चीनी सबमरीन के लंबी दूरी तक तैनाती की क्षमता पर सवाल उठने लगे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि चीन ने अपनी किसी भी परमाणु या पारंपरिक पनडुब्बी को सितंबर 2017 से हिंदमहासागर में नहीं भेजा है। यह पीपल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (पीएमएलए) की क्षमता पर सवालिया निशान खड़ा करता है।

रक्षा मंत्रालय से जुड़े विशेषज्ञों ने बताया है कि ‘अगस्त 2018 में चीन की परमाणु पनडुब्बी ने भारतीय जल सीमा में प्रवेश किया था लेकिन वह इंडोनेशिया के पास स्थित सुंडा स्ट्रेट से वापस लौट गई थी। 2017 से पहले चीन प्रत्यके तीन महीने में परमाणु और पारंपरिक पनडुब्बियों को हिंद महासागर क्षेत्र में भेजता था। जिसके बाद ये पनडुब्बियां जिबोती या फिर कराची स्थित पाकिस्तान नेवी के बेस की तरफ मुड़ जाती थीं।’

विशेषज्ञों का कहना है कि चीन ने दिसंबर 2013 से हिंद महासागर में अपनी पनडुब्बियों को भेजना शुरू किया था। चीनी सेना मलक्का जलडमरूमध्य के जरिए से दाखिल होती रही हैं। अतीत में भी उन्हें पनडुब्बियों के रख-रखाव में काफी पेरशानियों का सामना करना पड़ा है। ऐसे में अब चीनी सबमरीन के लंबी दूरी तक तैनाती की क्षमता पर संदेह होने लगा है।

चीन समुद्र में लूट को रोकने के बहाने अपने युद्धपोतों की अदन की खाड़ी में तैनाती के लिए हिंद महासागर और अरब सागर में भेजती रही है। लेकिन विशेषज्ञों ने उनके इस कदम पर सवाल उठाए हैं क्योंकि समुद्री लुटेरे व्यापारी जहाजों को हाईजैक करने के लिए सामान्य किस्म की नाव और उपकरणों का उपयोग करते हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत पूरी तरह से चौकन्ना है और लगातार समुद्र में अपनी क्षमताओं को बढ़ा रहा है। बता दें कि चीन पिछले काफी समय से समुद्र में अपनी ताकत को बढ़ाने में लगा हुआ है।