प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने शुक्रवार (25 नवंबर) को 17वीं शताब्दी के महान योद्धा लचित बोड़फुकन (400th Birth Anniversary of Lachit Borphukan) की 400वीं जयंती पर साल भर से आयोजित कार्यक्रम के समापन समारोह को संबोधित किया है। विज्ञान भवन में आयोजित समापन समारोह को प्रधानमंत्री मोदी ने ऐतिहासिक अवसर बताया है। बता दें कि असम सरकार 23, 24 और 25 नवंबर को नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर पर असम के प्रतिष्ठित नायक लचित बोड़फुकन की 400वीं जयंती मनाने का आयोजिन किया।
इस मौके पर पीएम मोदी अहोम जनरल लाचित बरफूकन की 400वीं जयंती के अवसर पर उनपर लिखी किताब का विमोचन किया। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा, राज्यपाल जगदीश मुखी, केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल और अन्य ने समारोह में भाग लिया और उनको श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस मौके पर कहा, “हमें वीर लाचित की 400वीं जन्म जयंती मनाने का सौभाग्य उस कालखंड में मिला है जब देश अपनी आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। यह ऐतिहासिक महोत्सव असम के इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है।”
पीएम मोदी पहले भी बोड़फुकन की तारीफ कर चुके हैं। तब उन्होंने इस योद्धा को भारत की “आत्मनिर्भर सेना का प्रतीक” कहा था। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने फरवरी 2022 में बोड़फुकन की 400वीं जयंती वर्ष समारोह का असम के जोरहाट में उद्घाटन किया था।
सराईघाट युद्ध: मुगलों को दी थी करारी शिकस्त
लचित बोड़फुकन अहोम साम्राज्य की शाही सेना के जनरल थे, उन्होंने 1671 में सराईघाट की लड़ाई (Battle of Saraighat) में मुगलों को करारी शिकस्त दी थी। सराईघाट का युद्ध गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र (Brahmaputra) नदी के तट पर लड़ा गया था।
सराईघाट युद्ध के दौरान लचित बुरी तरह बीमार थे, बावजूद उन्होंने अपनी सेना का नेतृत्व किया। लाचित का नेतृत्व पाकर सैनिकों में नए साहस और आशा का संचार हुआ था।
उस लड़ाई ने साबित किया था कि लचित बोड़फुकन एक कुशल रणनीतिकार हैं, जिनकी तुलना भारत के किसी भी हिस्से के महान सेनापतियों से की जा सकती है।
उस लड़ाई को नदी पर लड़ी गई सबसे बड़ी नौसैनिक युद्ध रूप में भी याद किया जाता है। यही वजह है कि लचित बोड़फुकन को भारतीय नौसेना की शक्ति का प्रेरणाश्रोत माना जाता है।
भारत सरकार की राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (National Defence Academy) के सबसे श्रेष्ठ कैडेट को लचित बोड़फुकन स्वर्ण पदक (The Lachit Borphukan Gold Medal) दिया जाता है। इस पदक को देने की शुरुआत साल 1999 में हुई थी।
महान योद्धा और राजनेता मोमाई तमुली बोरबरुआ के बेटे लाचित बोड़फुकन का जन्म 24 नवंबर, 1622 को हुआ था। वर्तमान में इस तारीख को असम के निवासी लचित दिवस के रूप में मनाते हैं। लचित बोड़फुकन को पूर्वोत्तर का शिवाजी भी कहा जाता है। उनका निधन 25 अप्रैल, 1672 को हुआ था।
भाजपा का एजेंडा?
भारतीय जनता पार्टी यह दावा करती रही है कि वह गुमनाम नायकों को उचित सम्मान दिलाने का काम कर रही है। ऐसा देखा गया है कि भाजपा इतिहास के उन्हीं नायकों को अधिक महत्व देती है, जिन्होंने मुगलों से टक्कर ली या उन्हें हराया। लचित बोड़फुकन के मामले में भी भाजपा का यही नजरिया है।
पिछले दिनों ही असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था कि इतिहासकारों ने औरंगजेब को हमेशा महान शासक के रूप में चित्रित किया। अगर वह इतना ही महान था तो उसने पूर्वोत्तर और दक्षिणी हिस्सों को क्यों नहीं जीत लिया? हमारे इतिहासकारों ने हमें पराजित होने वाले के रूप में पेश किया। हमें इतिहास को फिर से लिखएने की जरूरत है क्योंकि मुगलों ने भारत के केवल एक हिस्से पर शासन किया, पूरे देश पर नहीं।