पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता की ओर से हाल ही में किए गए ट्वीट तथा बयानों से इस बात के संकेत मिले हैं कि सैन्य और असैन्य नेतृत्व के बीच तनाव है। पाकिस्तानी अखबार ‘न्यूज इंटरनेशनल’ के मुताबिक सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल असीम सलीम बाजवा के ट्वीट और बयानों से उस वक्त सैन्य-असैन्य नेतृत्व में तनाव की स्थिति सामने आई है जब देश आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दोनों पक्षों के बीच सर्वश्रेष्ठ समन्वय और एकजुटता की उम्मीद करता है। असैन्य सरकार ने शायद सैन्य प्रतिष्ठान की उम्मीदों के हिसाब से काम नहीं किया हो, लेकिन ‘मतभेदों को इस तरह से सार्वजनिक करने से आतंकवाद एवं चरमपंथ के खिलाफ प्रभावी लड़ाई के मकसद को कोई फायदा नहीं होगा।
रिपोर्ट के मुताबिक लाहौर हमले के बाद आतंकवाद रोकने के लिए सभी सरकारी संस्थाओं के बीच समन्वय को और बेहतर बनाने की जरूरत थी लेकिन सेना प्रवक्ता के ट्वीट ने कुछ और ही काम किया। सूचना मंत्री परवेज राशिद और आईएसपीआर महानिदेशक के संयुक्त संवाददाता सम्मेलन के दौरान उन्होंने (आईएसपीआर महानिदेशक) ने एक बार फिर कुछ ऐसा कहा, जिससे दोनों पक्षों के बीच की खाई और चौड़ी हो गयी।
अखबार ने लिखा है कि इस स्थिति में संविधान द्वारा प्रदत्त आम लोगों की सरकार कमजोर प्रतीत होती है और इस तरह के संकेत मिलते हैं कि सेना सरकार से उच्च्पर काम कर रही है। मतभेद की किसी भी स्थिति में दोनों पक्षों को ‘बंद दरवाजे के भीतर ऐसे मामलों पर चर्चा करनी चाहिए। यह देखना अच्छा है कि शर्मिंदगी झेलने के बावजूद संघीय और पंजाब की सरकारें आईएसपीआर महानिदेशक के बयान का सार्वजनिक रूप से खंडन करने से बच रही हैं।
लाहौर हमले के बाद बाजवा ने ट्वीट कर घोषणा की थी कि सेना प्रमुख ने एक उच्च स्तरीय सुरक्षा बैठक की अध्यक्षता की जिसमें आईएसआई और एमआई महानिदेशकों समेत अन्य अधिकारियों ने हिस्सा लिया और संबद्ध कमांडरों को ‘‘जल्द-से-जल्द अभियानों की शुरुआत करने’’ का निर्देश दिया।
अखबार ने कहा है कि ट्वीट के बाद मीडिया ने इस मुद्दों को जोर-शोर से उठाया और सवाल खड़ा किया कि क्या सरकार ने इसे अपनी मंजूरी दी है। लाहौर हमले के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और सेना प्रमुख राहील शरीफ अलग-अलग बैठक कर रहे हैं और समन्वित प्रयास के लिए दोनों का एकसाथ बैठना अभी बाकी है।