भारत ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र में कहा कि विशेष रूप से हिंदुओं, बौद्धों और सिखों के खिलाफ पैदा हुए नये “धार्मिक भय” का उदय गंभीर चिंता का विषय है। यूएन में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि इस तरह के मुद्दों पर चर्चा में संतुलन लाने के लिए क्रिश्चियनोफोबिया, इस्लामोफोबिया और यहूदी-विरोधी की तरह इसे भी पहचानने की जरूरत है।

बता दें कि 18 जनवरी को ग्लोबल काउंटर टेररिज्म काउंसिल द्वारा इंटरनेशनल काउंटर टेररिज्म कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए भारतीय प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि इस खतरे को दूर करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों को ध्यान देने की आवश्यकता है।

इसके अलावा भारत ने कहा कि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) द्वारा प्रतिबंधित किया गया है। इन संगठनों के साथ अल-कायदा के संपर्क लगातार मजबूत हो रहे हैं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि अफगानिस्तान में हाल ही में हुए घटनाक्रम ने इस आतंकवादी संगठन को और अधिक ताकतवर होने का मौका दिया है।

तिरुमूर्ति ने इसे खतरनाक प्रवृत्ति बताते हुए कहा कि यह हाल ही में अपनाई गई वैश्विक आतंकवाद विरोधी रणनीति में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों द्वारा सहमत कुछ स्वीकृत सिद्धांतों के खिलाफ है। जिसमें साफ तौर पर कहा गया है कि आतंकवाद का सोर्स जैसा भी हो, उसके हर रूपों की निंदा होनी जानी चाहिए। आतंकवाद के किसी भी प्रवृति को सही नहीं ठहराया जा सकता है।

उन्होंने कहा, आतंकवादियों को मेरे और आपके आतंकवादी के रूप में ठहराने से बनने वाली स्थिति 9/11 के युग से पूर्व में ले जाएंगी और पिछले दो दशकों में हमने जो सामूहिक लाभ अर्जित किया है उसे खत्म कर देगी।

इसके अलावा भारत ने यूएई की राजधानी अबू धाबी में ड्रोन हमलों की कड़ी निंदा की। बता दें कि इस हमले में दो भारतीयों समेत तीन लोगों की मौत हुई और छह में से दो भारतीय घायल हुए।

तिरुमूर्ति ने कहा कि भारत आम लोगों व मूलभूत ढांचों पर हमलों को ‘अंतरराष्ट्रीय कानूनों का खुला उल्लंघन’ मानता है। भारत इस बात पर जोर देता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) को आतंकवाद के ऐसे अक्षम्य कृत्यों के खिलाफ साफ-साफ संदेश देने के लिए एकजुट होना चाहिए।