राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पहली बार ईसाई धर्म के सबसे बड़े त्योहार पर कोई कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। आरएसएस का राष्ट्रीय ईसाई मंच क्रिसमस (Christmas) के मौके पर जम्मू-कश्मीर से केरल तक भोज का आयोजन कर रहा है। क्रिसमस भोज में भारत के विभिन्न महत्वपूर्ण चर्चों के प्रमुखों को बुलाया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कार्यक्रम में RSS के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार भी शामिल हो सकते हैं।
ईसाइयों को देश के लिए खतरा मानते थे दूसरे संघ प्रमुख
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के ‘गुरुजी’ माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर (Madhav Sadashivrao Golwalkar) ईसाइयों को भारत के लिए खतरनाक मानते थे। आरएसएस के संस्थापक और पहले सरसंघचालक (प्रमुख) केशव बलिराम हेडगेवार की मृत्यु के बाद संघ की कमान गोलवलकर को मिली थी। वह 1940 से लेकर अपनी मृत्यु यानी करीब 33 वर्षों तक संघ के सरसंघचालक रहे। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने ही आजादी के बाद संघ को संस्थागत शक्ति दिलाई थी।
साल 1966 में गोलवलकर ने अपने विचारों को एक किताब में समाहित किया। वह किताब ‘बंच ऑफ थॉट’ के नाम से प्रकाशित हुई थी। इस किताब को संघ का बाइबल तक कहा जाता है। यह किताब चार भागों में बंटी हुई है। दूसरे भाग ‘राष्ट्र और उसकी समस्याओं’ में एक एक टॉपिक ‘आंतरिक खतरा’ नाम से हैं। इसी टॉपिक में गोलवलकर ने मुसलमानों, ईसाइयों और वामपंथियों को देश के लिए आंतरिक खतरा बताया है।
उनका मानना था कि हैं ईसाई अपना काम एजेंडा के तहत करते हैं सरल व भोले लोग उनके झांसे में आ जाते हैं। वह ईसाइयों के स्कूल, कॉलेज, अस्पताल और अनाथालय संचालन पर सवाल उठाते हुए लिखते हैं, ”इन तमाम गतिविधियों में करोड़ों रुपये झोंकने में ईसाइयों का असली और परोक्ष मकसद क्या है?”
चर्चा पर हमला, संघ पर आरोप
साल 2008 में कर्नाटक में कई गिरजाघरों पर सिलसिलेवार ढंग से हमला किया गया था। हमले का आरोप संघ परिवार पर लगा था। हालांकि बाद में एक सदस्यीय न्यायिक आयोग ने आरएसएस को क्लीन चिट दे दिया था। आरएसएस से जुड़ी पत्रिका पांचजन्य ने चर्च और पादरियों पर निशाना भी साधा जा चुका है। हालांकि अब आरएसएस ईसाई समुदाय को जोड़ने की कोशिशों में जुटा है।