Mental Health: डिप्रेशन आम मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। आजकल के जीवन में तनाव एक हिस्सा बन चुका है, क्योंकि आज के समय हर किसी को थोड़ा बहुत तनाव तो रहता ही है। तनाव के मुख्य कारणों में से एक खराब लाइफस्टाइल और नींद की कमी है। दरअसल, नींद का हमारे मस्तिष्क के स्वास्थ्य से गहरा संबंध है। अगर नींद की लगातार कमी हो जाए तो इससे याददाश्त कमजोर हो सकती है, सोचने-समझने की क्षमता घट सकती है और अल्जाइमर व पार्किंसन जैसी गंभीर मानसिक बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।

जर्नल ऑफ अफेक्टिव डिसऑर्डर्स में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, अनियमित डेली रूटीन मूड पर असर डालता है और तनाव की भावनाओं को प्रभावित करती हैं। तनाव डेली एक्टिविटी पर निर्भर करता है, जो हमें याद दिलाता है कि कैसे दिन-प्रतिदिन का साधारण लाइफस्टाइल मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। अच्छी मानसिक सेहत के लिए हेल्दी डेली रूटीन को फॉलो करना चाहिए, इसमें अच्छी नींद भी शामिल है। फोर्टिस अस्पताल, फरीदाबाद, निदेशक न्यूरोलॉजी, डॉ. विनीत बंगा ने बताया कि मेंटल हेल्थ को कैसे सुधारें।

डॉ. विनीत बंगा ने के मुताबिक, नींद हमारी भावनाओं को संभालने, यादों को मजबूत करने और दिमाग से जहरीले अपशिष्ट बाहर निकालने का काम करती है। गहरी नींद के समय ‘ग्लिम्फैटिक सिस्टम’ सबसे ज्यादा सक्रिय रहता है, जो मस्तिष्क से विषैले प्रोटीन जैसे बीटा-अमाइलॉइड को बाहर निकालता है। यह प्रोटीन अल्जाइमर से जुड़ा होता है।

नींद की कमी से ये जहरीले तत्व दिमाग में जमा होने लगते हैं, जिससे मानसिक कार्यक्षमता तेजी से घटती है। इसका सीधा असर मूड और भावनाओं पर भी पड़ता है। नींद पूरी न होने पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, प्रतिक्रिया धीमी होना और निर्णय लेने की क्षमता में कमी देखी जाती है। रिसर्च से पता चला है कि सिर्फ एक रात की नींद की कमी भी मानसिक स्थिति को नशे की हालत जैसी बना सकती है। नींद की कमी से दिमाग के रासायनिक संतुलन में गड़बड़ी होती है और कोर्टिसोल हार्मोन बढ़ता है, जिससे चिड़चिड़ापन, चिंता, डिप्रेशन और मूड स्विंग्स हो सकते हैं।

लंबे समय तक नींद की कमी से न्यूरो-डीजेनेरेटिव बीमारियों का खतरा बढ़ता है, और मस्तिष्क में सूजन जैसे स्थायी परिवर्तन हो सकते हैं, जो न्यूरॉन्स को नुकसान पहुंचाते हैं। साथ ही यह इम्यून सिस्टम को कमजोर करता है, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बढ़ाता है और मस्तिष्क की मरम्मत की क्षमता को घटा देता है। रिसर्च यह भी दर्शाती है कि लगातार नींद की कमी से दिमाग के कुछ हिस्सों में ग्रे मैटर कम हो जाता है, जिससे याददाश्त और भावना नियंत्रण पर असर पड़ता है।

इसके अलावा अनिद्रा (इनसोम्निया) और स्लीप एपनिया जैसी नींद से जुड़ी समस्याएं भी डिमेंशिया जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ा सकती हैं। स्लीप एपनिया में नींद के दौरान ऑक्सीजन की कमी होती है, जो धीरे-धीरे मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाती है।

कैसे करें सुधार

मस्तिष्क को स्वस्थ बनाए रखने के लिए पर्याप्त और अच्छी गुणवत्ता वाली नींद बेहद जरूरी है। वयस्कों को हर रात 7 से 9 घंटे की गहरी और आरामदायक नींद लेनी चाहिए, जिससे मानसिक संतुलन, भावनात्मक स्थिरता और सीखने की क्षमता बनी रहे। अच्छी नींद के लिए मोबाइल या स्क्रीन का कम उपयोग, नियमित नींद का समय तय करना और तनाव को कम करना जरूरी है। ध्यान (माइंडफुलनेस), सोने का शांत वातावरण और सोने से पहले की दिनचर्या को सुधारना भी अच्छी नींद पाने में मदद कर सकते हैं।

वहीं, NCBI में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, लिवर को हेल्दी रखने के लिए विटामिन ए और विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा शरीर में जरूर होनी चाहिए।