डायबिटीज एक जीवन शैली से जुड़ी हुई बीमारी है, इससे ग्रसित मरीजों को अपने लाइफस्टाइल का बेहद ख्याल रखना चाहिए। खाने-पीने से लेकर सोने-जगने तक का समय बंधा हुआ रहना चाहिए। WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में डायबिटीज 7वीं सबसे गंभीर बीमारी है। डायबिटीज को जड़ से खत्म करना संभव नहीं है लेकिन इसे नियंत्रण में रखकर लोग नॉर्मल जिंदगी जी सकते हैं। हालांकि, मधुमेह से पीड़ित गंभीर मरीजों को डॉक्टर्स इंसुलिन का इंजेक्शन लेने की सलाह भी देते हैं। बता दें कि इन मरीजों के शरीर में अपनने आप इंसुलिन न के बराबर ही प्रोड्यूस हो पाता है। लेकिन इंसुलिन के डोसेज के साथ ही इन बातों का ध्यान रखना जरूरी है –
इंसुलिन के होते हैं दो प्रकार: आमतौर पर लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि इंसुलिन दो प्रकार के होते हैं। बेसल और बोलस, ये तरह के इंसुलिन की जरूरत शरीर को होती है। मरीजों की स्थिति के अनुरूप ही डॉक्टर्स इन दोनों में से किसी एक या दोनों लेने की सलाह दे सकता है।
किसे कब किया जाता है यूज: बेसल इंसुलिन तब दिया जाता है जब शरीर में भोजन के बाद या बीच में इंसुलिन के स्तर को बनाए रखना हो। वहीं, जब मरीज का ब्लड शुगर अत्यधिक हाई हो जाता है तो बोलस इंसुलिन इस्तेमाल किया जाता है।
बेसल इंसुलिन का होता है रोजाना इस्तेमाल: अगर किसी मरीज को डॉक्टर्स बेसल इंसुलिन लेने को कहते हैं तो इसे रोजाना लेना अनिवार्य होता है। इसके साथ ही, डोसेज का भी ध्यान रखना जरूरी है। उदाहरण के तौर पर अगर चिकित्सक ने आपको 10 यूनिट बेसल इंसुलिन लेना प्रिस्क्राइब करते हैं तो इसे नियमित रूप से लेना आवश्यक है, बिना एक भी दिन के गैप पर। बगैर डॉक्टर की अनुमति के इंसुलिन के डोज को घटाना या बढ़ाना नहीं चाहिए।
समय के साथ बदलता है बोलस इंसुलिन का डोज: बोलस इंसुलिन की खुराक हमेशा एक समान नहीं रहती है, ये समय के साथ बदलती रहती है। मरीजों की शारीरिक स्थिति को देखते हुए इसकी खुराक बढ़ाई घटाई जाती है। मरीजों की जीवनशैली, फिजिकल इनैक्टिविटी, वजन और ट्रीटमेंट के अनुसार शरीर को कितने इंसुलिन डोज की जरूरत है, ये तय किया जाता है। साथ ही, डाइट में चेंजेज और कम कार्बोहाइड्रेट वाला खाना खाकर भी शरीर को इंसुलिन की कम जरूरत होती है।

