Antibiotics: बदलती लाइफस्टाइल और भागदौड़ भरी जिंदगी में सेहत पर ठीक से ध्यान नहीं दिया जा सकता। इसलिए जब हम बीमार पड़ते हैं तो डॉक्टर के पास दौड़ पड़ते हैं। फिर डॉक्टर कई दवाएं लिखते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं, वर्तमान में भारत के विभिन्न अस्पतालों के आईसीयू में भर्ती कई मरीज अपनी जान नहीं बचा सकते क्योंकि उन पर एंटीबायोटिक्स काम नहीं कर रही हैं।
बता दें कि कोरोनाकाल में भारतीयों ने इतनी एंटीबायोटिक्स ले ली हैं कि अब इन दवाओं ने काम करना बंद कर दिया है। भारत में एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल को लेकर हाल ही में ICMR की एक रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट में कई खुलासे हुए हैं। यदि इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का सहारा लेते हैं तो इस खबर को ध्यान से पढ़ें-
ICMR के रिपोर्ट में हुआ खुलासा
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा एंटीबायोटिक दवाओं पर किए गए एक अध्ययन में एक भयावह तस्वीर सामने आई है। अध्ययन के अनुसार, ऐसी संभावना है कि अधिकांश रोगियों में एंटीबायोटिक दवा “कार्बेपनेम” बिल्कुल भी काम नहीं कर रही है क्योंकि इन रोगियों में इस दवा के प्रति रोगाणुरोधी क्षमता विकसित हो गई है। ICMR की यह रिपोर्ट शुक्रवार यानि 09 सितंबर 2022 को जारी की गई। यह देश में माइक्रोबियल इम्युनिटी (AMR) पर आईसीएमआर द्वारा जारी की गई पांचवीं विस्तृत रिपोर्ट है। अस्पताल से मिले आंकड़ों को भी इस साल की रिपोर्ट में शामिल किया गया है।
शक्तिशाली एंटीबायोटिक दवा का असर खत्म!
“कार्बेपनेम” एक शक्तिशाली एंटीबायोटिक दवा है जो मुख्य रूप से आईसीयू में भर्ती निमोनिया और सेप्टीसीमिया के रोगियों के लिए निर्धारित है। अध्ययन दल का नेतृत्व करने वाली आईसीएमआर की वैज्ञानिक डॉ. कामिनी वालिया ने कहा कि 1 जनवरी से 31 दिसंबर 2021 के बीच आंकड़ों का विश्लेषण किया गया।
यह पाया गया कि दवा प्रतिरोधी रोगाणुओं (रोगजनकों) की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस वजह से मौजूदा एंटीबायोटिक दवाओं की मदद से कुछ प्रकार के संक्रमणों का इलाज करना कठिन होता जा रहा है। डॉ. वालिया ने कहा कि अगर तत्काल उचित कदम नहीं उठाए गए तो माइक्रोबियल इम्युनिटी का विकास भविष्य में महामारी का रूप ले सकता है।
65% से घटकर 43% पर पहुंचा दवाओं का असर
“क्लेबसिएला निमोनिया” के उपचार में उपयोग की जाने वाली विशेष प्रकार की एंटीबायोटिक दवाओं की प्रभावशीलता में भी कमी आई है। बता दें कि साल 2016 में इन दवाओं का प्रभाव 65% तक होता था, जो कि 2020 में घटकर 45% पर और 2021 में कम होकर 43% पर आ गया।
भारत में एंटीबायोटिक दवाओं का व्यापक उपयोग
लैंसेट (THE LANCET) के शोध से पता चलता है कि भारत में एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग पर कोई नियंत्रण नहीं है। लैंसेट की इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 44 फीसदी एंटीबायोटिक बिना मंजूरी के इस्तेमाल किए जा रहे हैं। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) द्वारा केवल 46% दवाओं को मंजूरी दी गई है।
एज़िथ्रोमाइसिन: भारत में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला एंटीबायोटिक
लैंसेट के रिपोर्ट में विशेष रूप से एज़िथ्रोमाइसिन (Azithromycin Side Effect) दवा के दुरुपयोग का के बारे में लिखा गया है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कई राज्य सरकारों ने कोरोना काल में एंटीबायोटिक दवा एजिथ्रोमाइसिन को कोविड के इलाज के प्रोटोकॉल में शामिल कर लिया था और कोविड के बाद कई लोगों ने खुद एजिथ्रोमाइसिन लेना शुरू कर दिया था।
जानिए हेल्थ एक्सपर्ट ने क्या कहा
जनसत्ता डॉट कॉम से बात करते हुए दिल्ली के मूलचंद हॉस्पिटल के पल्मोनरी विभाग के डॉक्टर भगवान मंत्री ने बताया कि, “कोरोना के दौरान एंटीबायोटिक्स अनावश्यक रूप से दिए गए थे। इसी तरह भारत में ऐसे डॉक्टर भी कम नहीं हैं जो सर्दी और फ्लू जैसे वायरल संक्रमण के बाद एंटीबायोटिक्स लिखते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि जब तक वास्तव में एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता होती है, तब तक उन्होंने शरीर पर काम करना बंद कर दिया है।”
डॉक्टर भगवान ने आगे बताया कि, “रोगी को बैक्टीरियल संक्रमण से बचाने के लिए सर्जरी के बाद अक्सर एंटीबायोटिक्स की आवश्यकता होती है। निमोनिया के इलाज में और गंभीर घाव जैसे संक्रमणों में एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया जाता है, लेकिन अब स्थिति यह है कि आईसीयू में भर्ती गंभीर रोगियों में कई एंटीबायोटिक्स काम नहीं कर रहे हैं।”