Sheikh Hasina Extradition: पड़ोसी देश पाकिस्तान में पिछले कुछ महीनों से अस्थिरता की मार झेल रहा है। छात्रों के विरोध प्रदर्शन से लेकर पीएम शेख हसीना के इस्तीफा देकर भारत आने, अंतरिम सरकार के गठन, हिंदुओं और उनके मंदिरों पर हमले तक के घटनाक्रमों के चलते लगातार भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की नजर है और पीएम मोदी भी मौके-बेमौके बांग्लादेश की स्थिति पर चिंता जाहिर कर चुके हैं। शेख हसीना भारत में सुरक्षित लोकेशन पर हैं, लेकिन कहां हैं, इसको लेकर जानकारी गुप्त ही रखी गई है।

एक तरफ जहां पूर्व पीएम शेख हसीना भारत में हैं, तो दूसरी ओर बांग्लादेश में उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई तेज हो गई है। बांग्लादेश की एक अदालत ने शेख हसीना के खिलाफ अरेस्ट वॉरंट इश्यू किया है। उन्हें 18 नवंबर तक कोर्ट में पेश होना ही होगा।

शेख हसीना के खिलाफ केस में दलीलें देने वाले बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण के मुख्य वकील मोहम्मद ताजुल इस्लाम ने कहा है कि उनको लेकर कई तरह की जांच चल रही है। उन पर छात्र आंदोलन के दौरान छात्रों की हत्या करने का भी आरोप लगा है।

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भारत में कहां हैं कि शेख हसीना

शेख हसीना 5 अगस्त को इस्तीफा देकर आनन-फानन में भारत आ गई थीं। वे नई दिल्ली के पास हिंडन एयरबेस में थी। हालांकि शुरू में उनके भारत में कुछ समय तक ही रहने की उम्मीद थी, लेकिन अब तक कहीं और शरण पाने के उनके प्रयास विफल रहे हैं।

वहीं सवाल ये भी है कि शेख हसीना कहां है, तो इसको लेकर भारत सरकार की तरफ से कोई जानकारी भी सार्वजनिक नहीं की गई है। अब जबकि गिरफ्तारी वॉरंट जारी हो गया है, क्या ढाका हसीना के प्रत्यर्पण की मांग कर सकता है?

भारत-बांग्लादेश के बीच क्या है प्रत्यर्पण संधि

भारत और बांग्लादेश ने 2013 में एक प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किए थे, जिसे दोनों देशों के बीच भगोड़ों के आदान-प्रदान को आसान और तेज़ बनाने के लिए 2016 में संशोधित किया गया था। यह संधि कई भारतीय भगोड़ों के बांग्लादेश में छिपे होने और वहां से काम करने के चलते हुई थी।

साथ ही, बांग्लादेश को जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) जैसे संगठनों से परेशानी का सामना करना पड़ रहा था, जिनके कार्यकर्ता भारत के पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में छिपे पाए गए थे। ऐसे में दोनों ही मुल्कों के लिए यह संधि पॉजिटिव साबित हुआ था।

भारत-बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि के क्या है नियम

भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि के अनुसार, भारत और बांग्लादेश को ऐसे व्यक्तियों को प्रत्यर्पित करना है, जिनके विरुद्ध कार्यवाही की गई है या जिन पर आरोप लगाया गया है या जो अनुरोध करने वाले देश की अदालत द्वारा प्रत्यर्पण योग्य अपराध करने के लिए दोषी पाए गए हैं। संधि के अनुसार प्रत्यर्पण के अपराध वह है, जिसके लिए न्यूनतम एक वर्ष की सजा हो सकती है। इसमें वित्तीय अपराध भी शामिल हैं।

महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी अपराध को प्रत्यर्पणीय बनाने के लिए दोहरी आपराधिकता का सिद्धांत लागू होना चाहिए, जिसका अर्थ यह भी है कि वह क्राइम दोनों देशों में दंडनीय ही होना चाहिए। दोनों देशों की संधि में कहा गया है कि यदि कोई प्रत्यर्पणीय अपराध करने या उसमें सहायता करने का प्रयास भी करता है तो भी प्रत्यर्पण किया होगा।

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प्रत्यर्पण संधि में क्या है पेंच

सवाल यह भी है कि संधि कहती है कि अगर अपराध “राजनीतिक प्रकृति” का है तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है, लेकिन यह अपराध की प्रकृति के कारण सीमित है। ऐसे अपराधों की सूची काफी लंबी है जिन्हें “राजनीतिक” नहीं माना जा सकता। इनमें हत्या, हत्या या गैर इरादतन हत्या, हमला, विस्फोट करना, जीवन को खतरे में डालने के इरादे से किसी व्यक्ति द्वारा विस्फोटक पदार्थ या हथियार बनाना या रखना आदि शामिल है।

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हसीना एक राजनीतिक खिलाड़ी हैं और वह भारत में राजनीतिक शरण लेने का दावा कर सकती हैं। हालाँकि, जिन अपराधों के लिए उन पर मामला दर्ज किया गया है, उनमें से कुछ को संधि में राजनीतिक अपराधों की परिभाषा से बाहर रखा गया है। इसमें हत्या, जबरन गायब कर दिए जाने और यातना के मामले शामिल हैं।

कई मामलो में शेख हसीना के खिलाफ दर्ज हुआ है केस

दिलचस्प बात यह है कि 13 अगस्त को शेख हसीना पर एक किराना स्टोर के मालिक की हत्या का मामला दर्ज किया गया, जिसकी पिछले महीने पुलिस की गोलीबारी में मौत हो गई थी। अगले ही दिन 2015 में एक वकील के अपहरण के आरोप में उसके खिलाफ जबरन गायब करने का मामला दर्ज किया गया। ये वो केस हैं, जो प्रत्यर्पण को मुश्किल बना सकते हैं।

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संधि के अनुच्छेद 10 (3) में 2016 में किए गए संशोधन ने अनुरोध करने वाले देश के लिए किए गए अपराध का सबूत देने की आवश्यकता को समाप्त कर दिया। अब प्रत्यर्पण की प्रक्रिया के लिए अनुरोध करने वाले देश की सक्षम अदालत द्वारा केवल गिरफ्तारी वारंट की आवश्यकता है।

क्या भारत प्रत्यर्पण के लिए कर सकता है इनकार

अगर बांग्लादेश प्रत्यर्पण की मांग करता है, तो इसको लेकर जरूरी नहीं है कि भारत यह मांग स्वीकार ही ले। संधि में प्रत्यर्पण अपील को अस्वीकार करने के लिए आधार बताए गए हैं। संधि के अनुच्छेद 7 में कहा गया है कि प्रत्यर्पण के अनुरोध को दूसरे देश द्वारा रिजेक्ट भी किया जा सकता है।

बांग्लादेश के साथ करीबी संबंध रखने वाले रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के एक पूर्व अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि क्या हसीना को बांग्लादेश को सौंपने में हमारा महत्वपूर्ण हित है? ऐसा नहीं है। संधि की कानूनी बातें मायने नहीं रखतीं। दोनों पक्षों में वकील हैं, और वे मुद्दे अलग-अलग तरह से रख सकते हैं। पूर्व जासूस ने तर्क दिया कि इस मामले में किसी भी तरह के कोई बैलेंस की जरूरत नहीं है।

बांग्लादेश का क्या हो सकता है रुख

शेख हसीना के प्रत्यपर्ण को लेकर जारी सवालों के बीच बांग्लादेश के पुराने रुख पर भी ध्यान देना होगा। अंतरिम सरकार बनने के बाद विदेश मामलों के सलाहकार मोहम्मद तौहीद हुसैन ने कहा था कि शेख हसीना भारत में चली गई हैं और अगर उनके खिलाफ कोर्ट में कुछ कार्यवाही होती है, तो फिर उनके प्रत्यर्पण के लिए भारत से बातचीत की जाएगी।उन्होंने यह भी कहा कि भारत को शेख हसीना को अपने यहां नहीं रखना चाहिए, क्योंकि अगर वे प्रत्यर्पण की मांग करेंगे तो यह भारत के लिए भी शर्मनाक स्थिति होगी।

ऐसे में अब यह देखना होगा कि शेख हसीना के प्रत्यर्पण के मुद्दे पर भारत और बांग्लादेश के बीच तल्खी आती है, या यह मामला ठंडे बस्ते में ही डाल दिया जाएगा।