दस्टेट आफ द वर्ल्ड चिल्डेÑन 2021 आन माय माइंड’ के अनुसार भारत में 15 से 24 वर्ष के 41 फीसद बच्चों व किशोरों ने मानसिक बीमारी के लिए मदद लेने की बात कही। 21 देशों के करीब 20 हजार बच्चों पर हुए इस सर्वेक्षण में करीब 83 फीसद बच्चे इस बात को लेकर जागरूक दिखे कि मानसिक परेशानियों के लिए किसी विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए। भारत के संदर्भ में भी इस विषय को लेकर गंभीरता देखने को मिली लेकिन अभी भी स्थिति अन्य देशों की अपेक्षा उतनी बेहतर नहीं है जितनी की होनी चाहिए।

इसका एक प्रमुख कारण है कि मानसिक अवसाद को आज भी भारत में एक बीमारी के तौर पर स्वीकार नहीं किया जाता है। इसमें सबसे प्रमुख है कि आज भी लोग इस तरह की बीमारियों को लेकर जागरूक नहीं हैं, शहरी क्षेत्रों में भी अभिभावक अज्ञानता के चलते यह स्वीकारने को तैयार ही नहीं होते हैं कि उनके बच्चों के बेहतर विकास के लिए मनोविज्ञान के विशेषज्ञों के साथ विशेष सत्र के आयोजन की जरूरत है।
समय की मांग
यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें विशेषज्ञ आवश्यकता के अनुरूप उपलब्ध नहीं हैं और इसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में रोजगार की भरपूर संभावनाएं उपलब्ध हंै। आज मनोविज्ञान का अध्ययन स्नातक, स्नातकोत्तर स्तर पर हो रहा है और अब इस दिशा में विशेषज्ञता की ओर भी प्रयास शुरू हो गए हैं। इस क्षेत्र में बढ़ती विशेषज्ञों की मांग का ही नतीजा है कि भारतीय पुनर्वास परिषद, नई दिल्ली इस क्षेत्र में विशेषज्ञता प्रदान करने वाले पाठ्यक्रम के निर्धारण करने और उनके संचालन की प्रक्रिया में शामिल हो रही है। देशभर में इस क्षेत्र में विभिन्न शिक्षण संस्थान अपने-अपने स्तर पर विभिन्न पाठ्यक्रमों के माध्यम से योग्य विशेषज्ञों को तैयार कर रहे हैं बावजूद इसके आज भी इस क्षेत्र में पेशेवरों की मांग बनी हुई।
विशेषज्ञता का महत्त्व
मनोविज्ञान और उससे संबंधित पाठ्यक्रमों के माध्यम से प्राप्त होने वाली विशेषज्ञता का महत्त्व कोरोना काल के बाद बदली परिस्तिथियों के परिणामस्वरूप और अधिक बढ़ा है। इस समय में जिस तरह से लोगों को घर पर रहकर काम करना पड़ा और जिस तरह से कंपनियों ने आर्थिक नुकसान को कम करने के लिए वेतन में कमी व नौकरियों में कटौती की, उसके परिणामस्वरूप हर क्षेत्र में विशेषकर निजी क्षेत्रों में रोजगार की संभावनाओं में आई गिरावट मानसिक अवसाद का कारण बनी।

आज जिस तरह की परिस्थितियां बनी हुई हैं, उसमें सामान्य अध्ययन से इतर विशेषज्ञता की मांग है। इसी का नतीजा है कि संस्थान इस क्षेत्र में विशेष पाठ्यक्रमों की शुरुआत कर रहे हैं। पुनर्वास मनोविज्ञान में पीजी डिप्लोमा और बाल मार्गदर्शन व परामर्श में एडवांस डिप्लोमा ऐसे ही प्रमुख पाठ्यक्रम है।
शैक्षणिक योग्यता
स्नातक स्तर के पाठ्यक्रमों में अध्ययन के लिए विभिन्न शिक्षण संस्थानों के स्तर पर अलग-अलग दाखिला प्रक्रिया को अपनाया जाता है। जहां तक योग्यता की बात है तो इस पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए बारहवीं पास की योग्यता निर्धारित है। स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में भी संस्थान इस क्षेत्र में रुचि रखने वाले या फिर स्नातक स्तर पर इस विषय का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को दाखिले में महत्त्व देते हैं। इसके अतिरिक्त मनोविज्ञान के स्तर पर पेशेवर कार्य के इच्छुक युवाओं के लिए भारतीय पुनर्वास परिषद, नई दिल्ली की अनुमति से डिप्लोमा, प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम भी उपलब्ध कराए जाते हैं जिन्हें करने के बाद युवा इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के स्तर पर भी काम कर सकते हैं।
रोजगार के अवसर
अवसाद से जंग के इस क्षेत्र में काम करते हुए रोजगार के अवसर अपार है। आपकी योग्यता के अनुरूप आप इनका चयन कर सकते हैं। अध्यापन, शोध के अतिरिक्त आप फोन पर परामर्श व परामर्श देने और संस्था के स्तर पर भी विशेषज्ञ परामर्शदाता के रूप में रोजगार अर्जित कर सकते हैं। विशेषज्ञता के स्तर पर देखें तो यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें रोजगार के साथ आत्मसंतुष्टि भी प्राप्त होती है क्योंकि अवसाद एक ऐसी समस्या है जिससे पीड़ित व्यक्ति को अहसास ही नहीं होता है कि वह पीड़ित है। इसमें आप अपनी क्लिनिक स्थापित कर सकते हैं, पुनर्वास केंद्र स्थापित कर सकते है, निजी व सराकारी संस्थानों में भी इस क्षेत्र के विशेषज्ञों के लिए विशेष रूप से पद सृजित किए गए है।

यहां से करें पढ़ाई
हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़
दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, मैदान गढ़ी नई दिल्ली
जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर<br>राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान, नई दिल्ली

वीएन यादव (शिक्षक, हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय)