Bangladesh Violence: भारत के पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में स्थिति काफी खराब हो चुकी है। किसी ने नहीं सोचा था कि आरक्षण के खिलाफ शुरू हुआ एक विरोध प्रदर्शन इस तरह से हिंसक हो जाएगा। इस विरोध-प्रदर्शन की वजह से कई लोगों की जान चली गई और देश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देकर भारत आना पड़ा। बांग्लादेश में हुए तख्तापलट के बाद वहां नई अंतरिम सरकार का गठन हुआ और उसके मुखिया नोबेल विजेता मोहम्मद युनूस बने। इतना ही नहीं वहां की विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशलिस्ट पार्टी की नेता खालिदा जिया को भी जेल से रिहा कर दिया गया। इंडियन एक्सप्रेस में अशिकुर रहमान का एक ओपिनियन छपा है। इसमें उन्होंने अवामी लीग और बीएनपी के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में लिखा था।
अशिकुर ने बताया कि संसद में अपने जबरदस्त बहुमत होने के बाद भी अवामी लोग को आगे बढ़ने के लिए कई सारी चीजों को ध्यान में रखना चाहिए। पिछले दो सालों में बांग्लादेश ने सोशल मीडिया पर काफी बड़े पैमाने पर सक्रियता देखी है। इतना ही नहीं खासतौर पर स्टूडेंट्स और युवाओं का सड़कों पर उतरने वाला बढ़ता हुआ झुकाव भी देखा है। सार्वजनिक तौर पर किए जा रहे विरोध में सबसे बड़ी मांग यह रही है कि मीडिल क्लास के पास में अच्छे आर्थिक मौके रहें। सीधे शब्दों में बताएं तो पढ़े लिखे युवाओं के लिए ज्यादा नौकरियां पैदा करना और कानून-व्यवस्था को सही रखना शेख हसीना के सामने दोहरी चुनौतियां होंगी। सरकार की ताकत इसी बात पर निर्भर करेगी कि वह इन दो मोर्चों पर कैसा प्रदर्शन करती है।
लेखक ने अपने ओपिनियन में कहा कि कोविड-19 महामारी और फिर यूक्रेन में हुए संघर्ष का मतलब था कि पूर्व पीएम शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग समाज या आलोचनाओं पर आवाज उठाने वाली प्रशासनिक द्वारपाल की निगरानी में था। इस घटना को सबसे अच्छी तरह से बताने वाली घटना शेख हसीना की प्रेस कॉन्फ्रेंस हैं। यहां पर नौकरशाही वाले द्वारपालों ने कुछ ही पत्रकारों को इजाजत दी। यह उस सत्र में सरकार की काफी तारीफ करते थे।
राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों को सही से नहीं उठाया
दूसरे शब्दों में कहें तो राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों को कभी भी जोरदार तरीके से नहीं उठाया गया। इसका नतीजा पिछले 24 महीनों में तेजी से बढ़ती हुई खराब व्यवस्था के तौर पर सामने आया। नीतियां बनाने वाले आर्थिक और नौकरशाही अभिजात वर्ग के भ्रष्टचार को बताने में कामयाब नहीं हुए। संस्थाओं की अनदेखी की गई और कानून के शासन को कमजोर किया और आर्थिक तौर पर लूट को भी नजरअंदाज कर दिया। प्राइवेट और सरकारी बैंक ने दिवालिया हो गए। युवाओं में बेरोजगारी बढ़ गई।
लोगों में पैदा हुआ असंतोष
इस खराब व्यवस्था की वजह से सामाजिक तौर पर लोगों में असंतोष पैदा हो गया। छात्रों का विरोध सामाजित आंदोलन के लिए एक ट्रिगर था। इसको अवामी लीग सरकार ने गलत तरीके से संभाला। पार्टी के लिए हर एक आंदोलन को साजिश के तौर पर देखना भी सही नहीं रहा। पार्टी के कट्टरपंथी, चाटुकार और स्वार्थी मंत्रियों ने अवामी लीग के अंदर अहम पदों पर अपनी पकड़ बनाए रखी। पार्टी ने ऐसा नेताओं को बिल्कुल दरकिनार कर दिया था जो समझौते की वकालत करते थे।
अवामी लीग को पहले भी राजनीतिक पतन का सामना करना पड़ा
अवामी लीग को पहले भी इस तरह के राजनीतिक पतन का सामना करना पड़ा है। अब अवामी लीग को पूरी तरह से रिओर्गेनाइज की जरुरत है। पार्टी के लिए यह लंबी और दर्दनाक यात्रा है और न केवल अवामी लीग ने बांग्लादेश में छात्र बिरादरी की भावनाओं का अपमान किया है। अवामी लीग को राख से फिर से उभरने के लिए पुराने राजनीतिक नियमों से नहीं चलना चाहिए। सबसे जरूरी बात यह है कि उसे बांग्लादेश में राजनीतिक और सामाजिक स्थिति का जायजा लेना चाहिए।
लोकतांत्रिक मूल्यों को सच में संजोने वाली अवामी लीग उसी समय उभर सकती है जब पार्टी उन स्थिति के लिए ईमानदारी से माफी मांगे जिसकी वजह से जुलाई में यह सब क्रांति हुई। पार्टी उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष भावनाओं का सबसे बड़ा निकाय बनी हुई है। इस सब से उभर कर वह आर्थिक विकास के लिए एक ताकत बन सकती है। यही वजह है कि यह वास्तव में लोकतांत्रिक बांग्लादेश में काम करने के लिए एक राजनीतिक जगह की हकदार है।