अर्जुन सेनगुप्ता
शराबबंदी (Liquor Ban) वाले बिहार (Bihar) में एक बार फिर जहरीली शराब (Poisonous Liquor) पीने से कई लोगों की मौत हो चुकी है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच राजनीतिक हंगामा मचा हुआ है। जिस शराब से लोगों की मौत हुई है, वह बाजार में मिलने वाले शराब के मानकों के अनुरूप नहीं होता है। अब सवाल उठता है कि शराब जहरीली कैसे हो जाती है, देसी शराब को कैसे बनाया जाता है? आइए जानते हैं जुगाड़ तकनीक से बनाए जाने वाले देसी शराब से जुड़ा सबकुछ:
खराब शराब को हूच क्यों कहा जाता है?
खराब गुणवत्ता वाली शराब के लिए आमतौर पर हूच (Hooch) शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। यह अलास्का मूल के जनजाति हूचिनो से बना शब्द है। हूचिनो आदिवासियों को स्ट्रांग शराब बनाने के लिए जाना जाता है। ब्रांडेड शराबों को उच्च तकनीक से लैस मशीनों से बनाया जाता है। गुणवत्ता की बारीकी से जांच होती है। इसके विपरीत कच्ची शराब बिना किसी गुणवत्ता जांच के जुगाड़ तकनीक की मदद से बनाई जाती है।
हूच ब्रांडेड शराबों की तुलना में अधिक नशा करता है। हूच के साथ समस्या बस यह है कि अगर गलत तरीके से बन जाए, तो जान लेना हो सकता है। इससे भी चिंताजनक बात यह है कि हूच को पीने से पहले यह पता लगाना लगभग असंभव है कि उसका सेवन सुरक्षित है या नहीं।
कैसे बनती है शराब
दो बुनियादी प्रक्रियाओं के इस्तेमाल से शराब बनाया जाता है। पहला है- फर्मेंटेशन, दूसरा है- डिस्टिलेशन। बीयर और वाइन को अनाज, फल, गन्ना आदि को फर्मेंट कर बनाया जाता है। हालांकि फर्मेंटेशन के बजाए डिस्टिलेशन की प्रक्रिया से बनाए गए, शराब को अधिक गुणकारी माना जाता है। सभी स्पिरिट जैसे- व्हिस्की, वोदका, जिन, आदि डिस्टिलेशन की तकनीक से ही बनाया जाता है।
हूच कैसे बनाया जाता है?
हूच को भी डिस्टिलेशन के सिद्धांत से ही बनाया जाता है। सबसे पहले फर्मेंटेशन के लिए एक बड़े बर्तन में स्थानीय रूप से उपलब्ध खमीर, और चीनी या फल (अक्सर सड़े हुए फल) को गर्म करते हैं। पर्याप्त फर्मेंटेशन हो जाने के बाद, इस मिश्रण को एक बेसिक सेटअप का इस्तेमाल कर डिस्टिलेशन की प्रक्रिया शुरू की जाती है।
एक बड़े बर्तन में फर्मेंटेशन से तैयार मिश्रण को उबाला जाता है। उबाल से निकल रहे धुएं को एक पाइप की मदद से दूसरे बर्तन में उतारा जाता है। जिस बर्तन में भाप को उतारा जाता है, उसे ठंडा रखने के लिए उस पर गीला कपड़ा लपेट दिया जाता है। इस बर्तन में एकत्रित हो रहा पदार्थ ही अल्कोहल होता है। फाइनल प्रोडक्ट में अल्कोहल की मात्रा बढ़ाने के लिए बार-बार डिस्टिलेशन किया जाता है।
कैसे जानलेवा बन जाता है हूच
हूच बनाने के अपरिष्कृत तरीके में ही जोखिम अंतर्निहित है। डिस्टिल्ड किए जाने वाले फर्मेंटेड मिश्रण में अल्कोहल (इथेनॉल) पहले ही अधिक होता है। साथ ही मेथनॉल भी होता है, जो अल्कोहल का एक अलग रूप है। मेथनॉल इंसानों के लिए अत्यधिक विषैला होता है। मेथनॉल का उपयोग आमतौर पर औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। डिस्टिलेशन के दौरान इथेनॉल और मेथनॉल दोनों केंद्रित होते हैं।
मेथनॉल का बॉलिंग पॉइंट 64.7 °C होता है। जबकि इथेनॉल का बॉलिंग पॉइंट 78.37 °C होता है। इसका मतलब यह है कि डिस्टिलेशन के दौरान जब मिश्रण 64.7 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, तो अल्कोहल इकट्ठा करने वाले बर्तन में अत्यधिक जहरीले रसायन से भरना शुरू हो जाता है। फाइनल प्रोडक्ट को सुरक्षित बनाने के लिए इसे फेंक दिया जाना चाहिए। इसके अलावा, 78.37 डिग्री सेल्सियस से ऊपर लेकिन 100 डिग्री सेल्सियस से नीचे का तापमान बनाए रखना महत्वपूर्ण है ताकि उपभोग के लिए सुरक्षित लेकिन स्ट्रॉग शराब मिल सके।
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ब्रांडेड शराब बनाने वालों के पास इस प्रक्रिया की सटीकता बनाए रखने के लिए परिष्कृत उपकरण होते हैं। लेकिन हूच निर्माताओं के पास तापमान नियंत्रण करने का कोई उपकरण नहीं होता है। इसका मतलब यह हुआ कि डिस्टिलेशन की प्रक्रिया में सटीकता की कमी से ही देसी शराब जहरीली हो जाती है। इसके अलावा मिलावट भी देसी शराब को जहरीला बनाती है।