अमेरिका में हुए चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने जीत दर्ज कर ली है। इस बीच एक अहम सवाल इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष से जुड़ा है। जिसे लेकर अब ट्रंप सरकार का क्या रोल होगा? यह देखना महत्वपूर्ण रहेगा। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा चुने जाने का स्वागत करने में देर ना करते हुए कहा कि यह इतिहास की सबसे बड़ी वापसी है। इसके अलावा इजरायल के अलग-अलग मंत्री भी डोनाल्ड ट्रंप की जीत पर खुशी जता रहे हैं।
सबसे पहले कॉल पर बात करने वालों में से एक इजरायली पीएम
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू उन पहले लोगों में से एक थे जिनकी डोनाल्ड ट्रंप से जीत के बाद कॉल पर बात हुई है। यह उनके कार्यालय ने एक बयान में कहा है। जिसमें लिखा है, “दोनों की बातचीत गर्मजोशी और सौहार्दपूर्ण थी और दोनों ने इजरायल की सुरक्षा के लिए मिलकर काम करने पर सहमति जताई, और ईरानी खतरे पर भी चर्चा की है।”
कमर्शियल टीवी चैनल 12 द्वारा प्रकाशित चुनाव के बाद के सर्वे के मुताबिक 67 फीसदी इजरायलियों ने कहा कि वे ट्रम्प की जीत से खुश हैं। यह भावना सड़कों पर भी साफ देखी जा सकती थी। डीडब्ल्यू से बात करते हुए येरुशलम के राहगीर ने कहा, “हमें उम्मीद है कि डोनाल्ड ट्रंप हमारे देश के लिए, अमेरिका के लिए भी महान काम करेंगे। लेकिन मुख्य रूप से उन्होंने बहुत सारे वादे किए हैं और अगर वे उनमें से आधे वादे भी पूरे कर पाते हैं, तो उनके पास कहने के लिए शब्द नहीं होंगे।” हालांकि, नेतन्याहू सरकार के कुछ आलोचकों के लिए ट्रंप की वापसी अच्छी खबर नहीं है।
इजरायली थिंक टैंक ओफ़ेक (Ofek) के सह-संस्थापक येहुदा शॉल ने कहा, “मुझे लगता है आज हमारे पास जिस तरह की इजरायली सरकार है, जो इस देश के इतिहास में सबसे चरमपंथी सरकार है, ट्रंप को व्हाइट हाउस में वापसी उसके लिए अमेरिकी लॉटरी जीतने का जैसा है।”
इजरायल को लेकर डोनाल्ड ट्रंप की पहली सरकार का क्या रुख था?
अपने पहले कार्यकाल के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने इजरायल के समर्थन में कई विवादास्पद नीतिगत कदम उठाए थे। साल 2017 में उन्होंने यरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता दी थी और अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से वहां ट्रांसफर कर दिया था। यह बड़ा कदम था क्योंकि इस मामले से दशकों की अमेरिकी नीति और अंतर्राष्ट्रीय राय पलट गई थी। उन्होंने कब्जे वाले गोलान हाइट्स पर इजरायल की संप्रभुता को भी मान्यता दी थी, जिसे इजरायल ने 1967 के युद्ध के दौरान सीरिया से कब्जा कर लिया था और 1981 में अवैध रूप से कब्जा कर लिया था।
डोनाल्ड ट्रंप ने को अब्राहम समझौते का निर्माता भी माना जाता है। यह समझौतों की एक श्रृंखला है जिसने कुछ अरब देशों के साथ संबंधों को सामान्य बनाया लेकिन फिलिस्तीनियों और फिलिस्तीनी-इजरायल संघर्ष के किसी भी समाधान को नज़रअंदाज़ कर दिया। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में इजरायल और सऊदी अरब के बीच संबंधों को सामान्य बनाने के लिए जोर दे सकते हैं।
वह डील ऑफ द सेंचुरी को फिर से अमल में लाने का प्रयास भी कर सकते हैं। जिसे लेकर दो पक्ष हैं; एक यह कि यह मिडिल ईस्ट में शांति का एक प्रयास है और दूसरा यह कि यह यह समझौता लाखों फिलिस्तीनियों के अधिकारों को छीनने और उनकी ज़मीन पर कब्जे को मान्यता देने के लिए लाया गया था।
आज की तारीख में ट्रंप और नेतन्याहू के रिश्ते कैसे हैं?
हाल के वर्षों में नेतन्याहू और ट्रंप के बीच संबंध ठंडे पड़ गए हैं। जब ट्रम्प 2020 का चुनाव हार गए तो वे नाराज़ दिखे जब नेतन्याहू ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को राष्ट्रपति पद जीतने पर बधाई दी थी। 7 अक्टूबर, 2023 को हमास के नेतृत्व वाले आतंकवादी हमलों के बाद ट्रंप ने नेतन्याहू की बिना तैयारी के आलोचना की थी और दावा किया था कि अगर वह अभी भी राष्ट्रपति होते तो ऐसा नहीं होता।
कुछ विश्लेषकों ने नेतन्याहू के ट्रंप के साथ संबंधों को जटिल बताया है, जिन्हें अक्सर अप्रत्याशित बताया जाता है। न्यूयॉर्क में पूर्व इजरायली राजनयिक एलन पिंकस ने कहा, “मुझे लगता है कि वह ट्रंप से कुछ हद तक डरे हुए हैं। उन्हें लगता है कि वह उन्हें अपने हिसाब से ढाल सकते हैं, लेकिन उन्हें डर है कि अगर ट्रंप उन पर नज़र रखेंगे, तो ट्रंप बहुत नाराज़ हो सकते हैं, जबकि बाइडेन ने किसी कारण से उन पर कभी दबाव नहीं डाला, कभी उनकी चालाकी को नहीं रोका।”
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क्या अब हल हो जाएगा इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष?
मिडिल ईस्ट की स्थिति पर निश्चित रूप से अगले अमेरिकी प्रशासन को ध्यान देने की आवश्यकता होगी। डोनाल्ड ट्रंप ने इस क्षेत्र के लिए कोई बड़ी नीति योजना नहीं बनाई है, सिवाय इसके कि उन्होंने दावा किया है कि वे गाजा और लेबनान में युद्ध समाप्त कर देंगे, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि वे किस तरह और कैसे करेंगे? हालांकि ऐसा माना जाता है कि नेतन्याहू इस लिए खुश हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ट्रंप इस मुद्दे पर उनपर दबाव नहीं बनाएंगे।