पिछले महीने उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा स्थित शारदा विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान के एक शिक्षक को सिर्फ इसलिए निलंबित कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने परीक्षा में फासीवाद और हिन्दुत्व से जुड़ा एक प्रश्न पूछ लिया था। सवाल था, ”क्या आप फासीवाद/नाज़ीवाद और हिंदू दक्षिणपंथी (हिंदुत्व) के बीच कोई समानता पाते हैं? तर्कों के साथ बताएं।”
विश्वविद्यालय का तर्क था कि ‘प्रश्न’ से सामाजिक कलह भड़क सकता था। शिक्षक के निलंबन की कार्रवाई के बाद इस सवाल पर खूब चर्चा होने लगी है कि क्या सच में हिन्दुत्व और फासीवाद के बीच कोई संबंध है? भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने भी अपने लेख में इस सवाल का देने की कोशिश की है। उन्होंने इटैलियन इतिहासकार मार्जिया कोसालेरी के लेख और किताब से हिन्दुत्व और फासीवाद के संबंध को देखने का प्रयास किया है। इस विषय पर लिखी कोसालेरी की किताब ‘इन द शैडो ऑफ द स्वास्तिका: द रिलेशनशिप बिटवीन इंडियन रेडिकल नेशनलिज्म, इटैलियन फासिज्म एन्ड नाजीज्म’ बेहद चर्चित है।
क्या है कड़ी?
भारत में आरएसएस को हिन्दुत्व की सबसे बड़ी संस्था के रूप में जाना जाता है। आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार अपने गुरु बीएस मुंजे से बहुत प्रभावित थे। मार्जिया कोसालेरी अपने लेख में बताती हैं कि मुंजे ही पहले हिंदुत्ववादी नेता थे, जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले इटली की फासीवादी सरकार से संपर्क किया। उस वक्त तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी ने इटली में लोकतंत्र को खत्म कर फासीवादी सरकार बनाई थी। मुसोलिनी को फासीवाद का जनक माना जाता है। फासीवाद एक विचारधारा है जो उदारवाद और लोकतंत्र का विरोध करता है। साथ ही निरंकुशवाद, उग्र-राष्ट्रवाद, युद्धवाद और पूंजीवाद का समर्थन करता है।
इतिहास बताता है कि मुंजे इसी फासीवादी मुसोलिनी के मुरीद थे। नवंबर 1930 से जनवरी 1931 तक लंदन में पहला गोलमेज सम्मेलन हुआ था। मुंजे इस सम्मेलन में कांग्रेस के विरोध के बावजूद हिंदू पक्ष के प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए थे। कोसालेरी बताती हैं कि गोलमेज सम्मेलन के बाद मुंजे 15 मार्च से 24 मार्च तक इटली में भी रुके। यहां उन्होंने इटली के दो संस्थान- द बाल्लिया और अवांगार्दिस्त ऑर्गेनाइजेशन का दौरा किया। इन दोनों संस्थानों में युवाओं को फासीवादी विचारधारा का प्रशिक्षण दिया जाता था। कोसालेरी अपने लेख में फासीवादी संस्थानों की प्रशिक्षण पद्धति और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रशिक्षण पद्धति में अद्भुत समानता पाती हैं। उदाहरण देते हुए कोसालेरी लिखती हैं, जिस तरह बाल्लिया में अलग-अलग उम्र के युवाओं को अलग-अलग समूह में ट्रेनिंग दी जाती थी। ठीक यही मानक आरएसएस की ट्रेनिंग में भी देखने को मिलता है।
मुंजे ने खुद भी लिखा कि फासीवादी का विचार स्पष्ट रूप से जनता में एकता स्थापित करने की परिकल्पना को साकार करता है। भारत और विशेषकर हिंदुओं को ऐसे संस्थानों की जरूरत है, ताकि उन्हें भी उन्हें भी सैनिक के रूप में ढाला जा सके। नागपुर स्थित डॉ हेडगेवार का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी ऐसा ही संस्थान है।
इटली के फासीवाद और आरएसएस की विचारधारा में समानता का जिक्र कर करते हुए मुंजे ने लिखा है, फासीवाद का विचार लोगों के बीच एकता की अवधारणा को स्पष्ट रूप से सामने लाता है। भारत में हिंदुओं के सैन्य उत्थान के लिए कुछ ऐसे संस्थान की आवश्यकता है… नागपुर के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हमारी संस्था इसी तरह की है, हालांकि काफी स्वतंत्र रूप से कल्पना की गई है।
मुंजे से मुसोलिनी की मुलाकात
गोलमेज सम्मेलन के दौरान ही मुंजे ने मुसोलिनी से मुलाकात की थी। इस भेंट के दौरान मुंजे ने मुसोलिनी के फासीवादी युवा संगठनों की तारीफ करते हुए कहा था, ”मैं बहुत प्रभावित हूं। हर महत्वाकांक्षी और बढ़ते राष्ट्र को ऐसे संगठनों की जरूरत है।” अपनी मुलाकात के बारे में मुंजे लिखते हैं, ”इस तरह यूरोपीय दुनिया के महान व्यक्तियों में से एक, मुसोलिनी के साथ मेरा यादगार साक्षात्कार समाप्त हो गया। उनका चेहरा उन्हें दृढ़ इच्छाशक्ति और शक्तिशाली व्यक्तित्व के व्यक्ति के रूप में दर्शाता है।”
हेडगेवार व कुछ अन्य साथियों के साथ एक बैठक के दौरान मुंजे भारत में मुसोलिनी या हिटलर जैसे तानाशाह के उदय का सपना देखते। वो कहते हैं, ”मैंने हिंदू धर्म शास्त्र पर आधारित एक योजना के बारे में सोचा है जो पूरे भारत में हिंदू धर्म के मानकीकरण का प्रावधान करती है। लेकिन ये आदर्श तब तक हकीकत नहीं बन सकता, जब तक हमारे पास अपना स्वराज न हो। पहले की तरह एक हिन्दू के रूप में शिवाजी या वर्तमान समय के मुसोलिनी या हिटलर जैसे तानाशाह न हो। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम तब तक हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे जब तक भारत में कोई ऐसा तानाशाह न उठ जाए। हमें एक वैज्ञानिक योजना बनानी चाहिए और उसका प्रचार-प्रसार करना चाहिए।”
‘भविष्य का फासीवादी संघ’
एक पुलिस अधिकारी के नोट को जिक्र करते हुए कासोलारी ये स्थापित करने का प्रयास करती हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भविष्य का ‘फासीवादी/नाजीवादी’ साबित होगा। कासोलारी बताती हैं, ”1933 के एक पुलिस अधिकारी के नोट में आरएसएस के बारे में लिखा था कि यह कहना शायद कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि भविष्य के भारत में संघ इटली के ‘फासीवादी’ और जर्मनी के ‘नाजियों’ की तरह हो सकता है।”