भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर संघर्ष विराम करार को लेकर सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे के बयान और ‘असाइनमेंट वीजा’ बहाल करने के समझौते के बाद दोनों देशों के बीच नरमी के संकेत मिले हैं। हाल में दोनों देशों के राजनीतिक और सैन्य नेताओं के ऐसे बयान सामने आए हैं, जिनमें सीमा पर शांतिपूर्ण समाधान की ओर बढ़ने के संकेत मिले हैं। हालांकि, भारत-पाकिस्तान संबंधों के लिहाज से 2019 और 2020 खराब माना गया। दोनों देशों के बीच समय-समय पर जुबानी जंग बढ़ने और राजनयिकों को तलब करने जैसी घटनाओं से तपिश बढ़ी। कश्मीर का मुद्दा रह-रहकर पाकिस्तान उठाता रहा। हालांकि, हाल के दिनों में नियंत्रण पर सीमा पार से अतिक्रमण का कोई प्रयास नहीं हुआ है और एक बार फिर दोनों देशों के बीच कारोबार और आर्थिक संबंध बहाल करने की बात उठ रही है। दोनों देशों के राजनयिकों और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर पर अनौपचारिक वार्ताएं शुरू हुई हैं।
गले की हड्डी बने मुद्दे
बारह महीनों के दौरान में पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मुद्दे को उठाने और भारत को घेरने के कई नाकाम प्रयास कर चुका है। भारत भी स्पष्ट रूप से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान का नकाब उतारता रहा है। भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बता चुका है कि अनुच्छेद 370 हटाना उसका आंतरिक मामला है। अतीत में राजनयिकों को तलब करने और दोनों देशों ने अपने-अपने राजनयिकों को वापस बुलाने का एलान किया। उच्चायोग का दर्जा कम किया। पाकिस्तान ने भारत पर पेरिस स्थित वैश्विक संस्था वित्तीय कार्रवाई कार्य बल की बैठकों में होने वाली चर्चाओं का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया। इस मुद्दे पर पाकिस्तान घिरा हुआ है। इसके अलावा दोनों देश पाकिस्तान में जासूसी के आरोप में मौत की सजा पाए कुलभूषण जाधव को किस प्रकार अपनी बात रखने का मौका दिया जाए, उस पर भी सहमति बनाने में नाकाम रहे।
आगे की राह
हाल में सामने आए जनरल नरवणे के बयान और ‘असाइनमेंट वीजा’ बहाली के कदम में नया कुछ भी नहीं है, लेकिन शांतिपूर्ण समाधान खोजने की दिशा में अगर देखा जाए तो दोनों पक्षों के रुख में ये घटनाएं नरमी का संकेत हैं। जनरल नरवणे ने स्पष्ट कहा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच टूटे हुए विश्वास को बहाल करना पूरी तरह से पाकिस्तान की जिम्मेदारी है। नरवणे ने कहा कि, पाकिस्तान और भारत के बीच दशकों पुराने अविश्वास को रातोरात खत्म नहीं किया जा सकता।
अगर वह (पाकिस्तान) संघर्ष विराम का सम्मान करता है और भारत में आतंकवादियों को भेजना बंद कर देता है, तो इनसे विश्वास बढ़ेगा। जाहिर है, भारत की नीति स्पष्ट है – विश्वास बहाली की जिम्मेदारी पूरी तरह से पाकिस्तान पर है। दूसरी ओर, कश्मीर और अफगानिस्तान के मुद्दे पर पाकिस्तान ने भारत से कुछ भरोसा चाहा है। पाकिस्तान में विदेश सेवा की अफसर रहीं तसनीम असलम का बयान सामने आया था कि भारत को विश्वास कायम करने के लिए कश्मीर और अफगानिस्तान में कुछ ऐसे कदम उठाने होंगे, जिससे यह संकेत मिले कि वह पाकिस्तान के साथ सामान्य संबंध चाहता है। पाकिस्तान का यह रुख रहा है कि भारत को पहले कश्मीर का विशेष दर्जा बहाल करना चाहिए। दूसरे, अफगानिस्तान समेत विभिन्न मुद्दों पर ठोस वार्ता करनी होगी।
वैश्विक कूटनीति
भारतीय सेनाध्यक्ष के बयान से पहले पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर संघर्ष विराम समझौते के बाद अपने बयान में कहा था भारत-पाकिस्तान के बीच मजबूत संबंध वह कुंजी है, जिससे पूर्व और पश्चिम एशिया के बीच संपर्क सुनिश्चित करते हुए दक्षिण और मध्य एशिया की क्षमताओं का दोहन किया जा सकता है। उनका कहना था कि हालांकि, दो परमाणु हथियार संपन्न पड़ोसी देशों के बीच संघर्ष की वजह से यह अवसर बंधक बना हुआ है। हालांकि, पाकिस्तानी सेना प्रमुख के इस बयान के बाद पाकिस्तान के वाणिज्य मंत्रालय ने संघीय मंत्रिमंडल को भारत के साथ व्यापार से संबंधित एक प्रस्ताव भेजा था, जिसे इमरान खान की अध्यक्षता में खारिज किया गया और इस मुद्दे को भारत की तरफ से कश्मीर की विशेष संवैधानिक स्थिति को बहाल करने से जोड़ दिया गया।
क्या कहते
हैं जानकार
स्थिति में सुधार का कारण संघर्ष विराम नहीं है। सीमा पर खामोशी है लेकिन, आगे क्या करना है यह दोनों देशों के सरकारों पर निर्भर है। अभी पाकिस्तान ने एक असैनिक अधिकारी को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया है, जिसका स्पष्ट अर्थ यह है कि अब अगर वार्ता का दौर शुरू हुआ तो सेना सामने नहीं आएगी। आर्थिक मंदी, कोविड और सीमा पर तनाव के बीच हालात में सुधार भारत के पक्ष में है।
– केपी फाबियान, पूर्व राजनयिक
यह महत्त्वपूर्ण है कि संघर्ष विराम को राजनीतिक प्रक्रिया का समर्थन प्राप्त हो। सेना हिंसा को कम या नियंत्रित कर सकती है। लेकिन इसके बाद राजनेताओं को एक समाधान खोजने के लिए कदम उठाने की जरूरत होती है। अगर दोनों देशों के बीच स्थिति में सुधार होता है तो इसकी वजह संघर्ष विराम नहीं बल्कि संघर्ष विराम के कारण उच्चस्तरीय वार्ता है।
– राधा कुमार, कश्मीर पर 2010 में केंद्र सरकार की मध्यस्थ
सार्क की कूटनीति
सार्क सम्मेलन को लेकर गतिरोध सामने आया। हालांकि कोविड-19 महामारी और इसकी रोकथाम के लिए दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के सदस्यों के बीच संयुक्त प्रयासों से भारत-पाकिस्तान संबंधों में सुधार की उम्मीद जगी, लेकिन इसके बाद इस्लामाबाद ने सार्क की अधिकांश उच्चस्तरीय बैठकों का इस्तेमाल कश्मीर और अन्य द्विपक्षीय मुद्दे उठाने के लिए किया। भारत ने वीडियो कांफ्रेंस के जरिए हुई सार्क की बैठकों में कश्मीर मुद्दा उठाने के लिए पाकिस्तान की निंदा की और कहा कि इस्लामाबद ने इस मौके का दुरुपयोग किया, क्योंकि यह राजनीतिक नहीं बल्कि मानवीय मंच है। जानकारों की राय में इस्लामाबाद और नई दिल्ली के बीच अविश्वास के चलते 2020 में द्विपक्षीय संबंध आगे नहीं बढ़ पाए।