Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) के मसले पर 27 अप्रैल को केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के लिए कानून री-ड्राफ्ट नहीं किया जा सकता है। 27 अप्रैल को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने कहा, मान लीजिए कि कोई समलैंगिक कपल 25 लोगों को लाता है और विवाह समारोह आयोजित करता है, ऐसी स्थिति में आप यह मानते हैं कि समारोह आयोजित करने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है, लेकिन सवाल इस शादी की कानूनी मान्यता का है।
इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (SG Tushar Mehta) ने कहा कि हाल ही में गुजरात में एक महिला ने खुद से शादी कर ली… पता नहीं कैसे! इस पर जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने मुस्कुराते हुए, ‘कहा यह तो बहुत दिलचस्प मामला है… काफी दिलचस्प है’।
केंद्र सरकार की 5 प्रमुख दलीलें
1- 27 अप्रैल को केंद्र सरकार की तरफ से पेश एसजी तुषार मेहता ने पहली दलील दी कि तमाम धर्म सिर्फ महिला और पुरुष के बीच शादी को मान्यता देते हैं। यदि समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने की बात आती है, तो पार्लियामेंट ही इस पर कोई फैसला ले सकती है। उन्होंने कहा कि जहां तक बात, स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 की है, उसका मूल भी पर्सनल लॉ ही है।
2- तुषार मेहता ने अपनी दलील में याचिकाकर्ताओं के उस तर्क का जवाब दिया कि पर्सनल रिलेशनशिप को रेगुलेट करने का स्टेट को कोई अधिकार नहीं है। एसजी मेहता ने कहा कि विवाह में रेगुलेट करने में राज्य का एक वैध हित है। उन्होंने तर्क दिया कि शादी का अधिकार एब्सॉल्यूट नहीं है, बल्कि सक्षम विधायिका द्वारा प्रदान किए गए वैधानिक अधिकार के तहत आता है।
एसजी तुषार मेहता ने अपनी दलील में शादी के विभिन्न पहलुओं का जिक्र किया। कहा- शादी की उम्र, पार्टनर की रजामंदी, बहु विवाह पर रोक, तलाक अथवा अलगाव जैसे पहलू किस तरीके से कानूनी दायरे में आते हैं।
3- मेहता ने दलील दी कि साल 2017 के ऐतिहासिक ‘राइट टू प्राइवेसी’ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि सेक्सुअल ओरियंटेशन आपकी पहचान का एक अनिवार्य अंग है। उन्होंने कहा कि राइट टू प्राइवेसी की बात आती है तो इसे विवाह के अधिकार तक नहीं बढ़ाया जा सकता है। एसजी मेहता ने कहा कि दो एडल्ट्स के बीच अपने प्राइवेट स्पेस में इंटिमेट संबंध उनका व्यक्तिगत मुद्दा है। लेकिन जब बात उनके रिलेशनशिप को मान्यता देने की आती है तब यह व्यक्तिगत से कहीं ज्यादा लोगों से जुड़ जाता है। और इसमें पब्लिक एलिमेंट शामिल है।
4- केंद्र सरकार लगातार कहती रही है कि सेम सेक्स मैरिज एक ऐसा मसला है जिस पर पार्लियामेंट ही कोई फैसला ले सकती है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो हर नागरिक से जुड़ा है, ऐसे में विधायी दायरे में आता है। एसजी मेहता ने अपनी दलील में कहा कि यदि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दे दी गई तो 160 कानून में बदलाव करने होंगे और आखिरकार इस पर संसद को ही फैसला लेना होगा।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के सामने एक-एक कर तमाम अड़चनें गिनाईं, जो समलैंगिक शादी की मान्यता के बाद आ सकती हैं। उन्होंने कहा था कि LGBTQ में कुल 72 कैटेगरीज हैं, और ऐसे में क्या दिक्कतें आ सकती हैं इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
5- केंद्र सरकार की एक और महत्वपूर्ण दलील है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए कोर्ट, स्पेशल मैरिज एक्ट की पुनः व्याख्या नहीं कर सकता है। सॉलिसिटर मेहता ने दलील दी कि कोर्ट को स्पेशल मैरिज एक्ट के पूरे ढांचे को देखना होगा ना कि सिर्फ हसबैंड, वाइफ जैसे कुछ चुनिंदा शब्दों को। मेहता ने उदाहरण देते हुए बताया कि स्पेशल मैरिज एक्ट में सिर्फ हसबैंड या वाइफ जैसे शब्दों को बदलने से चीजें उपयुक्त नहीं होंगी।
एसजी मेहता ने इसका उदाहरण दिया और कहा कि शादी के बाद पत्नी को कई तरह के अधिकार मिलते हैं। उदाहरण के तौर पर कानून कहता है कि शादी के बाद पत्नी को पति का डोमिसाइल मिलता है। समलैंगिक विवाह में पत्नी कौन होगी, यह कौन तय करेगा?