Japan PM Resigning: जापान में एक बड़ा राजनीतिक बदलाव होने वाला है, क्योंकि देश के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने ऐलान किया है कि वे अगले महीनें अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा है कि वे सत्ताधारी पार्टी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता के प्रमुख बनने के लिए चुनावी प्रक्रिया में शामिल भी नहीं होंगे। अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिर पीएम ने अपने इस्तीफे का ऐलान क्यों कर दिया है, तो बता दें कि किशिदा के लिए पूरा कार्यकाल ही चुनौतियों से भरा रहा।
किशिदा की अप्रूवल रेटिंग में 20 प्रतिशत पर आ गई है, जो दिखाता है कि मुल्क में उनकी लोकप्रियता धड़ाम से गिरी है। इसके अलावा जापान में महंगाई के चलते लोगों की परेशानियां बढ़ रही हैं, जिसे कंट्रोल करने के मोर्चे पर किशिदा विफल नजर आए हैं। ऐसे में पूर्व पीएम शिंजो आबे के करीबी माने जाने वाले किशिदा ने अब अपने इस्तीफे का ऐलान किया था।
हिरोशिमा में हुआ था किशिदा का जन्म
फुमियो किशिदा के बैकग्राउंड के बारे में बात करें तो वे हिरोशिमा से आते हैं। उनका जन्म परमाणु त्रासदी के 12 साल बाद हिरोशिमा में ही हुआ था। उन्होंने उस बम विस्फोट में अपने परिवार के कई लोगों को खो दिया था। किशिदा ने राजनीति में आने से पहले लगभग पांच साल तक जापान के तत्कालीन लॉन्ग-टर्म क्रेडिट बैंक यानी शिंसेई बैंक के लिए काम किया था।
किशिदा 1993 में वे लोअर हाउस के सदस्य चुने गए थे इसके बाद वे साल 2012 में तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे की कैबिनेट में विदेश मामलों के मंत्री नियुक्त होने से पहले उन्होंने कई पदों पर काम किया। वे 2017 तक इस पद पर बने रहे और जापान के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले विदेश मंत्री बन गए।
पार्टी में भारी रहा है किशिदा का पलड़ा
सितंबर 2021 में किशिदा एलडीपी के अध्यक्ष बने थे, और निवर्तमान नेता और प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा की जगह तारो कोनो को हराकर एलडीपी के अध्यक्ष बने। वे प्रधानमंत्री बने और अगले महीने उन्होंने अपना पहला मंत्रिमंडल बनाया। किशिदा एलडीपी के उदारवादी कोचिकाई गुट के प्रमुख हैं। यह करीब 47 सांसदों को गुट है, जो कि पार्टी का वर्तमान में चौथा सबसे बड़ा गुट है। वे पिछले 30 साल में इस गुट से पीएम बनने वाले चौथे नेता रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने अपने हालिया बयान में कहा कि राजनीति जनता के विश्वास के बिना नहीं चल सकती। यह बात उन्होंने पिछले वर्ष सामने आए कुछ घोटालों से जुड़े मामलों को लेकर कही, जिससे उनकी इमेज पर दाग लगे थे। निक्केई पोल ने जुलाई तक लगातार आठ महीनों के लिए सरकार की अप्रूवल रेटिंग को केवल 20% रहने का अनुमान लगाया है, जो कि 2021 के आखिरी में, किशिदा के पीएम बनने के दौरान 60 प्रतिशत के करीब थी।
भ्रष्टाचार के मामलों ने गिराई साख
जानकारी के मुताबिक दिसंबर 2023 में एलडीपी के सेइवा सेसाकु केन्युकाई, शिसुइकाई और कोचिकाई गुटों के सांसदों पर आरोप लगे थे कि उन्होंने 600 मिलियन येन से अधिक की पैसे की जानकारी नहीं दी थी। इसके अलावा किशिदा की समस्या उनकी पार्टी के विवादास्पद यूनिफिकेशन चर्च के साथ संबंधों के खुलासे से और बढ़ गईं, जिसे स्थानीय स्तर पर एक पंथ माना जाता है, और जुलाई 2022 में प्रधानमंत्री शिंजो आबे की हत्या के साथ भी इसका संबंध होने का आऱोप लगा है।
आर्थिक नीति के मोर्चे पर भी किशिदा को मुसीबतों का सामना करना पड़ा है। किशिदा ने दशकों से चली आ रही धीमी विकास दर और महंगाई से निपटने के लिए “नए पूंजीवाद” की वकालत की। हालांकि इसका नतीजा कुछ खास खास नहीं रहा है, जिसके चलते उनकी मुसीबतें बढ़ती गईं।