Kawasaki Disease Symptoms: दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में कोरोना वायरस के बाद अब एक नई आफत आ गई है। देश की राजधानी दिल्ली व आर्थिक राजधानी मुंबई में कई बच्चों में कावासाकी जैसी दुर्लभ बीमारी के लक्षण देखे गए हैं। बाल रोग विशेषज्ञों के अनुसार हर 6 महीने में इस बीमारी के 2 से 3 मामले नजर आ जाते हैं। हालांकि, इस कोरोना काल में कावासाकी बीमारी के ज्यादा मरीज सामने आ रहे हैं। एक्सपर्ट के मुताबिक जो बच्चे कोविड-19 से संक्रिमत हुए, उनमें अब असामान्य कावासाकी के लक्षण भी पाए जा रहे हैं। इस वजह से डॉक्टर्स इसे कोरोना वायरस से होने वाला साइड इफेक्ट भी करार देते हैं। बता दें कि इस बीमारी को मल्टी सिस्टमिक इंफ्लेमेट्री सिंड्रोम भी कहा जाता है। आइए जानते हैं क्या हैं इस बीमारी के लक्षण और कैसे करें बचाव-
क्या है कावासाकी डिजीज: इस बीमारी की शुरुआत कहां से हुई इस बारे में अधिक जानकारी नहीं है, लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञ ऐसा मान रहे हैं कि शरीर में कुछ वायरस इस बीमारी को ट्रिगर करते हैं। जापान के बाल रोग विशेषज्ञ टोमिसाकु कावासाकी द्वारा पहली बार खोजी गई ये बीमारी छोटे बच्चों को अपनी चपेट में लेती है। 5 साल से कम उम्र के बच्चों में इस बीमारी का खतरा अधिक देखने को मिलता है जबकि 10 से 15 साल के बच्चों को भी इस बीमारी के बचाकर रखने की जरूरत होती है।
ये हैं इस दुर्लभ बीमारी के लक्षण: कावासाकी बीमारी से पीड़ित बच्चों को तेज बुखार होता है जो 5 दिनों तक रह सकता है। इसमें मरीजों को शरीर पर चकत्ते व गैस्ट्रो-इंटेस्टिनल परेशानियां हो सकती हैं। इसके साथ ही, मरीजों की स्किन रूखी हो जाती है और हाथ व तलवे लाल हो जाते हैं। आंखें लाल होना, गले में गिल्टी हो जाना भी इसके लक्षणों में शामिल है। इस बीमारी में हार्ट, किडनी व फेफड़े प्रभावित होते हैं। इस कारण बच्चों को सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। इस बीमारी से पीड़ित मरीजों को पेट में दर्द, उल्टी और दस्त की शिकायत भी हो सकती है। अगर शुरुआत में ही इस बीमारी का इलाज नहीं हुआ तो ये बच्चों में गंभीर हृदय रोग का कारण बन सकती है।
क्या है इस बीमारी का इलाज: डॉक्टर्स के मुताबिक जब शरीर दूसरे वायरस से लड़ने के लिए खुद को मजबूत करता है तो इस प्रक्रिया में कावासाकी बीमारी की चपेट में आ सकता है। हालांकि, समय पर पहचान होने पर इस बीमारी का इलाज मुमकिन है। कई बार ये अपने आप भी ठीक हो जाता है, तो कुछ मामलों में डॉक्टर्स मरीज को वैसी दवाइयां देते हैं जिनसे शरीर में ब्लड क्लॉट न बने। ऐसा इसलिए क्योंकि इस बीमारी में बच्चों के ब्लड वेसल्स में सूजन आ जाती है। इसके अलावा, एंटी-इंफ्लामेट्री ड्रग्स भी इस बीमारी के इलाज में मददगार है।