पिछले कुछ वर्षों में गर्भाशय के कैंसर से पीड़ित महिलाओं की दर तेजी से बढ़ी है। महिलाओं में ओवेरियन कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जो अनुवांशिक भी हो सकती है। यह कैंसर इतनी तेजी से बढ़ता है कि कई बार इसके लक्षण लेट स्टेज में दिखाई देते हैं। गर्भाशय के कैंसर यानी डिम्बग्रंथि के कैंसर के दौरान, सूजन, पेशाब में जलन, भूख न लगना, अनियमित पीरियड्स और वजन कम होने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। महिलाओं में गर्भाशय के कैंसर होने के पीछे कई कारण हो सकता है।

गर्भाशय के कैंसर का पता तब तक नहीं लगाया जा सकता जब तक यह श्रोणि और पेट में फैल न जाए। प्रारंभिक अवस्था में उपचार के सफल होने की अधिक संभावना है। हालांकि अमेरिकन कैंसर सोसाइटी के मुताबिक अधिकतर महिलाओं को इस बीमारी के बारे में लंबे समय तक जानकारी नहीं होती है, जिससे उनकी मौत हो सकती है।

हम अभी तक ठीक से नहीं जानते हैं कि अधिकांश डिम्बग्रंथि के कैंसर का क्या कारण है। जैसा कि डिम्बग्रंथि के कैंसर के जोखिम कारकों में चर्चा की गई है, हम कुछ ऐसे कारकों को जानते हैं जो एक महिला को गर्भाशय के कैंसर के विकास की अधिक संभावना बनाते हैं। अंडाशय के जर्म सेल और स्ट्रोमल ट्यूमर के जोखिम कारकों के बारे में बहुत कम जानकारी है। गर्भाशय के कैंसर के कारण के बारे में सबसे हालिया और महत्वपूर्ण खोज यह है कि यह फैलोपियन ट्यूब के आखिरी छोर पर कोशिकाओं में शुरू होता है और जरूरी नहीं कि अंडाशय में ही हो।

क्या है ओवेरियन कैंसर?

गर्भाशय के कैंसर को ओवेरियन कैंसर के नाम से भी जाना जाता है। एवरीडे हेल्थ के अनुसार इस कैंसर के कारण अंडाशय में कई छोटे-छोटे सिस्ट बन जाते हैं, जो धीरे-धीरे ट्यूमर में बदल जाते हैं। ये सिस्ट महिला को प्रेग्नेंट होने से भी रोकते हैं। कई बार यह ट्यूमर शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल जाता है। ओवेरियन कैंसर का समय पर इलाज न होने पर मौत भी हो सकती है।

35 के बाद गर्भावस्था

गर्भाशय के कैंसर के सबसे बड़े कारणों में से एक उम्र के बाद गर्भावस्था है। ओवेरियन कैंसर के मरीज दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं। जीवनशैली और खान-पान में बदलाव के अलावा 35 साल की उम्र के बाद गर्भधारण से भी ओवेरियन कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। अधिक उम्र में गर्भधारण से गर्भाशय के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, जिससे कैंसर हो सकता है।

अधिक वजन होने के नाते

मायो क्लिनिक के मुताबिक ओवेरियन कैंसर अधिक वजन या मोटापे के कारण भी हो सकता है। चूंकि मोटापे से ग्रस्त महिलाएं शारीरिक रूप से कम सक्रिय होती हैं, जिससे मासिक धर्म संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। मासिक धर्म की समस्या भी कई बार सिस्ट बनने का खतरा बढ़ा देती है।

फर्टिलिटी ट्रीटमेंट

जिन महिलाओं को गर्भधारण करने में परेशानी होती है, उन्हें फर्टिलिटी ट्रीटमेंट का सहारा लेना पड़ता है। आईवीएफ जैसे प्रजनन उपचार से सीमा रेखा या कम घातक ट्यूमर का खतरा बढ़ सकता है। फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के दौरान ली जाने वाली दवाएं शरीर को नुकसान पहुंचा सकती हैं। ये दवाएं गर्भाशय या योनि में अल्सर के गठन में मदद कर सकती हैं। डॉक्टर की सलाह के बिना इन दवाओं का सेवन हानिकारक हो सकता है।