Israel Iran War News: ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते सैन्य तनाव के बीच इस्लामिक गणराज्य ने सोमवार को कहा कि उसकी संसद एक विधेयक तैयार कर रही है, जिसका असर ये होगा कि ईरान परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) से बाहर आ सकता है। इजरायल ने ईरान पर 13 जून को हमला शुरू किया था और दावा ये था कि ईरान हथियार-ग्रेड यूरेनियम को समृद्ध करने के करीब है।

इजरायल ने कहा था कि ईरान प्रभावी रूप से इस्लामिक गणराज्य को परमाणु हथियार बनाने की अनुमति देगा। इजरायली प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के अनुसार ईरान का परमाणु हथियार बनाना इजरायल के अस्तित्व के लिए खतरा होगा। इजरायल ने ईरान के नतांज़ और अन्य ईरानी शहरों में प्रमुख परमाणु सुविधाओं पर हमला किया था।

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ईरान ने किया था आरोपों से इनकार

दूसरी ओर ईरान ने आरोपों से इनकार करते हुए कहा है कि वह केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का उपयोग करने की योजना बना रहा है, न कि हथियार विकसित करने की। उसने जवाबी कार्रवाई की कसम खाई और ईरान की ओर बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं, जबकि इज़राइल में कम से कम 24 लोग मारे गए हैं, ईरान में मरने वालों की संख्या 600 को पार कर गई है।

क्या है एनपीटी यानी परमाणु अप्रसार संधि?

1968 में हस्ताक्षरित तथा 1970 में लागू हुई इस अंतर्राष्ट्रीय संधि का उद्देश्य परमाणु हथियारों और प्रौद्योगिकी के प्रसार को रोकना और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के साथ-साथ निरस्त्रीकरण में सहयोग को बढ़ावा देना है। द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) अमेरिका के जापान पर परमाणु बम गिराने के बाद खत्म हुआ था। इसके बाद विश्व शक्तियों ने अपने स्वयं के परमाणु हथियार विकसित करने की होड़ लगा दी। साथ ही, परमाणु प्रौद्योगिकी के प्रसार को प्रतिबंधित करने के प्रयास भी किए गए थे।

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1953 में अमेरिकी सरकार ने राष्ट्रपति ड्वाइट डी आइजनहावर के नेतृत्व में शांति के लिए परमाणु पहल की शुरुआत की, जिसने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के लिए आधार तैयार किया। आइजनहावर ने एक भाषण में कहा था कि संयुक्त राज्य अमेरिका सैन्य उद्देश्यों के लिए परमाणु सामग्री की मात्र कमी या उन्मूलन से अधिक की मांग करेगा।

भारत ने 1974 में किया था परमाणु परीक्षण

आज, 191 देश इस संधि में शामिल हो चुके हैं। भारत ने 1974 में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था, लेकिन उसने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए, और इसके बजाय परमाणु प्रसार को रोकने में सार्वभौमिकता के सिद्धांत को दोहराया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी पांच सदस्यों के लिए संधि के अपवादों और पी5 सदस्यों को समायोजित करने के लिए कट-ऑफ पॉइंट के रूप में चुनी गई मनमानी तिथि को देखते हुए, इसे भेदभावपूर्ण के रूप में आलोचना की गई है।

भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान भी इस संधि में शामिल नहीं है। इजराइल के पास परमाणु हथियार होने की खबर है, लेकिन उसने कभी आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं की है। इजरायल ने भी इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। उत्तर कोरिया ने 1985 में इस पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन 2003 में उसने परमाणु संवर्धन कार्यक्रम चलाने के बाद इससे बाहर निकलने की घोषणा की। उसने IAEA निरीक्षकों को भी निष्कासित कर दिया।

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अगर ईरान ने तोड़ी सधि तो क्या होगा?

संधि के 11 अनुच्छेदों में से एक में इसे छोड़ने की प्रक्रिया का उल्लेख है। अनुच्छेद 10 वापसी की बात करता है कि प्रत्येक पक्ष को अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता का प्रयोग करते हुए संधि से हटने का अधिकार होगा यदि वह यह निर्णय लेता है कि इस संधि के विषय से संबंधित असाधारण घटनाओं ने उसके देश के सर्वोच्च हितों को खतरे में डाला है।

संधि से वापसी की सूचना अन्य पक्षों और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को तीन महीने पहले दी जानी चाहिए, और ऐसी सूचना में उन असाधारण घटनाओं का विवरण शामिल होना चाहिए, जिन्हें वह अपने सर्वोच्च हितों को खतरे में डालने वाला मानता है। बता दें कि ईरान 1970 से ही इस संधि पर हस्ताक्षरकर्ता रहा है। हालांकि, लगभग 20 वर्षों में अपने पहले ऐसे निर्णय में, IAEA के 35 देशों के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने हाल ही में कहा कि ईरान ने अपने परमाणु अप्रसार दायित्वों का उल्लंघन किया है।

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ईरानी अधिकारी बार बार करते रहे हैं इनकार

ईरान के संधि से बाहर निकलने से दो बड़ी चिंताएं पैदा होती हैं। इसमें पहली ये कि ईरान को IAEA के दायरे और नियमित निरीक्षणों से बाहर रखेगा, और दूसरी, यह अन्य देशों के लिए वैश्विक ढांचे को छोड़ने की मिसाल कायम कर सकता है, जिससे एक महत्वपूर्ण विषय पर सहयोग कमज़ोर हो सकता है। ब्लूमबर्ग द्वारा संकलित IAEA डेटा के अनुसार, पिछले साल ईरान में IAEA निरीक्षकों ने औसतन प्रतिदिन 1.4 परमाणु-स्थल का दौरा किया। यदि ईरान वापस जाने का विकल्प चुनता है तो ये पहुंच समाप्त हो जाएगी।

हालांकि, एनपीटी में बने रहना जरूरी नहीं कि परमाणु हथियार बनाने के इरादे को दर्शाता हो, क्योंकि हस्ताक्षरकर्ता (जैसे उत्तर कोरिया) ने भी अतीत में हथियार विकसित किए हैं। इस मामले में, ईरानी अधिकारियों ने ऐसा करने की योजनाओं से बार-बार इनकार किया है, लेकिन मध्य पूर्व में बदलती स्थिति का मतलब है कि संधि में बने रहने की गारंटी काफी कम है।