युवावस्था की दहलीज पर पहुंचते ही लड़कियों में कई तरह के हार्मोनल परिवर्तन दस्तक देते हैं। माहवारी उनमें से एक है। पहली बार माहवारी होने से एक दो हफ्ते पहले कुछ महिलाओं में खास तरह के लक्षण दिखाई देते हैं। इन लक्षणों को प्री-मेंस्ट्रुअल सिंड्रम कहा जाता है। ऐसे में उन्हें डायरिया की शिकायत होने लगती है, स्वभाव में चिड़चिड़ापन आने लगता है। इसके अलावा सूजन, पेट में दर्द की शिकायत, अवसाद, मानसिक तनाव जैसे लक्षण उभरने लगते हैं, हालांकि ये सिंप्टम्स किसी गंभीर रोग के संकेत नहीं होते। पहली बार माहवारी से पहले दिखने वाले ये लक्षण हार्मोनल बदलावों की वजह से होने वाली सामान्य प्रक्रियाओं का हिस्सा हैं। इस दौरान शरीर में होने वाले शारीरिक, भावनात्मक और व्यावहारिक परिवर्तन भी इसके लिए जिम्मेदार होते हैं, इसलिए इनसे घबराने की बिल्कुल जरूरत नहीं है।

पीरियड्स से पहले अगर आप इस तरह के किसी लक्षणों से परेशान हैं तो आयुर्वेद में आपकी इस परेशानी का संपूर्ण ईलाज मौजूद है, आप उसका इस्तेमाल कर सकती हैं। आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य में तीन तरह के दोष पाए जाते हैं, जिन्हें वात, पित्त और कफ के नाम से जाना जाता है। इनके शरीर में संतुलन से ही अच्छी सेहत का रास्ता खुलता है। आयुर्वेद में प्री-मेंस्ट्रुअल सिंड्रम को इन दोषों के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। शरीर में वात के असंतुलन से होने वाले प्री-मेंस्ट्रुअल सिंड्रम की वजह से कमर दर्द, चिंता, डर, सरदर्द, नींद न आने जैसी समस्याएं दिखाई देती हैं। ऐसा होने पर दशमूल की चाय पीरियड्स शुरू होने के एक हफ्ते पहले से दिन में दो बार पीने से काफी राहत मिलता है।

पित्त के असंतुलन की वजह से होने वाले प्री-मेंस्ट्रुअल सिंड्रम में चिड़चिड़ापन, पेट के निचले हिस्से में दर्द, पेशाब में जलन आदि लक्षण दिखाई देते हैं। ऐसी हालत में शतावरी, ब्राह्मी और मुस्ता के मिश्रण को आधा चम्मच दिन में दो बार गर्म पानी के साथ लेने से काफी आराम मिलता है। कफ के असंतुलन की वजह से होने वाले प्री-मेंस्ट्रुअल सिंड्रम की वजह से मोटापा, सूजन और सुस्ती की समस्या सामने आती है। ऐसे में पुनर्नवा ( 2 भाग), कुटकी (1 भाग) और मुस्ता (2 भाग) के मिश्रण की आधी चम्मच मात्रा दिन में दो बार गर्म पानी के साथ लेने पर काफी लाभ होता है।