स तृतीय की ताजपोशी के दौरान कैमिला, कोहिनूर जड़ा ताज पहने दिखाई दे सकती हैं।
कोहिनूर की कहानी बेहद दिलचस्प है। कई इतिहासकार मानते हैं कि यह नायाब हीरा ग्यारहवीं से तेरहवीं शताब्दी के बीच दक्षिण भारत के गोलकुंडा की खान में पाया गया था। तब यह करीब 190 कैरेट का हुआ करता था, अब 105.6 कैरेट का बचा है। ‘वर्ल्ड हिस्ट्री इन्साइक्लोपीडिया’ कोहिनूर के बारे में पहला लिखित प्रमाण मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर की जीवनी ‘बाबरनामा’ में मिलता है, जो साल 1526 में लिखी गई है। जीवनी के मुताबिक उनके पास यह हीरा लड़ाई में लूट के तौर पर आया। बाबर ने लिखा है कि ‘इस नायाब हीरे की कीमत पूरी दुनिया के रोजाना के खर्चों का करीब आधा है।’
हालांकि, इतिहासकार और कोहिनूर पर बहुचर्चित किताब ‘कोहिनूर: द स्टोरी ऑफ द वर्ड्स मोस्ट इनफेमस डायमंड’ के लेखक विलियम डेलरिंपल के मुताबिक कोहिनूर का पहला लिखित जिक्र साल 1750 में फारसी इतिहासकार मोहम्मद मारवी के दस्तावेजों में मिलता है।

नादिरशाह के हाथ कैसे लगा कोहिनूर?
साल 1739 में नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला किया। हजारों लोगों का कत्लेआम किया और 57 दिनों तक लूटपाट मचाता रहा। मुगल सल्तनत द्वारा करीब 350 सालों में जमा की गई दौलत एक झटके में हथिया ली। बेशकीमती कोहिनूर उस वक्त मुगल सल्तनत की गद्दी ‘तख्त-ए-ताऊस’ में जड़ा था। नादिर शाह को कोहिनूर का पता, उस वक्त दिल्ली की गद्दी पर बैठे मोहम्मद शाह रंगीला की एक नर्तकी से लगा।
हालांकि शाह रंगीला ने इस हीरे को बचाने का प्रयास किया और तख़्त से निकालकर अपनी पगड़ी में छिपा लिया। बीबीसी, थियो मेटकॉफ के हवाले से लिखता है कि ‘नादिर शाह जब शाह रंगीला से मिला तो कहा कि आइये दोस्ती की खातिर हम एक दूसरे की पगड़ी बदल लें। मजबूरी में शाह रंगीला को पगड़ी बदलनी पड़ी और हीरा नादिर शाह के पास चला गया’।

अफगानिस्तान से वापस भारत लौटा कोहिनूर
नादिर शाह ने जब पहली बार ‘कोहिनूर’ को देखा तो उसकी आंखें फटी रह गईं। उसी ने इस हीरे को फारसी नाम ‘कोहिनूर’ नाम दिया, जिसका मतलब होता है रोशनी का पहाड़। नादिर शाह ‘कोहिनूर’ को अपने साथ अफगानिस्तान ले गया। साल 1747 में नादिर शाह की हत्या के बाद उसके अंगरक्षक अहमद शाह अब्दाली ने इसे कब्जा लिया।

‘वर्ल्ड हिस्ट्री डॉट ओआरजी’ (www.worldhistory.org) के मुताबिक अब्दाली ने अफगानिस्तान में ‘दुर्रानी राजवंश’ की नींव डाली, हालांकि उसके वंशज सत्ता संभाल नहीं पाए। साल 1813 में अब्दाली का वंशज शाह शुजा, कोहिनूर के साथ अफगानिस्तान से भागकर भारत पहुंचा। उसने पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह को शरण के बदले ‘कोहिनूर’ तोहफे के तौर पर दिया।
अंग्रेजों के हाथ में कैसे पहुंचा कोहिनूर?
महाराजा रणजीत सिंह, कोहिनूर को अपने बाजू पर बांधकर रखते थे। उनके दरबार में जब कोई खास मेहमान आता तो उसे कोहिनूर जरूर दिखाया जाता था। साल 1839 में महाराजा रणजीत सिंह का निधन हो गया और उनके बेटे दलीप सिंह, गद्दी पर बैठे। तब उनकी उम्र महज 5 साल थी। साल 1849 में अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया और कोहिनूर भी कब्जा लिया। तब गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी खुद इस हीरे को लेने लाहौर पहुंचे। उन्होंने पानी के जहाज से इसे महारानी विक्टोरिया को भिजवा दिया।
फिलहाल कोहिनूर, टावर ऑफ लंदन के ‘ज्वेल हाउस’ में रखा गया है। यहीं, शाही परिवार के और तमाम गहने और आभूषण रखे जाते हैं। मुर्गी के अंडे के आकार के कोहिनूर का वजन करीब 21.6 ग्राम है। kohinoordiamond.org के मुताबिक कोहिनूर का सही-सही दाम लगाना मुश्किल है, लेकिन जिस ब्रिटिश क्राउन में यह जड़ा है उसकी कीमत 10 से 12 बिलियन डॉलर के आसपास आंकी गई है।