India-Maldives Talks: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लक्षद्वीप दौरा और उसे पर्यटन के तौर पर प्रमोट करना, भारत और मालदीव के बीच एक लंबे टकराव की वजह बना। इंडिया आउट चुनावी कैंपेन के दम सरकार बनाने वाले मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू की सरकार के मंत्रियों द्वारा दिए गए बयान और भारतीयों द्वारा मालदीव का बायकॉट, पर्यटन के दम पर चल रही मालदीव की अर्थव्यवस्था के लिए काफी खतरनाक रहा। दोनों के बीच रिश्तों के पटरी पर लौटने के संकेत तब मिले जब नरेंद्र मोदी के तीसरी बार पीएम पद की शपथ लेने के मौके पर राष्ट्रपति मोइज्जू भारत पहुंचे और दोनों नेताओं के बीच औपचारिक बातचीत हुई।

वहीं भारतीय सेना के जवानों को मालदीव से भारत वापस भेजे जाने के मोइज्जू सरकार के कड़े और विवादित फैसले के बाद शुक्रवार को भारत और मालदीव के बीच अहम डिफेंस वार्ता हुई, जहां उन्होंने चल रही रक्षा सहयोग परियोजनाओं’ और आगामी द्विपक्षीय सैन्य अभ्यासों पर चर्चा की। बता दें कि इससे पहले आखिरी रक्षा सहयोग वार्ता पिछले वर्ष मार्च में माले में हुई थी, जब तत्कालीन राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह पद थे, और इसके कुछ महीनों बाद हुए चुनाव में मोइज्जू की जीत हुई और वे राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठ गए।

भारत-मालदीव के बीच हुई डिफेंस वार्ता

भारत और मालदीव के बीच 5वें रक्षा सहयोग वार्ता पर रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी आधिकारिक बयान के अनुसार भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व रक्षा सचिव गिरिधर अरामने ने किया जबकि मालदीव के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल के प्रमुख जनरल इब्राहिम हिल्मी ने किया। इस बयान में कहा गया कि बैठक में दोनों पक्षों को द्विपक्षीय रक्षा सहयोग से जुड़े मामलों पर चर्चा करने का अवसर मिला। इसमें अन्य बातों के अलावा चल रही विभिन्न रक्षा सहयोग परियोजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी लाना भी शामिल था।

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इसमें कहा गया है कि दोनों पक्षों ने उच्च स्तरीय आदान-प्रदान पर विचार-विमर्श किया। इतना ही नहीं, आगामी द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास में भागीदारी के पहलुओं पर भी चर्चा की गई। दोनों देशों के बीच बातचीत का पूरा दायरा सकारात्मक रहा, जिससे निकट भविष्य में दोनों देशों के साझा हितों को बढ़ावा मिलने की संभावना है और हिंद महासागर क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि आएगी। दोनों देशों के बीच हुई वार्ता और उसके बाद आए बयान का लहजा यह बता रहा है कि यह कितना अहम है, क्योंकि पिछले वर्ष के अंत में द्विपक्षीय संबंधों को झटका लगा था।

दोनों देशों के बीच दिखा था टकराव

गौरतलब है कि नवंबर 2023 में सत्ता में आने के तुरंत बाद चीन समर्थक माने जाने वाले मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने भारत से अपने देश से अपने सैन्य कर्मियों को वापस बुलाने का अनुरोध किया। मुइज़्ज़ू ने “इंडिया आउट” के नारे पर मौजूदा राष्ट्रपति सोलिह को हराया था। वहीं उन्हें चीन समर्थक के तौर पर ही देखा गया था, जिसके चलते भारत भी अपना हर एक कदम फूंक-फूंककर रख रहा था।

गतिरोध का सामना करते हुए दोनों देश इस वर्ष 2 फरवरी को इस बात पर सहमत हुए कि 10 मार्च से 10 मई के बीच, भारत मालदीव में तैनात अपने 80 सैन्यकर्मियों को वापस बुला लेगा। विदेश मंत्रालय ने कहा कि मालदीव में दो हेलीकॉप्टर और एक डोर्नियर विमान का संचालन “सक्षम भारतीय तकनीकी कर्मियों” द्वारा किया जाएगा, जो “वर्तमान कर्मियों” का स्थान लेंगे।

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मालदीव दौरे पर गए थे एस जयशंकर

वहीं मई में भारतीय सैनिकों की वापसी के एक महीने बाद राष्ट्रपति मोइज्जू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए, जब उनकी सरकार का तीसरा कार्यकाल शुरू हुआ। अगस्त में मोइज्जू के सत्ता में आने के बाद मालदीव की पहली उच्चस्तरीय यात्रा में विदेश मंत्री एस जयशंकर द्विपक्षीय सहयोग पर चर्चा करने के लिए माले गए थे।

उन्होंने मालदीव को हमारी ‘पड़ोसी पहले’ नीति के आधार स्तंभों में से एक बताया कि हमारे विजन सागर में से एक साथ ही ग्लोबल साउथ के प्रति हमारी प्रतिबद्धता। इसे मेरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में संक्षेप में कहें तो भारत के लिए पड़ोस एक प्राथमिकता है और पड़ोस में मालदीव एक प्राथमिकता है। हम इतिहास और रिश्तेदारी के सबसे करीबी बंधन भी साझा करते हैं।

गौरतलब है कि चीन से कर्ज के चलते मालदीव काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है और भारतीयों के साथ टकराव और पर्यटन का बायकॉट करने के चलते मुल्क की आर्थिक क्षति हुई है। इसके चलते ही अब भारत के लिए मालदीव के सुर अब नर्म पड़ने लगे हैं और माना जा रहा है कि इसीलिए मालदीव भारत के साथ अपने संबंधों को वापस पटरी पर लाने की कोशिश कर रहा है, जिसकी बानगी ये डिफेंस वार्ता माना जा रही है।