महामारी ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था और उसके क्षेत्रीय व वैश्विक प्रभावों को नकारात्मक रूप में प्रभावित किया। एक तरफ जब अमेरिका में कोरोना कहर बरपा रहा था तो चीन दक्षिण और पूर्वी चीन सागर में अमेरिका और उसके साथियों के ‘फ्री एंड ओपन इंडो पैसिफिक स्ट्रेटजी’ को चुनौती देता पाया गया। इस दौरान अमेरिका ने ‘क्वाड’ को ‘नाटो’ जैसा आकार देने की मंशा को जमीनी मजबूती दी। अमेरिका सहित क्वाड देशों ने मौजूदा विश्व व्यवस्था में शक्तिसंतुलन को स्थापित करने के लिए भारत-प्रशांत क्षेत्र से जुड़ी रणनीति को ही सबसे बड़ा अस्त्र बनाया और यह कोशिश की कि फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन जैसे देश खुले तौर पर चीन को प्रतिसंतुलित करने के मिशन में लगें।
क्वाड देशों की मंशा को मूर्तमान भी होते देखा गया जब फ्रांस इसी वर्ष ‘इंडियन ओशेन रिम एसोसिएशन’ में 23वें सदस्य के रूप में जुड़ा। यही नहीं, इमैनुएल मैक्रों के भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए पहले से तय रणनीतिक ब्लूप्रिंट के तहत बंगाल की खाड़ी में फ्रांस के नेतृत्व में क्वाड सदस्य देशों के साथ ‘ला पेरोज’ नामक संयुक्तनौसैनिक अभ्यास भी किया गया। आज फ्रांस पश्चिमी हिंद महासागर में भी ऐसे संयुक्त नौसैनिक अभ्यासों को दिशा देने में लगा है। दूसरी तरफ आॅस्ट्रेलिया और चीन के रिश्ते अत्यंत नाजुक दौर में हैं। दोनों ने आर्थिक-राजनयिक संबंधों को खत्म करने तक की बात कह दी है। क्वाड सदस्य भारत ने भी गलवान घाटी और ‘फिंगर एरियाज’ में चीन के दावों को खारिज करते हुए वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपना अवसंरचना निर्माण कार्य बढ़ा कर चीन को यह संदेश दे ही दिया कि वह हर स्थिति के लिए तैयार है।
इस तरह यह साफ दिख रहा है कि लोकतांत्रिक, कानून के शासन का सम्मान करने वाले देश उत्तर कोविड विश्व व्यवस्था में भी सर्वाधिकारवादी व प्रभुत्ववादी मानसिकता वाले देशों के खिलाफ अपनी लड़ाई किसी न किसी रूप में जारी रखेंगे। ल्ल