बांग्लादेश में एक विशेष न्यायाधिकरण ने 1971 के मुक्ति संग्राम में पाकिस्तानी सेना का साथ देते हुए युद्ध अपराधों को अंजाम देने के लिए मंगलवार (3 मई) को चार लोगों को मौत की सजा सुनाई। अदालत ने अधिकारियों को उनमें से फरार तीन लोगों की तत्काल गिरफ्तारी के लिए इंटरपोल की मदद मांगने का निर्देश दिया है। बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईटीसी-बीडी) ने ढाका में पांचवें युद्ध अपराधी को भी ‘मौत होने तक उम्रकैद’ की सजा सुनाई। पांचवें अपराधी को उत्तरी किशोरगंज में अत्याचार करने का दोषी पाया गया है। न्यायमूर्ति अनवारूल हक ने इस तीन सदस्यीय विशेष न्यायाधिकरण का नेतृत्व किया।
पांचों को 1971 में बांग्लादेश के जन्म को रोकने में पाकिस्तान की मदद के लिए अपहरण, प्रताड़ना और हत्याओं का जिम्मेदार पाया गया है। सभी दोषी रजाकर वाहिनी के सदस्य है। रजाकर वाहिनी 1971 में पाकिस्तानी सेना की सहायक बल थी जिसके सदस्य केवल बंगाली थे। उनके खिलाफ सात आरोप लगाए गए थे जिनमें 1971 में उनके इलाके में सामूहिक हत्या, हत्या, बंधक बनाने, प्रताड़ना, आगजनी और लूटपाट शामिल हैं।
88 साल के गाजी अब्दुल मन्नान, 62 साल के नसीरुद्दीन अहमद, उनके भाई शम्सुद्दीन अहमद (60) और हाफिजुद्दीन (66) को मौत की सजा दी गई है जबकि 60 साल के अजहरुल इस्लाम को मौत होने तक उम्रकैद की सजा दी गई है। मन्नान के रजाकर शिविर का कमांडर होने की बात कही जा रही है। इनमें से केवल शम्सुद्दीन ने मुकदमे का सामना किया जबकि बाकियों के खिलाफ उनकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलाया गया जिनमें पाकिस्तानी सेना के एक पूर्व बंगाली कैप्टन शामिल हैं।