बहुत सारे लोगों की यह भी धारणा है कि शुरुआती दांत तो दूध के दांत होते हैं, वे गिर ही जाते हैं और बाद में जो दांत निकलते हैं, वही स्थायी होते हैं। मगर यह धारणा बिल्कुल गलत है। दूध के दांत उन्हें कहा जाता है, जो सामने के होते हैं। यानी ऊपर के चार और नीचे के चार। बाकी दांत सदा बने रहते हैं।

इसलिए दांतों की देखभाल की शुरुआत उसी दिन से हो जानी चाहिए, जब बच्चे के दांत निकलने शुरू होते हैं। शुरू में बच्चों को दांत साफ करने और रखने का प्रशिक्षण माता-पिता से ही मिलता है। बच्चे माता-पिता से ही अपने दांत साफ करने की आदत सीखते हैं।

ढाई साल का होने तक बच्चे के बीस दांत निकल आते हैं, जो स्पष्ट दिखाई देते हैं। अभी आपको यह काफी लंबा समय लग सकता है, मगर बेहतर है कि शिशु को कम से कम सात साल का हो जाने तक आप खुद ब्रश कराएं। इस उम्र तक पहुंचने के बाद से वह खुद अच्छे से अपने दांत साफ कर सकेगा। शुरू में आप किसी मुलायम साफ पट्टी या मलमल के कपड़े से शिशु के दांतों को साफ कर सकते हैं।

पारंपरिक तौर पर कई माएं शिशु के दांतों को सीधे अपनी उंगली से साफ करती हैं। शिशुओं के लिए आने वाले विशेष टूथब्रश का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। टूथब्रश हर एक से तीन महीनों में बदल दें। खासकर शिशुओं के लिए बने और फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट को चुनें, जो कि दांतों की सड़न को रोकने में मदद करता है। तीन साल से कम उम्र के बच्चों को कम फ्लोराइड वाले टूथपेस्ट इस्तेमाल करने चाहिए।

आपका बच्चा परिवार में इस्तेमाल होने वाले सामान्य टूथपेस्ट को तब तक इस्तेमाल नहीं कर सकता, जब तक कि वह तीन साल का नहीं हो जाता। दिन में दो बार शिशु के दांत साफ करने की आदत बनाएं। सुबह के समय अपनी दिनचर्या के बीच इसके लिए समय तय करें और शिशु को एक बार सुबह ब्रश कराएं। रात में जब शिशु का खाना-पीना हो चुका हो, तो सोने से पहले उसे एक बार और ब्रश कराएं। अगर संभव हो, जितना अधिक हो सके शिशु को आपको ब्रश करता हुए देखने दें। इससे उसे भी ब्रश करने के लिए तैयार होने में मदद मिलेगी। शिशु के दूध के दांत निकलने पर आप उसे डाक्टर के पास अवश्य ले जाएं।

दांतों की सड़न

दांतों की सड़न का मुख्य कारण मीठा है। न केवल मीठे की मात्रा हानिकारक हो सकती है, मगर यह दिन में कितनी बार खाया या पीया जाता है, यह भी नुकसानदेह है। हर बार जब भी आपका शिशु कुछ मीठा खाता है, यह उसके दांतों की मिनरल सतह को तोड़ने लगता है। आपके दांत कुछ मीठा खाने के बाद उबर सकते हैं, मगर इसमें घंटों लग सकते हैं।

अगर आपका शिशु दिन भर नियमित अंतराल पर कुछ मीठा खाता है, तो उसके दांतों को खुद उबरने का समय नहीं मिलेगा। शिशु को मीठा भोजन या पेय केवल भोजन के समय ही दें, ताकि मीठा खाने के बीच की समयावधि लंबी हो। इसमें वे मेवे भी शामिल हैं, जिनमें काफी ज्यादा मीठा होता है और वे दांतों पर चिपक जाते हैं। इसके अलावा फलों का रस और स्मूदी भी इसमें शामिल है। अगर आप शिशु को एक भोजन से दूसरे भोजन के बीच की अवधि में कुछ हल्का-फुल्का खाने को देना चाहते हैं, तो कुछ नमकीन विकल्प जैसे कि चीज, छोटी इडली, खाखरा, कटलेट या सब्जियां दें।

भोजन का चुनाव

शिशु को पेय के तौर पर केवल स्तनदूध, फार्मूला दूध या उबाल कर ठंडा किया गया पानी ही दें। कोशिश करें कि शर्बत, फलों का रस, फ्लेवर्ड दूध या सोडायुक्त पेय शिशु को न दें। इनमें आमतौर पर बहुत मीठा होता है और ये दांतों की सड़न पैदा करते हैं। छह महीने का हो जाने के बाद शिशु को गिलास या सिपर से पेय पिलाएं। शिशु के एक साल का हो जाने के बाद उसके बोतल का इस्तेमाल बंद कर दें।

शिशु को स्वस्थ, संतुलित आहार दें। उसे नमकीन भोजन जैसे कि सब्जियां, खिचड़ी, भरवां रोटी और परांठा या पास्ता खाने के लिए प्रेरित करें और उसके खाने में मीठा न मिलाएं। अगर आप डिब्बाबंद शिशु आहार इस्तेमाल करते हैं, तो देख लें कि वे शुगर-फ्री हों या फिर उनमें अतिरिक्त चीनी या मीठा न मिलाया गया हो। ध्यान रखें कि अन्य मीठा जैसे कि लैक्टोस, फ्रूक्टोस और ग्लूकोस, ये सब भी शिशु के दांतों के लिए उतने ही नुकसानदेह हैं, जितनी की सादा चीनी।

अगर शिशु को दवाई लेने की जरूरत हो, तो डाक्टर से पूछ लें कि क्या इनके शुगर-फ्री विकल्प भी उपलब्ध हैं। क्या शिशु को फ्लोराइड युक्त पदार्थ देने चाहिए? डाक्टर ही शिशु की उम्र के हिसाब से सही खुराक बता सकते हैं। वे इस बात को भी मद्देनजर रखेंगे कि स्थानीय पानी फ्लूराइड युक्त है या नहीं। यदि दांतों के विकसित होने के समय आपका बच्चा बहुत ज्यादा फ्लोराइड लेता है, तो इससे उसके दांत खराब हो सकते हैं, और दांतों पर चित्तीदार परत दिख सकती है।
(यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी और जागरूकता के लिए है। उपचार या स्वास्थ्य संबंधी सलाह के लिए विशेषज्ञ की मदद लें।)