सन 2008 की एक सुबह। हसन शिफाजी नींद से उठा और एक बड़ा फैसला करने के जुनून में उसने संगीत की सारी सीडी कबाड़ के हवाले कर डालीं। एक दिन उसने मजीदिया स्कूल के अपने दोस्तों के साथ माले की गलियों में घूमना, फुटबाल खेलना, वर्जिश करना छोड़ दिया। इसकी जगह उसने मजहबी अध्ययन और स्थानीय धर्म प्रचारकों के बीच वक्त काटना शुरू कर दिया।
शिफाजी की मां बताती हैं कि तीनरातों में एक रात उसे यह सपना जरूर आता। सपने में वह खुद को पैगंबर के साथ जंगी मैदान में देखता। उस सुबह वह जोर से चिल्लाता हुआ उठा। उसने चीखते हुए अपनी सारी सीडियां उठाईं और कचरे में फेंक दिया और कुरान की आयतें बोलने लगा।
पिछली शरद ऋतु में अल-नुसरा मोर्चे से जुड़े बिलाद अल-शाम मीडिया ने खबर दी कि शिफाजी, जो अब अबू नूह के नाम से जाना जाता है, अरीहा के पास लड़ता हुआ मारा गया। वह अपने पीछे पत्नी मरियम और दो लड़कों (चार साल का नूह बिन हसन और दो साल का उमर बिन हसन) को छोड़ गया है।
मालदीव में इस तरह की कहानी आम होती जा रही है। इसके पीछे हाथ है मालदीवी समाज में ध्वस्त होते मूल्यों और नशीली दवाओं, व गैंगों के खतरनाक असर का जिनके पाश में नौजवान आसानी से फंस रहे हैं। ये गिरोह लोगों को आइएस तक पहुंचने का रास्ता तैयार करते हैं।
मिली जानकारी के अनुसार, आइएस के चंगुल में पड़ने वाले 200 से ज्यादा नौजवान वे हैं, जो इस्लाम कठमुल्ला बनने के पहले नशीली दवाओं के चक्कर में पड़ चुके थे। सीरिया में चल रही लड़ाई में जो आखिरी मालदीवी नौजवान मारा गया, वह अहमदमुंसिफ था।
वह फुवाहमुलुक द्वीप का वासी था। कभी वह नशे के कारोबारी के रूप में बदनाम था और एक पुलिस अधिकारी पर हमले के आरोप में वह जेल में भी बंद रहा। अक्तूबर 2014 में वह अपनी बीवी सूमा अली के साथ आइएस के लिए लड़ने को चला गया।
मुंसिफ का दोस्त अपनी पहचान छिपाने की शर्त पर कहता है कि उसने (मुंसिफ) कहा था कि वह अपने जीवन से शर्मिंदा है। उसके लिए मालदीव गुनाहों की धरती है। अहमद 12 मार्च को मारा गया था।
शिफाजी परिवार की ओर से मिली जानकारी के अनुसार, उसका जेहाद में शामिल होने का फैसला विचारधारा से प्रेरित था। वह मालदीव में नहीं रहना चाहता था। वह मानता था कि यह नाखुदा धरती है। वह इस्लाम के लिए लड़ना चाहता था। शिफाजी के वालिद हुसैन कहते हैं कि मुझे उसकी मौत पर फख्र है।
शिफाजी के दोस्त उसे एक ऐसे शख्स के तौर पर याद करते हैं, जो माले की सड़कों की गैंगबाजी के संपर्क में भी रहा और फुटबाल खेलना, संगीत सुनना पसंद करता था। उसका हीरो फुटबाल खिलाड़ी अली अशफाक था। दो साल तक उसका मरियम से मिलना-जुलना रहा। बाद में उसने शादी तभी कि जब वह मजहबी रूप से ‘जागरूक’ हो चुका था। उसने मरियम से इस शर्त पर शादी की वह नए मजहबी सिद्धांतों को स्वीकार करे।
सन 2012 में शिफाजी इस्लामी कट्टरपंथियों की उस उन्मत्त भीड़ के साथ था जिसने माले के राष्ट्रीय संग्रहालय को नष्ट कर दिया था। इस भीड़ ने महात्मा बुद्ध के प्राचीन, बेशकीमती शीश को नष्ट किया था।
यह एक हकीकत है कि आइएस में शामिल होने के लिए मालदीव से जो जेहादी गए हैं उनको भेजने में नशे के सौदागरों और सड़क पर आतंक का पर्याय बन चुके गैंगों का काफी योगदान है। मसौदी, कुदाहेमवेरू, बोस्निया, बुरू औरर पेटरेल जैसे खूनी गिरोहों ने सौ से ज्यादा लड़ाके सीरिया और इराक में सक्रिय जेहादी समूहों के पास भेजे हैं।
इन लोगों की भर्ती के लिए संपर्क का मुख्य केंद्र जेल है। यहां इस्लामी प्रचारक समूह अदम शमीम का ओडिसी आफ दावा, इब्राहीम फरीद का इस्लामिक फाउंडेशन, द जमात उल बायन, जमात उल सलाफ सरगर्म हैं। ये समूह नौजवानों को इस्लामी कट्टरपंथी बनाने की राह तैयार करते हैं। हालांकि ये धर्मोपदेशक इस बात से इनकार करते हैं कि उनका किसी तरह के खूनी जेहादियों से कोई संपर्क है।
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