पकिस्तान की नेशनल इकोनॉमिक काउंसिल का अनुमान था कि 2023 में उनकी GDP 3.5 फीसदी की रफ्तार से आगे बढ़ेगी अलबत्ता वर्ल्ड बैंक को ये शाहबाज शरीफ सरकार का ख्याली पुलाव ही लगता है। मंगलवार को जारी ग्लोबल इकोनॉमिक प्रोसपेक्ट्स रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस वित्तीय वर्ष में पाकिस्तान की अर्थ व्यवस्था की रफ्तार 2 फीसदी से ऊफर नहीं उठने जा रही है। चाहें सरकार कितना भी जोर लगा ले।
वर्ल्ड बैंक का ये दावा पाकिस्तान की मौजूदा हालात को देखकर किया गया है। इसके लिए जो कारक जिम्मेदार माने गए हैं उनमें 2022 की बाढ़ को सबसे अहम कारण बताया गया है। बाढ़ से पाकिस्तान का एक तिहाई हिस्सा जलमग्न हो गया था। बाढ़ से कितना बड़ा नुकसान पाकिस्तान को झेलना पड़ा इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि ये नुकसान GDP का 4.8 फीसदी था। बाढ़ का असर आज तक देखा जा रहा है।
विदेशी मुद्रा कोष के सीमित होने की वजह से कम हुआ औद्योगिक उत्पादन
पाकिस्तान के लिए दूसरा बड़ा झटका शाहबाज शरीफ सरकार की नीतियां हैं। सरकार अपनी पॉलिसी को लेकर ही आश्वस्त नहीं है। वर्ल्ड बैंक का मानना है कि सरकार एक तरफ जाने की कोशिश करती है। लेकिन उसे लगता है कि ये ठीक नहीं है तो वो यू टर्न लेने लग जाती है। सरकार की सबसे बड़ी परेशानी की वजह सीमित विदेशी मुद्रा कोष है। अभी के हालात में पाकिस्तान के पास जो फॉरेन करेंसी है वो एक माह के आयात का दाम ही चुकाे में कारगर है। पाकिस्तान अपनी जरूरत का बहुत सारा सामान दूसरे देशों से खरीदता है। जाहिर है पैसा नहीं होगा तो चीजें भी नहीं मिलेंगी।
1970 के दशक के बाद से उच्चतम स्तर पर पहुंची महंगाई, 38 फीसदी है आंकड़ा
विदेशी मुद्रा कोष की सीमित क्षमता के चलते ही औद्योगिक उत्पादन पिछले साल की तुलना में 25 फीसदी तक गिरा है। सरकार ने स्थिति को संभालने के लिए एक्सचेंज रेट को लचीला किया। इसकी वजह से पाकिस्तानी रुपये की वैल्यू साल की शुरुआत में 20 फीसदी तक कम हो गई। लेकिन देखा जाए तो इसका बहुत ज्यादा असर देखने को नहीं मिला। मई के आंकड़े बताते हैं कि महंगाई में 38 फीसदी का तड़का लग चुका है। 1970 के बाद के दौर में महंगाई का ये आंकड़ा सबसे ज्यादा है। पाकिस्तान सरकार की नीतियां महंगाई की बढ़ती दर के मुताबिक मेल नहीं खा रही हैं।
