बांग्लादेश में अप्रत्याशित हिंसा का दौर देखने को मिला है, कहना गलत नहीं होगा कि 1971 के बाद भारत के पड़ोसी मुल्क में फिर ऐसे हालात बने हैं। अब विरोध प्रदर्शन किसी भी देश में नागरिकों का अधिकार होता है, लेकिन अगर उस विरोध प्रदर्शन के साथ हिंसा जुड़ जाए, अगर आगजनी को आवाज बुलंद करने का हथियार बना लिया जाए, तब वो आंदोलन ना रहकर उपद्रव की श्रेणी में चला जाता है। इस समय बांग्लादेश में भी वैसा ही देखने को मिल रहा है, शुरुआत एक आंदोलन की हुई थी, छात्रों के मुद्दे थे, लेकिन बाद में उपद्रवियों ने उस पूरे विरोध प्रदर्शन को अलग रूप देने का काम किया।

तालिबान के बिगड़ैल लड़ाके!

अब बांग्लादेश में जो हो रहा है, खास तौर पर प्रधानमंत्री आवास में घुसकर जिस तरह से उपद्रव मचाया गया है, वो एक दूसरी अप्रत्याशित घटना की याद दिलाता है। ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है, तब भी अगस्त का महीना था और साल चल रहा था 2021। अफगानिस्तान से तब के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़ भाग चुके थे और तालिबान ने पूरे मुल्क पर कब्जा जमा लिया था। लगातार तस्वीरें और वीडियो आ रहे थे, राष्ट्रपति भवन, संसद तक में तालिबान के लड़ाके घुस चुके थे।

VIDEO NO 1

देश छोड़ने से पहले कैसे थे शेख हसीना के आखिरी 45 मिनट

बंदूक के दम पर हथियाया राष्ट्रपति भवन

जिन जगहों पर सरकारी कागज, मुहर लगाने वाली सियाही होती थी, वहां पर बंदूक के दम पर शासन हो रहा था। तालिबान के लड़ाके शान के राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठे हुए थे, दूसरे साथी अफगानिस्तान के झंडे को हटा रहे थे और बाकी सब बस आराम फरमा रहे थे। कौन सोच सकता था कि राष्ट्रपति आवास में कभी ऐसा नजारा भी देखना पड़ेगा। लेकिन यह तो तालिबान था जिसे ना संविधान से मतलब ना लोकतंत्र से, उसके लिए बस सत्ता ही सबकुछ था। लोगों को मारकर, महिलाओं को दबाकर, आजादी छीनकर उसने अफगानिस्तान में अपने अस्त होते सूरज को फिर उदय करवाया था।

बच्चों का अम्यूजमेंट पार्क तक नहीं बख्शा

जरा उस वीडियो को भी याद करने की जरूरत है जब इन तालिबानियों ने बच्चों के अम्यूजसमेंट पार्क में जमकर बवाल काटा था। एक तरफ काबुल पर कब्जा तो दूसरी तरफ तालिबान लड़कों का झूला झूलना सभी को हैरान कर रहा था। यह कौन लोग थे जिन्हें इतनी हत्याएं करने के बाद मस्ती सूज रही थी, चेहरे पर एक शिकन दिखाई तक नहीं दे रही थी। यह भी लोकतंत्र की हत्या का ही एक बड़ा प्रमाण था।

VIDEO NO 2

श्रीलंका के ‘तालिबानी’ कम नहीं

अब ताबिलान की फ्लैशबैक स्टोरी तो जान ली, अगर एक और पड़ोसी मुल्क का ही हाल देखा जाए तो पता चलता है कि वहां भी उपद्रवी जब पूरी तरह अपना विवेक खो देते हैं तो हालात कैसे विस्फोटक बन जाते हैं। यहां बात हो रही है श्रीलंका जिसने कई सालों तक गृह युद्ध का दंश झेला है, जिसने नजाके कितने युवाओं की चिता को जलते देखा है। लेकिन इस सब के बावजूद भी श्रीलंका के आर्थिक हालात ऐसे बन गए कि वहां पर जनता का गुस्सा सरकार पर फूट पड़ा।

राष्ट्रपति भवन में उपद्रवियों की स्विमिंग

बात दो साल पुरानी है, साल 2022 के जुलाई महीने में महंगाई, खाने की कमी को लेकर विरोध प्रदर्शन हिंसक रूप ले चुका था। हालात ऐसे बने कि तब के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को भी देश छोड़ भागना पड़ा था। लेकिन उनके जाते ही जो नजारा देखने को मिला, वो पूरी तरह बांग्लादेश के वर्तमान बवाल से मेल खाया। वो वीडियो भी सोशल मीडिया पर काफी रहा था। असल में जब राजपक्षे देश छोड़ भाग गए थे, उपद्रवियों ने उनके आवास पर कब्जा जमा लिया। कब्जा तो जमाया ही, वहां पर जितनी भी सुविधाएं थीं, उनका लुत्फ उठाया। स्विमिंग पूल में नहाना, आरामदायक गद्दों पर कूदना, महंगी चीजों की लूटपाट होना, यह सब बताने के लिए काफी है कि विरोध प्रदर्शन कहीं पीछे छूट चुका था और अराजकता का तांडव सिर चढ़कर बोल रहा था।

VIDEO NO 3

बांग्लादेश का हिंसक तमाशा भी देखें

अब बात बांग्लादेश की करते हैं जहां पर विरोध प्रदर्शन के नाम पर हिंदुओं के मंदिरों में तोड़फोड़ हुई है, नजाने कितने लोगों को मौत के घाट उतारा गया है और कितने ही मकान आग के हवाले कर दिए गए हैं। इस सब के ऊपर उन वीडियो नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जहां पर शेख हसीना के आवास से उपद्रवियों ने लूटपाट की है, उनके कपड़े, उनका सामान सबकुछ लेकर लोग फरार हुए हैं। इस पूरे घटनाक्रम का सबूत तो वो वीडियो है जिसमें यह उपद्रवी मौज काटते दिख रहे हैं। वो मौज भरा अंदाज ही बताने के लिए काफी है कि आरक्षण का मुद्दा कहीं गौण हो चुका है, सिर्फ लूटपाट करना, अराजकता फैलाना ही एक मकसद है।

VIDEO NO 4

जहां हिंसा, आंदोलन की नींव होती कमजोर

अब समझने वाली बात यह है कि जब भी किसी आंदोलन में उपद्रवी तत्व घुल मिल जाते हैं, जब नारेबाजी वाला कोई विरोध प्रदर्शन हिंसक रूप ले लेता है, उस स्थिति में असल मुद्दों से लोग दूर हो जाते हैं, उनका मकसद धूमिल हो जाता है और पीड़ित होते हुए भी वही लोग सबसे बड़े विलेन के रूप में सामने आते हैं। बांग्लादेश में अभी यही देखने को मिल रहा है क्योंकि इस विरोध प्रदर्शन की शुरुआत तो कुछ छात्रों ने की थी, लेकिन बाद कई कट्टरपंथी संगठनों ने आंदोलन अपने हाथों में लिया और स्थिति बिगड़ती चली गई। इसी वजह से यह कहना गलत नहीं होगा कि अफगानिस्तान के तालिबान और बांग्लादेश के उपद्रवी में कोई अंतर नहीं बचा है। इसी तरह से और इसी कारण से लोकतंत्र की हत्या भी होती है।