फिल्म ‘जॉली एलएलबी’ का वह सीन तो आपको याद होगा, जिसमें जज की भूमिका निभाने वाले अभिनेता सौरभ शुक्ला रात तक सुनवाई करते रहे। ऐसा ही मामला मद्रास हाई कोर्ट में हुआ। तमिलनाडु के ऊर्जा और आबकारी मंत्री वी. सेंथिल बालाजी (V Senthil Balaji) की विवादित गिरफ्तारी के खिलाफ दायर याचिका पर हाईकोर्ट में 16 घंटे तक सुनवाई चली। देश के दो दिग्गज वकील- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने एक के बाद एक दलीलें दीं।
मद्रास हाई कोर्ट में सुनवाई के ED की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। तो वी. सेंथिल बालाजी की पत्नी की तरफ से पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी (Mukul Rohatgi) पैरवी कर रहे थे। हाई कोर्ट में जस्टिस निशा बानू और जस्टिस डी. भारथ चक्रवर्ती की डिवीजन बेंच के सामने सुनवाई का सबसे प्रमुख केंद्र यह था कि क्या ईडी ने, सेंथिल की गिरफ्तारी में कानून का पालन नहीं किया और अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया।
सुनवाई के दौरान यह सवाल प्रमुखता से उठा कि क्या ED के पास बिना प्री-अरेस्ट नोटिस के किसी की गिरफ्तारी का अधिकार है और बाद में गिरफ्तार किए गए शख्स की हिरासत मांग सकता है? सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ईडी की कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा कि प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग एक्ट यानी पीएमएलए (PMLA) के तहत ईडी को यह अधिकार है कि वह किसी ऐसे शख्स को गिरफ्तार कर सकती है, जिसके बारे में उसे लगता है कि वह शख्स अधिनियम के तहत दंड का अधिकारी है।
ED के खिलाफ क्या हैं आरोप?
वी. सेंथिल बालाजी (V Senthil Balaji) की पत्नी एस. मेगला (S. Megala) ने मद्रास हाई कोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दाखिल की हैं। एक याचिका में आरोप लगाया है कि ईडी ने उनके पति की गिरफ्तारी से लेकर रिमांड में कानून का पालन नहीं किया और रैपिड एक्शन फोर्स (RAF) की मदद से बालाजी को गिरफ्तार किया। याचिका में आरोप है कि गिरफ्तारी के वक्त बालाजी के जो दोस्त, रिश्तेदार वहां मौजूद थे उन्हें जबरन घर से निकाला गया। फिर घर का मेन गेट बंद कर दिया गया और बाहर रैपिड एक्शन फोर्स तैनात कर दी गई। किसी को नहीं पता कि 13 जून की सुबह 7:45 से लेकर 14 जून की दोपहर 2:00 बजे तक घर के अंदर क्या हुआ। 14 जून की दोपहर 2:30 बजे खुद ईडी ने बालाजी को छाती में दर्द की शिकायत के बाद हॉस्पिटल ले गई।
एस. मेगला का आरोप है कि उनके पति बालाजी की गिरफ्तारी के दौरान सीआरपीसी की धारा 41, 41A, 50 और 50A का उल्लंघन किया साथ। ही PMLA एक्ट के सेक्शन 19 और संविधान के आर्टिकल 21 और 22(1) का भी उल्लंघन हुआ। यह भी आरोप है कि प्रिंसिपल सेशन जज ने बिना बालाजी की आपत्तियों को सुने और उचित प्रक्रिया को फॉलो किए, न्यायिक हिरासत में भेज दिया।
क्या विरोधाभासी हैं 2 जजमेंट?
एस. मेगला (S. Megala) ने इसके पक्ष में प्रिंसिपल सेशन जज के दो अलग-अलग जजमेंट का हवाला दिया है। आरोप लगाया है कि प्रिंसिपल सेशन जज के दो आदेश आपस में विरोधाभासी हैं। एक आर्डर में ED को बालाजी की हिरासत देते हुए कहा है कि वह जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं। जबकि दूसरे आदेश में उनकी जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा गया है कि सहयोग कर रहे हैं। दोनों बातें आपस में मेल नहीं खाती हैं।
मेगला ने सीआरपीसी (CrPC) की धारा 167 के तहत बालाजी की हिरासत मांगने पर भी सवाल उठाए हैं और कहा है कि सिर्फ पुलिस को ही सेक्शन 167 के तहत हिरासत मांगने का अधिकार है। ईडी के अफसरों को यह अधिकार है ही नहीं। याचिका में कहा है कि पीएमएलए के सेक्शन 19 के तहत ईडी, किसी भी शख्स को गिरफ्तार करने के 24 घंटे बाद तक हिरासत में रख ही नहीं सकती है।
SG तुषार ने क्या जवाब दिया?
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पीएमएलए और सीआरपीसी के तहत गिरफ्तारी की शक्तियों में साफ-साफ अंतर है। उन्होंने तर्क दिया कि सीआरपीसी की धारा 41 के तहत प्री अरेस्ट नोटिस की तभी जरूरत पड़ती है, जब ईडी किसी शख्स को गिरफ्तार नहीं करना चाहती है। लेकिन इस केस में मामला इससे उलट है। ईडी, बालाजी को गिरफ्तार करना चाहती थी। वहीं, पीएमएलए के तहत किसी भी आरोपी को सबूत नष्ट करने की संभावना से रोकने के लिए भी गिरफ्तार किया जा सकता है।
तुषार मेहता ने कहा कि कानून में कहा गया है कि किसी आरोपी की गिरफ्तारी के फौरन बाद इसकी सूचना देनी चाहिए, लेकिन यह जरूरी नहीं है गिरफ्तारी के वक्त ही सूचना दी जाए। मेहता ने कोर्ट से गुहार लगाई कि बालाजी की न्यायिक हिरासत में पूछताछ की अवधि में उनके हॉस्पिटल में भर्ती होने की अवधि शामिल ना की जाए।
मुकुल रोहतगी की दलील?
बालाजी की पत्नी की तरफ से पेश मुकुल रोहतगी ने कहा कf किसी भी कानून में प्रावधान नहीं है कि आरोपी से पूछताछ की अनुमति देते समय उसके अस्पताल में भर्ती होने की अवधि को पूछताछ की अवधि से बाहर निकाल दिया जाएगा। रोहतगी ने कहा कि भले ही भूकंप, महामारी या कोई और विपरीत परिस्थिति हो लेकिन किसी भी आरोपी की न्यायिक पूछताछ की अवधि 15 दिन से ज्यादा नहीं दी जा सकती। बालाजी के मामले में 15 दिन की अवधि 28 जून को ही खत्म हो गई है। अब ईडी के पास आगे Custodial Interrogation का कोई अधिकार नहीं है। रोहतगी ने बालाजी की पत्नी द्वारा दायर हैबियस कॉर्पस याचिका को वैध ठहराते ईडी की कार्रवाई पर सवाल उठाए। फिलहाल हाईकोर्ट ने इस मामले में फैसला रिजर्व रख लिया है।
कौन हैं सेंथिल, क्या हैं आरोप?
वी. सेंथिल बालाजी (V Senthil Balaji) तमिलनाडु की स्टालिन सरकार में ऊर्जा और आबकारी मंत्री हैं। प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने सेंथिल को कथित नौकरी घोटाले में पीएमएलए एक्ट के तहत गिरफ्तार किया है। सुप्रीम कोर्ट ने मई में ही सेंथिल के खिलाफ कैश फॉर जॉब घोटाले में ईडी जांच को मंजूरी दी थी। आरोप है कि सेंथिल साल 2014 में जब अन्नाद्रमुक सरकार में परिवहन मंत्री थे, तब ड्राइवर, कंडक्टर, जूनियर ट्रेडमैन, जूनियर इंजीनियर और सहायक इंजीनियर जैसी भर्तियों में कथित घोटाला हुआ था।
साल 2015 में देवसगयम नाम के एक शख्स ने पहली शिकायत दर्ज कराई और आरोप लगाया कि उसने अपने बेटे को नौकरी दिलाने के लिए ढाई लाख रुपए घूस दिए थे लेकिन उसके बेटे को न तो नौकरी मिली और ना पैसे वापस हुए। फिर 2016 में एक और शख्स, गोपी ने भी इसी तरह के आरोप लगाए। साथ ही हाईकोर्ट भी पहुंच गया।