ईरान और इजरायल के बीच में तनाव काफी ज्यादा बढ़ चुका है। ऐसा कहा जा रहा है कि किसी भी वक्त अब जंग छिड़ सकती है। जंग छिड़ने का बड़ा कारण ईरान के वो हमले हैं जिससे इजरायल को काफी नुकसान पहुंचा है। सैटेलाइट तस्वीरें भी गवाह हैं कि इजरायल के एयरबेस को काफी क्षति पहुंची है। ऐसे में अगर मिडिल ईस्ट में एक नए युद्ध की शुरुआत हो जाए तो किसी को हैरान नहीं होना चाहिए।
लेकिन अगर ऐसी स्थिति बनती है तो भारत की क्या भूमिका होनी चाहिए? या कहना चाहिए कि दुनिया भारत को क्या भूमिका निभाते हुए देखना चाहती है? इसके ऊपर क्या पीएम मोदी, विदेश मंत्री एस जयशंकर इस संभावित युद्ध को टाल सकते हैं? क्या दुनिया के दूसरे देश भारत की बात मानने को तैयार होंगे? आइए सिंपल प्वाइंट्स इस पूरी कूटनीति को समझने की कोशिश करते हैं।
ईरान-इजरायल तनाव पर भारत की क्या प्रतिक्रिया?
जब से ईरान-इजरायल का यह तनाव बढ़ा है, भारत की राजनीति में भी उबाल है। मोदी सरकार तो इस पूरे मामले पर नजर रखे हुए है, इसके अलावा विपक्ष के नेता भी समय-समय पर बयान दे रहे हैं। यहां जानिए हर नेता ने ईरान-इजरायल तनाव पर क्या बोला है-
पीएम नरेंद्र मोदी: आतंकवाद के लिए इस दुनिया में कोई जगह नहीं है। यह बहुत जरूरी है कि स्थानीय तनाव ना बढ़ने दिया जाए। इसके ऊपर सभी बंदियों का सुरक्षित वापस आना भी जरूरी है। जल्द से जल्द शांति स्थापित हो और स्थिरता आए, भारत इसके लिए प्रतिबद्ध है। (Reference: पीएम मोदी ने इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू से फोन पर बात की थी, तब यह सब बोला गया)
विदेश मंत्री जयशंकर: मिडिल ईस्ट में जो संघर्ष बढ़ा है, भारत उस वजह से फिक्रमंद है। इजरायल और ईरान के बीच का तनाव बड़े युद्ध में तब्दील होने का जोखिम रखता है। किसी भी देश की प्रतिक्रिया को अंतराराष्ट्रीय मानवीय नियमों को जरूर ध्यान में रखना चाहिए, नागरिकों को नुकसान ना पहुंचे, यह प्राथमिकता होनी चाहिए।
विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत की भूमिका पर भी जोर देकर बोला कि मुश्किल समय में बातचीत की अहमियत को कम नहीं समझना चाहिए। अगर किसी बात को आगे बढ़ाना है, अगर कोई बात वापस दी जानी है, यह सब भी योगदान ही हैं। भारत ऐसा करता आ रहा है। (Reference: वाशिंगटन में एक थिंक टैंक के साथ बातचीत के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यह बयान दिया था)
अरविंद केजरीवाल: इज़राइल और ईरान के बीच युद्ध जैसी स्थिति बनी है। भारत के कई परिवार चिंतित हैं क्योंकि उनके परिवार के लोग इन देशों में काम कर रहे हैं। मैं भारत सरकार से विनम्र निवेदन करता हूँ कि वहाँ रहने वाले जो भी भारतीय वापस आना चाहें, उन्हें जल्द से जल्द मिशन मोड में वापस लाने की व्यवस्था करें। (Reference: दो अक्टूबर को ईरानी हमले के तुरंत बाद अरविंद केजरीवाल ने मोदी सरकार से यह अपील की थी)
भारत से दुनिया को क्या उम्मीद और क्यों?
ईरान-इजरायल के बीच बढ़ता तनाव पूरी दुनिया के लिए घातक है, इससे मिडिल ईस्ट तो प्रभावित होगा ही, पूरी दुनिया की सप्लाई चेन भी बाधित हो सकती है, तेल की कीमतों में भारी उछाल देखने को मिल सकता है। ऐसे में हर कीतम पर यह युद्ध रुके और तनाव कम हो, यह जरूरी हो जाता है। अब दुनिया के कई मुल्क भारत की बढ़ती ताकत से अब परिचित हैं, उसकी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बढ़ी स्वीकृति ने भी उसे निर्णयाक स्थिति में ला दिया है।
भारत से उम्मीद लगाए जाने के 5 कारण जानिए
- भारत, ईरान और इजरायल दोनों का अच्छा दोस्त है। कई सालों से दोनों देश के साथ व्यापारिक रिश्ते हैं, भारत का खुद का हित भी इन देशों के साथ जुड़ा हुआ है। बड़ी बात यह है कि भारत ने क्योंकि अभी न्यूट्रल अप्रोच अपना रखी है, ऐसे में उस पर पक्षपात का आरोप नहीं लग सकता। उसने किसी एक देश को बॉयकॉट नहीं किया है। ईरान से तेल ले रहा है तो इजरायल से जरूरी हथियार।
- भारत को बुद्ध की धरती कहा जाता है, पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर पिछले कई दूसरे प्रधानमंत्रियों ने भारत की पहचान एक शांति-प्रिय देश के रूप में बनाई है। भारत झुकता नहीं है, लेकिन किसी पर बिना मतलब के हमला भी नहीं करता है। ऐसे में अगर मध्यस्थता की बात आएगी, भारत को एक भरोसेमंद के तौर पर देखा जा सकता है।
- भारत एशिया की बड़ी ताकत के रूप में सामने आया है। चीन से उसे कड़ी टक्कर जरूर मिल रही है, लेकिन जब बात युद्ध की आती है, दुनिया चीन से ज्यादा भारत पर भरोसा जताती है। चीन का तो इतिहास रहा है कि उसने अपनी विस्तावादी नीति के दम पर ताइवान से लेकर हॉंग कॉंग पर कब्जा जमाने की कोशिश की है, लेकिन भारत सिर्फ जरूरत पड़ने पर मुंहतोड़ जवाब देने में विश्वास रखता है।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्व के नेताओं के साथ अपनी केमिस्ट्री भी मायने रखती है। उनका व्यवाहारिक अंदाज ही उन्हें जल्दी सभी का दोस्त बना देता है। यहां भी नेतन्याहू के साथ उनके रिश्ते काफी करीबी बताए जाते हैं, वे पहले प्रधानमंत्री भी बने जिन्होंने इजरायल का दौरा किया था। ऐसे में पीएम मोदी से उम्मीद की जाएगी कि वे अपने ‘दोस्त’ नेतन्याहू से बात करें और संभावित युद्ध को टालने का प्रयास करें।
- भारत के प्रति उम्मीद इसलिए भी दुनिया की बढ़ी है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र यानी कि यूएन अपनी भूमिका को ठीक तरह से नहीं निभा पाया है। उसके गठन के बाद से सात बार ऐसा हुआ है जब वो किसी युद्ध को रोकने में विफल रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध को भी वो नहीं रोक पाया था। उसका सालाना बजट जरूर 3000 करोड़ के आसपास है, लेकिन उसकी कार्यशैली दुनिया के कई मुल्कों को अब रास नहीं आती। ऐसे में भारत जैसे देश ज्यादा प्रभावशाली अंदाज में मध्यस्ता करवा सकते हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध में कैसी रही भारत की भूमिका?
रूस-यूक्रेन युद्ध को अब तीन साल होने को हैं। अभी तक कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिले है कि यह युद्ध रुकने वाला है। लेकिन एक बात के संकेत जरूर मिले कि भारत इस युद्ध को रोकने में एक मध्यस्त की भूमिका निभा सकता है। ऐसा दुनिया के कई देशों ने खुद सामने से आकर बोला, अमेरिका तक ने माना कि भारत अहम भूमिका निभा सकता है।
इसके ऊपर पीएम नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से हाल ही में यूक्रेन का दौरा किया, फिर रूस भी चले गए, कूटनीति एक अलग ही अंदाज देखने को मिला। पीएम मोदी तो कह चुके हैं कि भारत कोई न्यूट्रल नहीं रहने वाला है, पूरी तरह शांति का पक्षधर है, यानी कि युद्ध रोकने में वो दिलचस्पी दिखा रहा है। जानकार तो यहां तक मानते हैं कि अमेरिका भी चीन से ज्यादा भारत पर ही भरोसा जताएगा अगर युद्ध रोकने की बात आएगी।
इसका कारण यह है कि अमेरिका को हर कीमत पर चीन के प्रभाव को सीमित करना है, इस वजह से एशिया के दूसरे देश यानी कि भारत को आगे बढ़ाना जरूरी हो जाता है, उसका मजबूत होना अहम बन जाता है। इसी वजह से रूस-यूक्रेन युद्ध में भी मध्यस्ता करने की अगर बात आती है, भारत काफी आगे रहने वाला है।
किसी देश के युद्ध में भारत का कभी रहा सीधा हस्तक्षेप?
भारत को लेकर कहा जाता है कि वो न्यूट्रल होकर चलता है, किसी के भी विवाद में सीधे तौर पर नहीं कूदता है। लेकिन हमेशा से ही ऐसा नहीं रहा है, एक समय ऐसा भी था जब भारत ने भी कई देशों के युद्ध में अपने सैनिक भी भेजे और उसे काफी नुकसान भी उठाना पड़ा। पहले विश्व युद्ध और फिर दूसरे विश्व युद्ध में भारत के कई सैनिक शामिल भी हुए और शहीद भी। आजादी के बाद भी वियतनाम युद्ध के दौरान भारत ने अमेरिका की खुलकर निंदा की थी।