चीनी अधिकारियों ने देश की सेना द्वारा भारत के पूर्वोत्तर में उग्रवादियों को मदद की जाने के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि ये आरोप ‘‘अनर्गल’’ हैं और इस तरह का कोई भी संबंध ‘‘असंभव’’ है।

सरकारी अखबार ग्लोबल टाईम्स ने सरकारी थिंक टैंक के अधिकारियों के हवाले से कहा कि जनमुक्ति सेना (पीएलए) के अधिकारियों का उग्रवादी समूह – नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-खापलांग (एनएससीएन-के) के नेताओं के साथ संपर्क में होने का दावा ‘अनर्गल’ है। एनएससीएन-के पर संदेह है कि उसके उग्रवादियों ने भारतीय सेना पर हाल में हमला किया था। खबर में कहा गया कि विशेषज्ञों का मानना है कि पीएलए और भारतीय उग्रवादियों के बीच संबंध असंभव हैं।

इससे पहले भारतीय मीडिया में आई खबरों में एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी के हवाले से कहा गया था कि एनएससीएन-के ने पीएलए के निर्देशों को मानते हुए केंद्र के साथ अपने संघर्षविराम के समझौते को तोड़ दिया।

चीनी विदेश मंत्रालय ने अभी तक इन आरोपों पर कोई टिप्पणी नहीं की है। सरकारी संस्थान शंघाई इंस्टीट्यूट्स फॉर इंटरनेशनल स्टडीज में सेंटर फॉर एशियन-पैसिफिक स्टडीज के निदेशक झाओ गानचेंग ने कहा, ‘‘भारत के पूर्वोत्तर में चीन द्वारा उग्रवादी समूहों को सहयोग दिए जाने के मामले में भारतीय मीडिया लंबे समय से अफवाहें फैला रहा है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘चीन और भारतीय विद्रोहियों के बीच संबंध असंभव है, खासतौर पर भारत और चीन के बीच वर्ष 1988 में कूटनीतिक संबंधों की बहाली के बाद से।’’

तोंग्जी विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर साउथ एशियन स्टडीज के निदेशक वांग देहुआ ने कहा, ‘‘फोन पर बातचीत के अंशों से कुछ भी साबित नहीं किया जा सकता। फोन पर बातचीत के जरिए चीनी अधिकारियों की पहचान सुनिश्चित करना मुश्किल है। आसानी से ऐसी नकली बातचीत बनाई जा सकती है।’’

चाइना इंस्टीट्यूट्स ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशन्स में इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एंड साउथईस्ट एशियन एंड ओशेनिया स्टडीज के उपनिदेशक ली ली ने इन खबरों को ‘‘अनर्गल’’ बताते हुए कहा, ‘‘भारत के घरेलू मामलों में दखल देना चीन के लिए असंभव है, खासतौर पर तब, जबकि दोनों देशों के संबंध प्रधानमंत्री मोदी की पिछले माह हुई चीन यात्रा के बाद काफी सुधर रहे हैं।’’