भाजपा शासित उत्तर प्रदेश के एक और शहर का नाम बदला जा सकता है। म्यूनिसिपल बोर्ड ने अलीगढ़ का नाम बदलकर हरिगढ़ करने का एक प्रस्ताव पास किया है। प्रस्ताव भाजपा के ही एक सदस्य ने पेश किया, जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। भाजपा नेता

पहले ही इलाहाबाद का नाम प्रयागराज, मुगलसराय का नाम दीनदयाल उपाध्याय नगर और फैजाबाद का नाम अयोध्या कर चुकी योगी सरकार के पास प्रस्ताव को अंतिम अनुमोदन के लिए भेजा गया है। भाजपा नेता ‘अलीगढ़’ नाम को इस्लाम और कथित बाहरी लोगों से जोड़ते हैं।

बीबीसी की एक रिपोर्ट में भाजपा नेता ने तर्क किया दिया कि “हरि के बच्चों को हरिगढ़ नहीं मिलेगा तो क्या सऊदी अरब के बच्चों को मिलेगा, क़ज़ाक़िस्तान को मिलेगा या पाकिस्तान को मिलेगा?” शहर के भाजपा मेयर प्रशांत सिंघल मानते हैं कि अलीगढ़ को हरिगढ़ करना, हिंदू धर्म की परंपरा को आगे बढ़ाना है।

हालांकि ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह पता चलता है कि उत्तर प्रदेश के इस शहर (अलीगढ़) का नाम मुगलों या किसी अन्य मुस्लिम शासकों ने नहीं, बल्कि हिंदू मराठा शासकों ने रखा था। एक सवाल यह भी है कि क्या अलीगढ़ को कभी हरिगढ़ के नाम से जाना जाता था? अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग के शिक्षक मोहम्मद सज्जाद स्पष्ट तौर पर लिखते हैं कि किसी भी दौर में अलीगढ़ को हरिगढ़ के नाम से नहीं जाना जाता था।

नया नहीं है हरिगढ़ की मांग

1960 या 1970 के दशक में कुछ हिंदू संगठनों ने अलीगढ़ का नाम बदलकर हरिगढ़ करने की मांग क्यों उठानी शुरू कर दी थी। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर नदीम रज़ावी फ्रंटलाइन में एक लेख में बताते हैं कि 1970 के दशक के अंत में जनसंघ (अब भाजपा) की अलीगढ़ इकाई के तत्कालीन सदस्यों ने अलीगढ़ का नाम बदलकर हरिगढ़ करने के लिए अभियान चलाया था। उस समय के विश्व हिंदू परिषद के दिग्गज देव सुमन गोयल ने दावा किया था कि “हरिगढ़ हिंदू पौराणिक कथाओं में वर्णित नाम है।”

1970 के दशक में अलीगढ़ निगम के आकाश विकास बाजार में एक नवनिर्मित मंदिर का नाम बदलकर “हरिगढ़ मंदिर” कर दिया गया था। हालांकि, तब इस आंदोलन को गति नहीं मिली। द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2021 में दोधपुर क्रॉसिंग पर एक अवैध अस्थायी “मंदिर” का नाम बदलकर “हिंदू पथवारी मंदिर, हरिगढ़” कर गूगल मैप पर अपलोड कर दिया गया था।

अब सवाल उठता है कि क्या इन दावों में कोई ऐतिहासिक सच्चाई है? क्या अलीगढ़ को कभी हरिगढ़ के नाम से जाना जाता था? क्या “हिन्दू पौराणिक कथाओं” में वास्तव में हरिगढ़ का जिक्र है? यदि नहीं, तो नगर का मूल नाम क्या था? यह भी जानना दिलचस्प है कि शहर को अलीगढ़ नाम कैसे मिला और क्या इसके नाम का इस्लाम के चौथे खलीफा अली के नाम से कोई संबंध है?

शहर का इतिहास

शहर का लिखित इतिहास 12वीं शताब्दी के अंत से ही शुरू होता है। इससे पहले के केवल पुरातात्विक साक्ष्य ही उपलब्ध हैं। दिल्ली सल्तनत से पहले शहर का नाम क्या था, इसे लेकर कुछ लोकप्रिय किंवदंतियां भी हैं।

पुरातात्विक साक्ष्यों से पता चलता है कि यह शहर महावीर जैन के अनुयायियों द्वारा बसा गया था। क्षेत्र से बड़ी संख्या में मिली जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां इस बात को प्रमाणित करती हैं। संभवतः इस क्षेत्र में कई जैन मंदिर थे, जो यहां रहने वाले लोगों की धार्मिक मान्यताओं की ओर इशारा करते हैं।

12वीं शताब्दी के अंत में दिल्ली के सुल्तानों के हाथों में जाने से पहले यह शहर राजपूतों के नियंत्रण में था। 13वीं शताब्दी के बाद से शहर को व्यावसायिक कारणों से पहचान मिलनी शुरू हुई। दिल्ली सल्तनत के दस्तावेजों में शहर को “कोल” या “कोइल” लिखा गया है। यह संभवतः एक पुराना नाम है जिसका उपयोग दिल्ली के सुल्तान और उसके अधिकारियों किया करते थे। “कोल” नाम की उत्पत्ति कैसे हुई यह अस्पष्ट है। कुछ प्राचीन ग्रंथों में कोल को एक जनजाति बताया गया। कहीं कोल नाम के स्थान या पर्वत का जिक्र है। ऋषियों और राक्षसों के लिए भी कोल शब्द का इस्तेमाल मिलता है।

कहा जाता है कि मुस्लिम आक्रमण से कुछ समय पहले कोल पर राजपूतों का कब्ज़ा था। 1194 ई. में कुतुब-उद-दीन ऐबक ने दिल्ली से कोल तक मार्च किया। कुतुब-उद-दीन ऐबक ने हिसाम-उद-दीन उलबक को कोल का पहला मुस्लिम गवर्नर नियुक्त किया।

सल्तनत काल के स्रोत (फारसी और गैर-फारसी दोनों) से पता चलता है कि बारां (बुलंदशहर) की तरह कोल भी शराब उत्पादन के लिए जाना जाता था। आसवन की प्रक्रिया (शराब बनाने का एक तरीका) संयोगवश भारत में तुर्कों द्वारा शुरू की गई थी। संभवतः इसी अवधि में गन्ना क्षेत्र के प्रमुख कृषि उत्पादों में से एक बना।

13वीं शताब्दी के मध्य तक यह शहर इतना महत्वपूर्ण हो गया कि 1252 ई. में भावी सुल्तान बलबन ने अपने गवर्नरशिप के दौरान वहां एक मीनार बनवाई जिसका शिलालेख अभी भी है। बलबन का शिलालेख पत्थर के एक टुकड़े पर उकेरा गया है, जिसके पीछे कुछ मूर्तिकला नक्काशी और फूल बनाए गए हैं। यह आमतौर पर जैन धार्मिक संरचनाओं में पाए जाते हैं।

जब 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा मीनार को ध्वस्त कर दिया गया था तब शिलालेख और नक्काशी के साथ पत्थर की पटिया सर सैयद (अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक) द्वारा एकत्र की गई थी। सर सैयद ने इसे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के “निजाम संग्रहालय” की दीवारों में से एक पर लगवाया था। 2019 में इसे यूनिवर्सिटी म्यूजियम में बदल दिया गया, जहां इसे अभी भी देखा जा सकता है।

सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के काल में इस शहर का उल्लेख “इक्ता कोल” के रूप में किया गया है। इक्ता एक प्रशासनिक इकाई थी। तुगलक के शासनकाल में भी इस स्थान को इसी नाम से जाना जाता रहा। 14वीं शताब्दी में जब इब्न बतूता ने मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल के दौरान भारत का दौरा किया, तब भी यह स्थान इसी नाम से लोकप्रिय था। इब्न बतूता ने कोल को “आम के पेड़ों से घिरा एक अच्छा शहर” कहा है। संभवतः इसीलिए इस शहर को उस काल में सब्ज़ाबाद या “हरा भरा देश” भी कहा जाने लगा।

इब्नबतूता जब इस शहर का जिक्र करते हैं तो वह क्षेत्र की अराजकता की ओर भी इशारा करता है। उन्होंने “कोल जलाली” का उल्लेख किया है जहां उनके कारवां को लूट लिया गया था और कुछ साथी यात्रियों ने डकैतों के हमले में अपनी जान गंवा दी थी। जलाली आज मुख्य शहर के पास एक बड़ा गांव है। वह स्थान जहां डकैतों ने लोगों को मार डाला था, वह स्थान भी अभी है।

मुगलों के अधीन कोल सूबा आगरा स्थित सरकार का मुख्यालय था। ऐसा उल्लेख अकबर काल के स्रोतों से भी मिलता है। अकबर और उनके बेटे, जहांगीर, दोनों शिकार के लिए कोल गए थे। जहांगीर ने अपने संस्मरण ‘तुजुक ए जहांगीरी’ में कोल के जंगल का उल्लेख किया है, जहां उन्होंने भेड़ियों का शिकार किया था।

18वीं सदी की शुरुआत में भी यह शहर कोल के नाम से जाना जाता था। फर्रुख सियार और मुहम्मद शाह के शासनकाल के दौरान साबित खान कोल का गवर्नर था। शहर पर एक छोटे किले से शासन किया जाता था।

मराठा कनेक्शन

18वीं शताब्दी की शुरुआत में जब साबित खान किले के गवर्नर थे, तो उनके नाम पर इसे साबितगढ़ के नाम से जाना जाने लगा, जिसका अर्थ है साबित खान का किला। आख़िरकार सूरजमल जाट के नेतृत्व में जाटों ने जयपुर के जयसिंह की मदद से 1753 में इस पर कब्ज़ा कर लिया।

अब इसका नाम बदलकर रामगढ़ कर दिया गया। अंत में किला एक बार फिर से बदल गया और मराठा कब्जे में आ गया। मराठों ने अपने गवर्नर नजफ अली खान के नाम पर किले का नाम बदलकर अलीगढ़ रख दिया। मराठों के अधीन अलीगढ़ के किले का एक बार फिर से पुनर्निर्माण किया गया। इस बार इसका निर्माण पत्थर से नहीं बल्कि मिट्टी से किया गया जिसे “फ्रांसीसी तकनीक” के रूप में जाना जाता है। इसकी तथाकथित अभेद्यता के बावजूद, 1803 में इस पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया।

अंग्रेजी बंधकों ने न केवल इसका नाम बरकरार रखा बल्कि प्रशासनिक कार्यक्षमता और आसानी के लिए इसे पूरे शहर का नाम कर दिया। शुरुआत में यह नाम अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के आसपास विकसित हुए “सिविल लाइन्स” क्षेत्र के लिए लोकप्रिय हुआ। इसी क्षेत्र में मराठों के फ्रांसीसी सैनिकों के पुराने बैरक भी थे।

अंग्रेजों ने जमीन पर कब्जा कर सर सैयद को उनके कॉलेज के लिए दिया था। 19वीं सदी के मध्य तक पूरे शहर का आधिकारिक तौर पर नाम बदलकर अलीगढ कर दिया गया और जल्द ही यह जिले के नाम के रूप में भी उभरा। 19वीं सदी के अंत तक, यह न केवल शहर, बल्कि जिले का भी निर्विवाद नाम था। कोल नाम शहर के मध्य भाग में सिमट गया, जो अब एक तहसील है।