अमेरिका में राष्‍ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। राष्ट्रपति पद की उम्‍मीदवारी के लिए रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता अपनी-अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। अभी तक हुए प्राइमरी और कॉकस में रिपब्लिकन पार्टी की ओर से ट्रंप और डेमोक्रेट्स की ओर से हिलेरी सबसे आगे हैं। रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवारी के चुनाव में साऊथ कैरोलिना प्राइमरी में सीनेटर टेड क्रूज और मार्को रूबियो को ट्रंप ने पछाड़ दिया है। हार के बाद रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवारी की दौड़ में शामिल जेब बुश ने दावेदारी वापस ले ली है। वहीं, डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवारी के लिए मैदान में उतरीं हिलेरी क्लिंटन नेवादा कॉकस में जीत दर्ज कर ली है। हिलेरी को 52 फीसदी वोट मिले है, जबकि उनके प्रतिद्वंदी डेमोक्रेटिक पार्टी के बर्नी सैंडर्स को 48 फीसदी वोट प्राप्‍त हुए।

इस माह के शुरू में न्यू हैम्पशायर प्राइमरी में जीत चुके ट्रंप आयोवा में संपन्न कॉकस में दूसरे स्थान पर रहे थे। मंगलवार को नेवादा में रिपब्लिकन कॉकस होगा है। इसके बाद 1 मार्च को ‘सुपर ट्यूसडे’ के दिन 13 राज्यों में प्राइमरी इलेक्‍शन होगा। फिर इसके बाद दोनों पार्टी अपने-अपने उम्‍मीदवार के नाम की घोषणा करेंगी, तब अमेरिकी राष्‍ट्रपति पद के लिए भिड़ंत शुरू होगी। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया बेहद जटिल मानी जाती है, लेकिन हम कोशिश करते हैं इसे असानी से समझने की। दुनिया के इस सबसे पुराने लोकतंत्र के राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया को हालांकि अप्रत्यक्ष चुनाव कहते हैं, लेकिन असल में यह प्रत्यक्ष चुनाव ही है। अमेरिकी चुनाव की प्रक्रिया बहुत लंबी भी है। वैसे तो अमेरिकी चुनाव 8 नवबंर को होना है, लेकिन इसकी शुरुआत आयोवा कॉकस से हो चुकी है। मतलब इस समय दोनों प्रमुख दलों के भीतर राष्‍ट्रपति पद की उम्‍मीदवारी के लिए चुनाव चल रहा है।

भारत में राष्ट्रपति उम्मीदवार पार्टियां तय करतीं हैं या यूं कहें कि जनता के चुने हुए प्रतिनिधि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का नाम चुनते हैं, लेकिन अमेरिका में पार्टियां जनता और कार्यकर्ताओं के चुने हुए उम्मीदवारों को ही मैदान में उतारती हैं यानी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दो प्रमुख चरण है प्राइमरी इलेक्शन और फिर इलेक्शन डे। चलिए पहले प्राइमरी और कॉकस इलेक्शन को समझते हैं।

कैसे होता है प्राइमरी इलेक्शन?

अमेरिका में पहले चरण का चुनाव दो तरीकों से होता है, पहला- प्राइमरी, और दूसरा कॉकस। प्राइमरी ज्यादा परंपरागत तरीका है और अधिकतकर राज्यों में इसे ही अपनाया जाता है। इसमें लोग वोट डालकर पार्टी को बताते हैं कि उनकी पसंद का उम्मीदवार कौन है। कॉकस में ज्यादातर पार्टी के पारंपरिक वोटर ही हिस्सा लेते हैं और डेलीगेट्स चुनकर भेजते हैं, जो कि उम्‍मीदवार को नॉमिनेट करते हैं।

कॉकस प्रक्रिया अमेरिका के 10 राज्‍यों में अपनाई जाती है। जिनके नाम हैं- आयोवा, अलास्‍का, कोलार्डो, हवाई, कन्‍सास, मैनी, नेवादा, नॉर्थ डैकोटा, मिनीसोटा, वायोमिंग। अमेरिकी राष्‍ट्रपति पद की रेस आयोवा से ही शुरू होती है। इसके अलावा अन्‍य 40 राज्‍यों में प्राइमरी प्रक्रिया अपनाई जाती है, जिसके तहत वोटर्स मतदान करते हैं और अपनी पसंद का उम्‍मीदवार चुनते हैं।

प्राइमरी इलेक्शन में कैसे होता है मतदान और चुनाव?

जैसा कि मैंने पहले बताया कि प्राइमरी इलेक्शन दो तरीकों से होता है। एक प्राइमरी और दूसरा कॉकस। इनमें मतदाता अपने अपने जिले के डेलीगेट को वोट देते हैं। रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के डेलीगेट्स की संख्या क्रमश: 1700 और 1500 के आसपास होती है। प्रत्येक राज्य के मतदाता अपने-अपने उम्मीदवार के डेलीगेट के नाम से वोट देते हैं और फिर वो डेलीगेट अपनी-अपनी पार्टी नेशनल कन्वेंशन में एकत्रित होते हैं और सभी राज्यों से जिस प्रत्याशी के डेलीगेट ज्यादा होते हैं उसे उम्मीदवार घोषित कर दिया जाता है। हालांकि, डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन पार्टी

इलेक्शन डे : अमेरिकी चुनते हैं इलेक्टर्स?

रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी प्राइमरी इलेक्शन के जरिए अपने अपने उम्मीदवार चुनते हैं और पार्टी की नेशनल कन्वेंशन में अधिकारिक रूप से अपने अपने प्रत्याशियों का ऐलान करते हैं। आमतौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का प्राइमरी इलेक्शन फरवरी से मार्च के बीच होता है और फिर कुछ सप्ताह बाद ही पार्टिंया उम्मीदवार का ऐलान कर देती हैं। यहां से चुनाव प्रचार शुरू होता है और फिर इलेक्शन डे आता है। इस बार अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव 8 नवंबर को होना है। आमतौर पर नवंबर के पहले सप्‍ताह में ही राष्‍ट्रपति पद के लिए चुनाव होता है।

तो कौन चुनता है राष्ट्रपति?

अपनी-अपनी पार्टी में उम्मीदवारी की रेस जीतने के बाद दोनों प्रत्याशी इलेक्शन डे पर आमने-सामने आते हैं और जनता उन्‍हें वोट देती है। इलेक्शन डे के मतदान का तरीका भी प्राइमरी के जैसा ही है। जैसे वहां डेलीगेट चुने जाते हैं ठीक वैसे ही इलेक्शन डे में इलेक्टर्स चुने जाते हैं। इसे इलेक्टोरल कोलाज कहा जाता है यानी ऐसा समूह, जिसे अमेरिकी जनता चुनती है और फिर वो राष्ट्रपति की जीत का ऐलान करते हैं।

अमेरिकी इलेक्ट्रोरल कोलाज में 538 इलेक्टर्स होते हैं। अब सवाल ये आता है कि ये संख्या 538 ही क्यों है, दरअसल ये संख्या अमेरिका के दोनों सदनों की संख्या का जोड़ है। अमेरिकी सदन हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स यानी प्रतिनिधि सभा और सीनेट का जोड़ है। प्रतिनिधि सभा में 435 सदस्य होते हैं, जबकि सीनेट में 100 सांसद। इन दोनों सदनों को मिलाकर संख्या होती है 535। अब इसमें 3 सदस्य और जोड़ दीजिए और ये तीन सदस्य आते हैं अमेरिका के 51वें राज्य कोलंबिया से। इस तरह कुल 538 इलेक्टर्स अमेरिकी राष्ट्रपति चुनते हैं। प्रत्येक राज्य से उतने ही इलेक्टर्स चुने जाते हैं, जितने उस राज्य से प्रतिनिधि सभा और सीनेट के सदस्य होते हैं। इस तरह 538 इलेक्टर्स से बनता है इलेक्टोरल कोलाज। इलेक्शन डे यानी 8 नवंबर को अमेरिकी मतदाता अपने-अपने उम्मीदवार के समर्थन वाले इलेक्टर्स के पक्ष में मतदान करेंगे। राष्‍ट्रपति की जीत के लिए 270 का जादुई आंकड़ा चाहिए होता है।

मतदान के बाद क्या होगा?

अमेरिकी मतदाता जब वोट देने जाएंगे तो उन्हें जो बैलेट पेपर यानी मतपत्र मिलेगा उस पर रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के इलेक्टर्स को वोट देने का विकल्प होगा। जब जनता जब वोट कर देगी तो फिर सभी 538 इलेक्टर्स बैठेंगे और अपने अपने क्षेत्र के वोटरों के फैसले के अनुसार वे उम्‍मीदवार के पक्ष में वोट देंगे। जिसे भी 270 से ज्‍यादा वोट मिलेंगे वही अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुन लिया जाएगा।

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