भारत ने हाल ही में पड़ोसी देश पाकिस्तान को सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) की समीक्षा के लिए नोटिस भेजा था। पाकिस्तान को औपचारिक नोटिस दिए जाने के कुछ दिनों बाद, इस्लामाबाद ने गुरुवार को कहा कि वह इस समझौते को महत्वपूर्ण मानता है। साथ ही पड़ोसी देश ने उम्मीद जताई कि भारत भी 64 साल पहले किए गए इस द्विपक्षीय समझौते के प्रावधानों का पालन करेगा।
नयी दिल्ली में बुधवार को सरकारी सूत्रों ने कहा कि भारत ने 30 अगस्त को पाकिस्तान को एक औपचारिक नोटिस भेजकर 64 साल पुराने समझौते की समीक्षा की मांग की थी। नोटिस में भारत ने परिस्थितियों में अप्रत्याशित बदलावों और सीमा पार से लगातार जारी आतंकवाद के प्रभाव का हवाला दिया था।
भारत के नोटिस पर एक सवाल का जवाब देते हुए विदेश कार्यालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलूच ने संवाददाताओं से कहा, “पाकिस्तान सिंधु जल संधि को महत्वपूर्ण मानता है और उम्मीद करता है कि भारत भी इसके प्रावधानों का पालन करेगा।” बलूच ने बताया कि दोनों देशों के बीच सिंधु जल आयुक्तों का एक तंत्र है और संधि से जुड़े सभी मुद्दों पर इसमें चर्चा की जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि संधि से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए कोई भी कदम समझौते के प्रावधानों के तहत ही उठाया जाना चाहिए।
भारत ने संधि में बदलाव के लिए बताए ये कारण
सूत्रों के मुताबिक, भारत द्वारा व्यक्त की गयी विभिन्न चिंताओं में से महत्वपूर्ण हैं जनसंख्या में परिवर्तन, पर्यावरणीय मुद्दे और भारत के उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा के विकास में तेजी लाने की आवश्यकता। भारत ने अपनी सीमा पर कई जलविद्युत परियोजनाओं की योजना बनाई है।
भारत क्यों करना चाहता है IWT की समीक्षा?
भारत ने समीक्षा की मांग के पीछे एक कारण सीमापार से लगातार जारी आतंकवाद का प्रभाव भी बताया है। डेढ़ साल में यह दूसरी बार है जब भारत ने सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है। पिछले साल जनवरी में भारत ने पाकिस्तान को पहला नोटिस जारी कर संधि की समीक्षा और संशोधन की मांग की थी, क्योंकि इस्लामाबाद कुछ विवादों को निपटाने में अड़ियल रवैया अपना रहा था।
भारत ने पिछला नोटिस इसलिए जारी किया था क्योंकि वह मध्यस्थता न्यायालय की नियुक्ति से विशेष रूप से निराश था। विश्व बैंक द्वारा जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रतले जल विद्युत परियोजनाओं पर मतभेदों को सुलझाने के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता न्यायालय के अध्यक्ष की नियुक्ति की घोषणा के कुछ महीने बाद नयी दिल्ली ने यह महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
क्या है सिंधु जल संधि?
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच प्रमुख समझौतों में से एक है, जो समय की कसौटी पर खरा उतरा है और दोनों पड़ोसियों के बीच युद्धों और तनावों के बावजूद इसका पालन किया गया है। भारत और पाकिस्तान ने 9 सालों की वार्ता के बाद 19 सितंबर 1960 को सिंधु जल संधि (IWT) पर हस्ताक्षर किये थे, जिसका एकमात्र उद्देश्य सिंधु और उसकी सहायक नदियों में उपलब्ध पानी के उपयोग के लिए फैसला करना था।
विश्व बैंक द्वारा आयोजित नौ साल की बातचीत के बाद तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन पाकिस्तान राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान द्वारा कराची में इस पर हस्ताक्षर किए गए थे।
संधि में शामिल हैं ये नदियां
गौरतलब है कि पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों, चिनाब, झेलम और सिंधु से सम्पूर्ण जल प्राप्त होता है, जबकि भारत का सतलुज, व्यास और रावी नदियों पर पूर्ण अधिकार है। संधि के प्रावधानों के अनुसार, 207.2 अरब घन मीटर की कुल आपूर्ति में से, तीन आवंटित नदियों से भारत का हिस्सा 40.7 अरब घन मीटर या लगभग 20 प्रतिशत है, जबकि पाकिस्तान को 80 प्रतिशत मिलता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि विदेश कार्यालय के प्रवक्ता की प्रतिक्रिया से पता चलता है कि पाकिस्तान उस समझौते में संशोधन में रुचि नहीं रखता है, जिसके तहत दोनों देशों के बीच जल बंटवारे के जटिल मुद्दे का समाधान किया गया था।
(इनपुट- भाषा)