पड़ोसी मुल्क की शिक्षण संस्थाओं में किस तरह आतंकवाद की ट्रेनिंग दी जा रही है, इस बारे में नया खुलासा सामने आया है। गौहर आफताब नाम के पाकिस्तानी सोशल एक्टिविस्ट ने अपना अनुभव बांटते हुए बताया है कि कैसे उसे सिर्फ 12 साल की उम्र में जिहाद के लिए बरगलाया गया। TEDx टॉक में बोलते हुए आफताब ने बयां किया कि कैसे वे अाजाद कश्मीर पहुंचकर बंदूक उठाने को तैयार हो गए थे, मगर परिवार के प्रेम ने उन्हें रोक लिया। आफताब का परिवार 1990 के दशक में सऊदी अरब से लाहौर वापस आया। उनका एडमिशन शहर के एलीट बोर्डिंग स्कूल में कराया गया। जहां नौंवी कक्षा में उनकी मुलाकात इस्लामिक शिक्षा के टीचर से हुई। आफताब बताते हैं कि टीचर का दावा था कि उसने 80 के दशक में सोवियत के खिलाफ जंग में हिस्सा लिया था। टीचर ने सिलेबस की जानकारी बहुत कम दी, उसका पूरा ध्यान हिंदुओं, ईसाइयों और यहूदियों के खिलाफ नफरत फैलाने पर था। आफताब के अनुसार, उनका टीचर कहता था कि एक ‘मोमिन’ वह शख्स है दाहिने हाथ में कुरान और बाएं हाथ में तलवार लेकर चलता है ताकि अपने दुश्मनों का सिर कलम कर सके। उस टीचर ने इस हिंसा को सम्मान देते हुए ‘जिहाद’ का नाम दिया।
तब 13 साल के रहे गौहर अाफताब के मुताबिक, उन्हें वह बेहद आकर्षित लगे। बकौल अाफताब, ”एक ही महीने में मैं उनके पास पहुंच गया और पूछा कि मैं जिहाद के लिए कैसे योगदान दे सकता हूं। उसने पैसा दान देने की सलाह दी। अगर मैं अल्लाह के लिए 10 रुपए निकालूंगा तो एक गोली खरीद सकूंगा जो कि कश्मीर में किसी काफिर के सीने के आर-पार हो जाएगी। मैं जो भी मदद कर सकता था, मैने की। उसने मुझसे कहा कि इसके बदले मुझे ‘सवाब मिलेगा। मैं और पढ़ना चाहता था। मुझे उर्दू ठीक से पढ़नी नहीं आती थी इसलिए मैंने पवित्र कुरान का अंग्रेजी संस्करण पढ़ना शुरू किया। जल्द ही मैंने खुद को अपने टीचर के सामने कश्मीर में जंग के मैदान में भेजने की गुजारिश करते पाया। वह मुझे टरकाता रहा, हफ्तों बाद जाकर उसने हामी भरी।”
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अाफताब कहते हैं, ”प्लान ये था कि मैं स्कूल के आखिरी दिन मैं आजाद कश्मीर के एक ट्रेनिंग कैंप के लिए रवाना होऊंगा। लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था। मेरे रवाना होने से पहले ही मेरी दादी की तबियत खराब हो गई। मेरा पूरा परिवार मेरे हॉस्टल से मेरा सामान पैक कर मुझे घर ले गया। अगले कुछ महीने मैंने अपनी दादी को दर्द में जीते देखा। इससे मेरी मां भावुक रूप से बेहद कमजोर हो गई थीं। ऐसी हालत में मैं अपने परिवार को नहीं छोड़ सकता था। मेरे पास अपने टीचर से मिल पाने का वक्त ही नहीं था। छुट्टियां खत्म होते-होते मैंने जिहाद के लिए घर छोड़ने का इरादा पूरी तरह त्याग दिया था। जब मैंने कुरान और इस्लामी धर्मग्रंथों को दोबारा पढ़ा ताे पाया कि यह ज्ञान का अथाह सागर है, और मैं उसके तल पर ही रहकर जिहाद करने को तैयार हो गया था। मेंने कई इंडस्ट्रीज में काम किया है, लेकिन हर बार मैंने बेचैन होकर नौकरी छोड़ी।”
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अब अाफताब स्कूली बच्चों के लिए कहानियां और कॉमिक बुक्स लिखते हैं। उनकी सीरीज में धार्मिक कट्टरता के मुद्दे को प्रमुखता से दिखा जाता है ताकि बच्चे जहर और नफरत से भरे समाज से दूर हो सकें।
देखें, आफताब की प्रेरणा देने वाली कहानी:

