आज के कंपटीशन भरे माहौल और बदलती जीवनशैली की वजह से लोगों में डिप्रेशन यानी कि अवसाद का खतरा बढ़ता जा रहा है। जीवन की व्यस्तता के बीच डिप्रेस होना आम बात है। ऐसे लोग अक्सर लोगों से दूर भागते हैं और एकांत में रहना पसंद करते हैं। किसी भी जगह पर उनका दिल नहीं लगता है। अवसाद के यूं तो अपने कई तरह के नुकसान हैं लेकिन हाल ही में एक शोध में यह बात भी सामने आई है कि डिप्रेशन की वजह से दिल की बीमारी का खतरा काफी बढ़ जाता है।
अमेरिका के अमरीकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी के एक जर्नल में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि अवसादग्रस्त व्यक्ति में दिल की बीमारी होने का खतरा सामान्य व्यक्ति के मुकाबले तीन गुना ज्यादा होता है। शोध के अनुसार दिल की बीमारी से पीड़ित मरीजों का अवसाद से ग्रस्त होना भयंकर परिणाम देने वाला हो सकता है। अमेरिका के एमोरी यूनीवर्सिटी हॉस्पिटल के शोधकर्ताओं ने दिल की बीमारी से पीड़ित मरीजों और अवसाद के लक्षणों के बीच संबंधों पर गहरा अध्ययन किया है। अध्ययन में कहा गया है कि अस्पताल में भर्ती दिल के दौरे से पीड़ित लगभग 20 प्रतिशत मरीज अवसाद के लक्षणों से ग्रसित थे।
अध्ययन में यह भी कहा गया है कि दिल के रोगियों में सामान्य लोगों के मुकाबले डिप्रेशन का खतरा तीन गुना ज्यादा होता है। शोधकर्ताओं ने दिल की बीमारी से बिल्कुल अछूते तकरीबन 965 लोगों पर किए गए अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला है। एमोरी कार्डियोवास्कुलर रिसर्च इंस्टीट्यूट के सह-निदेशक अरशद कुयामी ने कहा कि हमनें इस अध्ययन से अवसाद और दिल की बीमारी के खतरे के बीच संबंधों को उजागर किया है। इस शोध के निष्कर्षों नें यह भी कहा गया है कि नियमित व्यायाम से दिल के मरीजों की सेहत पर सकारात्मक असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि हमें इस शोध की जरूरत इसलिए भी थी कि हम दिल के मरीजों को व्यायाम के प्रति जागरूक कर सकें, क्योंकि नियमित व्यायाम से दिल की बीमारियों पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।