अक्षय कुमार की फिल्म राम सेतु का ट्रेलर रिलीज हो चुका है। ट्रेलर को देख 2005 की यूपीए-1 सरकार की याद ताजा हो जाती है। तब मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट लॉन्च किया था, जिसके मुताबिक बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के बीच सीधा समुद्री मार्ग बनाया जाना था।

12 मीटर गहरे और 300 मीटर चौड़े चैनल वाले उस प्रोजेक्ट के लिए ‘रामसेतु’ की चट्टानों को तोड़ना था। लेकिन उससे पहले ही मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। कांग्रेस ने अपनी याचिका में रामायण की बातों को वैज्ञानिक मानने से इनकार कर दिया था। भाजपा और हिंदू दक्षिणपंथी दलों के भारी विरोध के बाद प्रोजेक्ट रुक गया। अक्षय कुमार की हालिया फिल्म इसी टॉपिक के इर्द-गिर्द है।  

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क्या है राम सेतु?

भारतीय जनमानस के बीच राम सेतु के नाम से प्रचलित पुल का महत्व सिर्फ उसकी वास्तुकला के लिए नहीं है। देश में उस पर राजनीतिक, पौराणिक और वैज्ञानिक बहस भी हुई है। भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर रामेश्वरम और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के बीच चूना पत्थर से बना 48 किलोमीटर लंबा एक चेन ब्रिज है।

महाकाव्य रामायण को इतिहास मानने वाला वर्ग इसी ब्रिज को ‘राम सेतु’ कहता है। उनके मुताबिक राजा राम ने अपनी पत्नी सीता को रावण के साम्राज्य लंका से वापस लाने के लिए वानर सेना की मदद से इस पुल को बनाया था। पुल से चमत्कार की एक कहानी भी जुड़ी है, जिसमें बताया जाता है कि पत्थर पर राम का नाम लिखने से वह पानी पर तैरने लगे थे।

हालांकि वैज्ञानिक नजरिया रखने वाले पानी पर पत्थर के तैरने की घटना को साइंस से जोड़कर देखते हैं। वह बताते हैं कि कोरल और सिलिका पत्थर गरम होने पर हल्के हो जाते हैं, जिसके बाद उनके पानी पर तैरने की घटना में कोई आश्चर्य नहीं है।

राम सेतु और विज्ञान

जनवरी 2021 में ‘द क्विंट’ पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) ने ‘प्रोजेक्ट रामेश्वरम’ के तहत अपने अध्ययन में संकेत दिया था कि ब्रिज जिन दो द्वीपों को जोड़ता है, उनका उद्भव अलग-अलग वक्त पर हुआ था। रामेश्वरम करीब 7,000 साल और तलाईमन्नार करीब 18,000 साल पुराना द्वीप है।

जहां तक ब्रिज का सवाल है, तो वह करीब 500 से 600 साल पुराना है। कथित तौर पर यह पुल 15वीं शताब्दी तक पैदल चलने योग्य था। 1480 तक समुद्र तल से पूरी तरह ऊपर था। बाद में प्राकृतिक आपदाओं के कारण यह पूरी तरह से उथले समुद्र में डूबा गया। जीएसआई इसे मानव निर्मित नहीं मानता।

हालांकि अमेरिका के साइंस चैनल ने साल 2017 में अपने कार्यक्रम में बताया था कि पुल मानव निर्मित है। पुल को बनाने के लिए पत्थरों को बाहर से लाया गया था। भाजपा और दूसरे दक्षिणपंथी दलों ने साइंस चैनल के उस कार्यक्रम की खूब सराहना की थी।