H1B वीज़ा टैरिफ, रूस-यूक्रेन युद्ध और कई दूसरे मुद्दों की वजह से अमेरिका और भारत के रिश्ते पिछले कुछ समय से तनावपूर्ण बने हुए हैं। इस बीच जनसत्ता के सहयोगी इंडियन एक्सप्रेस ने डेमोक्रेटिक कांग्रेसमैन अमी बेरा से खास बातचीत की। वर्तमान में चल रहे तमाम विवादों पर उनसे सीधे सवाल पूछे गए और उनकी तरफ से भी स्पष्ट जवाब दिए गए। उन्होंने कुछ मौकों पर राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों की आलोचना भी की।
तो आइए, इस इंटरव्यू को पढ़ते हैं।
सवाल: H1B वीज़ा को लेकर जो नियम बदले गए हैं, आप उससे क्या मतलब निकालते हैं?
जवाब: मैं इस तरह की किसी भी पॉलिसी का समर्थन नहीं करता हूं, क्योंकि आगे चलकर इस वजह से अमेरिकी कंपनियों को ही नुकसान होने वाला है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि कई भारतीय कर्मचारी इस समय अमेरिका में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभा रहे हैं और बड़े-बड़े पदों पर बैठे हुए हैं। जिस तरह से इस पॉलिसी को लाया गया है, उसका असर प्रशासन के अंदर भी देखने को मिल रहा है। मैं उम्मीद करता हूं कि अमेरिका की दूसरी टेक कंपनियां राष्ट्रपति से बैठकर उनके फैसले के आर्थिक परिणामों पर चर्चा करेंगी। मुझे तो लगता है कि आगे चलकर भारतीय कंपनियों को ही फायदा होगा। अगर माइक्रोसॉफ्ट जैसे संस्थानों को अमेरिका में लोग काम करने के लिए नहीं मिलते, तो वे भारत में विस्तार करने का विकल्प चुन सकते हैं।
सवाल: जो नियम बदले गए, उनकी वजह से कई परिवार एक-दूसरे से बिछड़ जाएंगे। इस बारे में आपकी क्या राय है?
जवाब: हमें अभी-अभी इस पॉलिसी के बारे में पता चला है। पहले से कांग्रेस को इस बारे में नहीं बताया गया था। हम प्रशासन से अपील करते हैं कि वह इस मुद्दे पर स्पष्टता दे। वैसे भी यह अमेरिका के लिए अच्छा संदेश नहीं है। हमने ऐसी भी खबरें देखी हैं कि कंपनियां कह रही हैं कि वहां काम करने वाले लोग जल्द से जल्द अमेरिका छोड़कर अपने घर लौट जाएं। इसमें कोई दो राय नहीं कि यह एक बड़ा और गंभीर फैसला है। मैं इससे सहमत नहीं हूं। अगर इसे लागू करना ही था, तो चेतावनी और जानकारी पहले देनी चाहिए थी। ऐसा लग रहा है यह योजना तो कोई पीटर नवारो जैसा शख्स लाया हो।
सवाल: पीटर नवारो का कहना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध असल में नई दिल्ली का युद्ध है। आपकी क्या राय है?
जवाब: मुझे नहीं लगता कि इस तरह की बयानबाजी रिश्तों को सुधार सकती है। अगर मैं भारत का पक्ष समझते हुए बोलूं, तो मानता हूं कि पीटर नवारो जैसे लोगों को नज़रअंदाज़ करना चाहिए। प्रशासन का हिस्सा होते हुए भी किसी वरिष्ठ अधिकारी को ऐसे बयान नहीं देने चाहिए।
सवाल: चीन भी तो शुरू से रूस से तेल ले रहा है। फिर भारत पर ही इतना टैरिफ क्यों लगा?
जवाब: यह सही बात है कि चीन रूस से ज्यादा तेल ले रहा है। ऐसे में सिर्फ भारत को अलग-थलग कर देना किसी रणनीति जैसा नहीं दिखता। ज्यादातर डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन नेता मानते हैं कि भारत आर्थिक रूप से आगे बढ़ रहा है। हम भारत को पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता लाने वाले एक अहम देश के रूप में देखते हैं।
सवाल: क्या यह माना जा सकता है कि मोदी-ट्रंप के निजी रिश्ते भारत-अमेरिका रिश्तों से अलग हैं?
जवाब: हमें समझना पड़ेगा कि राष्ट्रपति ट्रंप काफी अनप्रेडिक्टेबल हैं। कई बार उनसे डील करना मुश्किल हो जाता है। हो सकता है आज वे कुछ कहें और अगले दिन बयान बदल जाए। हमें इस चीज़ की आदत पड़ चुकी है, इसलिए हर बात पर रिएक्ट भी नहीं किया जाता। लेकिन भविष्य की सोचें तो रिश्तों को सिर्फ किसी एक राष्ट्रपति के कार्यकाल तक सीमित नहीं रखना है। ऐसे में कांग्रेस के विचार भी मायने रखते हैं।
सवाल: आपको क्या लगता है कि व्हाइट हाउस और कांग्रेस के नेताओं के बीच किन मुद्दों पर बातचीत होती है?
जवाब: मैं पहले ही साफ कर चुका हूं कि काफी हड़बड़ी वाले फैसले लिए जा रहे हैं। हमें तो यह तक नहीं पता कि H1B वीज़ा का फैसला किस तरीके से लागू हुआ। पहले कहा गया था कि सालाना फीस देनी होगी, फिर पीछे हटकर कहा गया कि एक ही बार देनी होगी। इस तरह किसी बड़ी योजना को लागू नहीं किया जाता।
सवाल: भारत-पाकिस्तान को लेकर भी राष्ट्रपति ट्रंप लगातार बयानबाजी कर रहे हैं। आपका इस पर क्या कहना है?
जवाब: अप्रैल में जब पहलगाम में आतंकी हमला हुआ था, उसके बाद चार दिन हालात काफी तनावपूर्ण थे। भारत और पाकिस्तान युद्ध की दहलीज पर खड़े थे। हम सौभाग्यशाली हैं कि दोनों देशों ने संयम दिखाया। मैं मानता हूं कि अमेरिका ने एक सपोर्टिंग रोल निभाया, लेकिन अंत में फैसला भारत और पाकिस्तान को ही करना था। राष्ट्रपति ट्रंप के कुछ बयानों से भारत असहज भी हुआ। ऐसे मामलों में मुझे लगता है कि विशेष दूत (Special Envoy) की भूमिका अहम हो सकती है।
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