अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भारत के हिंदू दक्षिणपंथी संगठनों ने लंबा आंदोलन चलाया था। ‘राम जन्मभूमि आंदोलन’ मुख्य रूप से विश्व हिंदू परिषद (VHP) का आंदोलन था, जिसे बाद में भाजपा ने नेतृत्व दिया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने समर्थन। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपनी नई किताब ‘Pranab, My Father: A Daughter Remembers’ में लिखा है कि इस आंदोलन से उनके पिता बहुत विचलित थे। शर्मिष्ठा ने इस किताब में अधिकतर बातें अपने पिता की डायरी के हवाले से लिखी है।
6 दिसंबर, 1992 से पहले भी बाबरी पर चढ़े थे मंदिर समर्थक
मंदिर आंदोलन का एक पड़ाव भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा थी, जो 25 सितंबर 1990 को गुजरात के सोमनाथ से शुरू हुई थी और उत्तर प्रदेश के अयोध्या पहुंचना चाहती थी। इस बीच आडवाणी 10,000 किलोमीटर की यात्रा करने वाले थे। लेकिन अक्टूबर में आडवाणी के रथ को बिहार में रोक दिया गया। तत्कालीन लालू सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
रथयात्रा तो रुक गई लेकिन आडवाणी के समर्थक नहीं रुके और अयोध्या पहुंच गए। तब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। अयोध्या में इकट्ठा होने की अनुमति नहीं थी। लेकिन मंदिर समर्थक नहीं माने और बड़ी संख्या में पहुंचने लगे। राज्य सरकार ने लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखने के लिए फायरिंग के आदेश दिए, जिसमें कुछ लोगों की जान चली गई। हालांकि पुलिस की फायरिंग के बावजूद भी मंदिर समर्थक नहीं माने और बाबरी की गुंबद पर चढ़कर भगवा झंडा फहरा दिया।
आडवाणी की रथयात्रा को भविष्य के लिए बताया था खतरनाक!
आडवाणी की रथयात्रा को लेकर प्रणब मुखर्जी ने अपनी डायरी में लिखा था कि इससे भारतीय राजनीति हमेशा-हमेशा के लिए बदल जाएगी। उन्होंने लिखा था कि यह धार्मिक उत्साह एक दिन नियंत्रण से परे जा सकता है।
मुखर्जी ने विभाजन के दौर को याद करते और अफसोस जताया हुए लिखा कि “इतिहास से मिली सीख को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।” बता दें कि इस दौरान केंद्र में पीवी नरसिंह राव की सरकार थी। प्रणब मुखर्जी शुरुआत में मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए गए थे, उन्हें प्लानिंग कमीशन का डिप्टी चेयरपर्सन बनाया गया था। बाबरी विध्वंस के बाद प्रबण मुखर्जी मंत्री बनाए गए थे।
बाबरी बचाने के लिए पीएम को राष्ट्रपति शासन लगाने का दिया गया था सुझाव
1991 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में भाजपा की सरकार बनी थी। कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने थे। अक्टूबर 1992 में वीएचपी ने कारसेवा का आह्वान किया, जिसके तहत लाखों भक्त 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद के ठीक बगल में पूजा करने वाले थे।
शर्मिष्ठा अपनी किताब में लिखती हैं कि एक अनुभवी राजनेता के तौर पर पीएम राव को अंदाजा तो होगा कि मंदिर आंदोलन के राजनीतिक निहितार्थ क्या होंगे। पीएम राव को उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने का सुझाव दिया गया था। हालांकि राव ने कोई कार्रवाई नहीं की।
ऐसा उन्होंने क्यों किया इसे लेकर उनके जीवनीकार विनय सीतापति कई बातें लिखते हैं, जैसे कि राव गुप्त रूप से भाजपा, विहिप और आरएसएस के वरिष्ठ नेताओं के साथ बातचीत कर रहे थे। इन नेताओं ने उन्हें बाबरी को नुकसान न पहुंचाने का आदेश दिया था। हालांकि जाहिर है यह आश्वासन काम नहीं आया। दूसरा यह का कि कल्याण सिंह सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि मौजूदा ढांचे को नुकसान नहीं होगा।
बाबरी विध्वंस के बाद रोने लगे थे सीताराम केसरी
बाबरी विध्वंस के बाद पीएम राव के सहयोगी ही उनकी आलोचना करने लगे थे। विध्वंस की घटना के बाद हुई कैबिनेट मीटिंग में वरिष्ठ कांग्रेस नेता सीताराम केसरी रोने लगे थे। इन सब के बीच प्रणब ने सार्वजनिक तौर पर पीएम का बचाव किया था। शर्मिष्ठा लिखती हैं, “6 दिसंबर, 1992 को भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में उन्मादी कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया। शेष भारत के लिए यह समाचार सदमा और अविश्वास की तरह था। …बाबरी विध्वंस के बाद पीएम राव को अपने ही सहयोगियों से कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। हालांकि प्रणब ने सार्वजनिक रूप से पीएम का समर्थन किया। विध्वंस के बाद हुई कैबिनेट मीटिंग में सीताराम केसरी रोने लगे थे।”
शर्मिष्ठा के मुताबिक, प्रणब ने मीटिंग में कहा, “मेलोड्रामैटिक होने का कोई कारण नहीं है। आप सभी कैबिनेट के सदस्य हैं। आप में से कुछ CCPA (cabinet committee on political affairs) के भी मेंबर हैं। इसलिए जिम्मेदारी सभी की बनती है। यह केवल प्रधानमंत्री या गृह मंत्री का दायित्व नहीं हो सकता।”
प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब, ‘The Turbulent Years: 1980-1996’ में लिखा है कि राव के पास ज्यादा विकल्प नहीं थे। वह एक अल्पमत की सरकार चलाते हुए केवल इसलिए किसी राज्य की निर्वाचित सरकार को अनुच्छेद 356 के तहत बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन नहीं लगा सकते क्योंकि वहां लॉ एन्ड ऑर्डर खराब होने की आशंका थी।
डायरी में राव के लिए लिखी आलोचनात्मक टिप्पणी
प्रणब मुखर्जी ने कैबिनेट मीटिंग और अपनी किताब में तो पीएम राव का बचाव किया है। लेकिन शर्मिष्ठा के मुताबिक पूर्व राष्ट्रपति ने अपनी डायरी में प्रधानमंत्री के लिए आलोचनात्मक टिप्पणी लिखी है। बाबरी विध्वंस के अगले दिन 7 दिसंबर, 1992 को प्रणब मुखर्जी अपनी डायरी में लिखते हैं कि पीवी बुरी तरह विफल रहे। उन्होंने सही समय पर कड़े फैसले नहीं लिए। उन्हें इस स्थिति को संभालना चाहिए था। यह राजनीतिक विफलता राष्ट्र के लिए बहुत नुकसानदायक साबित होगी।
प्रणब ने इस मौके पर 1986 की घटना को याद करते हुए राजीव गांधी और अरुण नेहरू की भी मुखालफत की है। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा है, भाजपा-आरएसएस की कट्टरता को यह घिनौना काम करने के लिए राजीव गांधी और अरुण नेहरू की मूर्खता के कारण बढ़ावा मिला। उन्होंने ही 1986 में मंदिर का ताला खोला। एक तरफ राजीव गांधी और उनके साथियों ने और दूसरी तरफ आडवाणी-जोशी ने अपने संकीर्ण पक्षपातपूर्ण उद्देश्य के लिए कट्टर ताकतों को खुला छोड़ दिया।
बाबरी विध्वंस के व्यापक कुप्रभाव पर चिंता करते हुए मुखर्जी लिखते हैं अब सिर्फ भारत के मुसलमानों पर ही नहीं बल्कि बांग्लादेश और पाकिस्तान में हिंदुओं के जीवन और सम्मान पर भी खतरा मंडराएगा।
निजी बैठक में राव से पूछे कड़े सवाल
प्रणब मुखर्जी ने सार्वजनिक तौर पर तो राव का समर्थन किया था। लेकिन डायरी के मुताबिक एक निजी बैठक में उन्होंने राव के सामने अपनी स्पष्ट राय रखते हुए पूछा था कि वह ऐसा कैसे होने दे सकते हैं? क्या आपको कोई सीनियर और अनुभवी नेता नहीं मिला, जो इस मामले को संभाल सके या आपको सुझाव दे सके? क्या आपको जरा भी अंदाजा है कि इस घटना का देश के भीतर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या संदेश जाएगा? प्रणब आगे लिखते हैं कि पीएम राव उनके इन सवालों पर भावहीन चेहरा बनाए बैठे हुए थे। पूर्व राष्ट्रपति के मुताबिक, उन्हें प्रधानमंत्री के लिए दुख भी हो रहा था। लेकिन उन्होंने वही कहा जो उन्हें कहना था।