खराब डाइट और बिगड़ते लाइफस्टाइल ने लोगों को कम उम्र में ही डायबिटीज का शिकार बना दिया है। डायबिटीज दो तरह की होती है एक टाइप-1 और दूसरी टाइप-2 डायबिटीज। टाइप-1 डायबिटीज के मरीजों में इंसुलिन बिल्कुल नहीं बनता जबकि टाइप-2 डायबिटीज के मरीजों में इंसुलिन कम मात्रा में बनता है। टाइप-1 डायबिटीज बच्चों में तेजी से पनप रही है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने भारत में पहली बार टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 Diabetes) मैनेजमेंट के लिए गाइडलाइन्स जारी की है।
ICMR के मुताबिक दुनिया में दस लाख से ज्यादा बच्चे टाइप-1 डायबिटीज के शिकार है। भारत में बच्चों में टाइप-1 डायबिटीज के मामले सबसे ज्यादा हैं। ICMR की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन दशकों में भारत में टाइप-1 डायबिटीज के मरीजों की संख्या में 150 फीसदी की बढ़ेतरी हुई है। साइलेंट किलर के नाम से मशहूर ये बीमारी स्ट्रॉक और हार्ट की बीमारियों की वजह बन सकती है।
टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों के हाथ-पैर सुन्न रहते हैं और हाथ-पैरों में झुनझुनी महसूस होती है। अब सवाल ये उठता है कि आखिर टाइप-1 डायबिटीज बच्चों में तेजी से क्यों फैल रही है? जानते हैं कि उम्र के मुताबिक बच्चों के ब्लड में शुगर का स्तर कितना होना चाहिए।
बच्चों में टाइप-1 डायबिटीज होने का कारण: खराब डाइट और बिगड़ता लाइफस्टाइल बच्चों को टाइप-1 डायबिटीज का शिकार बना रहा है। टाइप-1 डायबिटीज में पैंक्रियाज इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता। इंसुलिन हार्मोन ब्लड में शुगर का स्तर कंट्रोल करता है। बच्चों में टाइप-1 डायबिटीज के मामलों में बढ़ोतरी क्यों हो रही है इसके लिए रिसर्च जारी है। कई अध्ययनों में ये बात सामने आई है कि बच्चों में टाइप-1 डायबिटीज के लिए अनुवांशिकता, उनकी डाइट और पर्यावरण जिम्मेदार है।
डायबिटीज से ग्रस्त बच्चों का कितना होता है ब्लड शुगर।
- 6 साल से 12 साल की बच्चों का फास्टिंग शुगर लेवल 80 से 180 mg/dl के बीच होता है,
- खाने से पहले इसका स्तर 90-180 mg/dl हो सकता है।
- पोस्ट प्रैंडियल शुगर लेवल 140mg/dL होना चाहिए।
- जबकि रात को 100-180 mg/dl हो सकता है।
13 से 19 साल के टीनेजर्स में फास्टिंग ब्लड शुगर लेवल
- 13 – 19 साल के टीनेजर्स में फास्टिंग ब्लड शुगर लेवल 70 से 150 mg/dl
- खाने से पहले युवाओं के रक्त शर्करा का स्तर 90 से 130 mg/dl
- रात के समय ब्लड में शुगर का स्तर 90 से 150 mg/dl होना चाहिए।