द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत के साथ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट ठप हो गया था। परिणामस्वरूप पूर्व निर्धारित MCC (Marylebone Cricket Club) का भारत दौरा और भारत का इंग्लैंड दौरा रद्द हो गया। हालांकि पेंटांगुलर जैसे घरेलू क्रिकेट टूर्नामेंट जारी रहे। 1940 में पेंटेंगुलर सीजन जैसे-जैसे नजदीक आ रहा था, उसे लेकर बहस तेज हो रही थी। ध्यान रहे कि ये वही दौर था, जब देश गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम के आखिरी चरण की तैयारी कर रहा था।
टूर्नामेंट विरोधी आन्दोलन
महात्मा गांधी ने बॉम्बे के इस मशहूर क्रिकेट टूर्नमेंट का कड़ा विरोध किया था। दरअसल इस टूर्नामेंट में खेलने वाली पांच टीमों में से अधिकतर धार्मिक पहचान पर बनी हुई थीं, जैसे- हिंदू क्लब, पारसी इलेवन, मुस्लिम क्लब। इसके अलावा यूरोपीय इलेवन नाम की टीम भी इस टूर्नामेंट में खेलती थी। उस वक्त बंबई में इस चर्चित वार्षिक क्रिकेट टूर्नमेंट का रोमांच चरम पर था। लोग बड़ी तादाद में टूर्नमेंट से पहले आयोजित होने वाले ट्रायल मैचों को देखने पहुंच रहे थे।
हालांकि देश में एक वर्ग ऐसा भी था, जो इस टूर्नामेंट का विरोध कर रहा था। उन दिनों अखबारों में पेंटांगुलर टूर्नामेंट के पक्ष और विपक्ष में तर्कों की बाढ़ आयी हुई थी।
भारतीय क्रिकेट टीम के पहले टेस्ट क्रिकेट मैचों के कप्तान कोट्टेरी कनकैया नायडू ने टूर्नामेंट का विरोध करते हुए कहा था, ”देश आज उथल-पुथल में है। हमारे नेता जेल में हैं। प्रधानमंत्री, मंत्री और विधानमंडल के सदस्य, मतदाताओं के प्रतिनिधि कारावास की सजा काट रहे हैं। ऐसे समय में हम सभी को सांप्रदायिक सद्भाव और स्वतंत्रता के बारे में सोचना चाहिए। हमें इस समय पेंटांगुलर क्रिकेट में शामिल नहीं होना चाहिए। हम खेल के बारे में कैसे सोच सकते हैं और क्रिकेट कैसे खेल सकते हैं, जब हमारे भरोसेमंद लोग सलाखों के पीछे डाले जा रहे हैं।”
इस उथल-पुथल के बीच दिसंबर 1940 में गांधी वर्धा पहुंचे थे। वहीं उनसे मिलने हिंदू जिमखाना (क्रिकेट क्लब) का तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल पहुंचा, जिसमें क्लब के अध्यक्ष एसए शेटे, उपाध्यक्ष एमएम अमर्सी और प्रबंध समिति के सदस्य जमनादास पीतांबर शामिल थे। यह मुलाकात 6 दिसंबर 1940 को हुई थी। टूर्नामेंट की शुरुआत 14 दिसंबर से होनी थी।
गांधी ने कम्युनल क्रिकेट का किया विरोध
प्रतिनिधिमंडल द्वारा मांगी गयी राय पर गांधी ने कहा था, ”…मेरी अपनी सहानुभूति पूरी तरह से उन लोगों के साथ है, जो इन मैचों को रोकना चाहते हैं। आज जब युद्ध के कारण शोक का माहौल है, यूरोप में स्थिरता और उनकी सभ्यता पर खतरा मंडरा रहा है, जिसकी चपेट में एशिया भी है… मैं स्वाभाविक रूप से आगामी मैच को रोकने के लिए जारी आंदोलन का समर्थन करूंगा।”
धर्म के आधार पर टीम के विभाजन के मुद्दे पर अपनी राय रखते हुए गांधी कहते हैं, ”मैं चाहता हूं कि बंबई की जनता अपनी खेल संहिता में संशोधन करे और उससे साम्प्रदायिकता को मिटा दे। मैं कॉलेजों और संस्थानों के बीच के खेल प्रतिस्पर्धा को समझ सकता हूं, लेकिन हिंदू, पारसी, मुस्लिम के बीच मुकाबला के कारणों को मैं कभी नहीं समझ पाया। खेल की भाषा और खेल के तौर-तरीकों में इस तरह के विभाजनों को वर्जित माना जाना चाहिए। क्या हमारे जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं हो सकता है जिससे सांप्रदायिक भावना अछूता रहे?
इसलिए मैं चाहता हूं कि जिन लोगों का इस आंदोलन से कोई लेना-देना है, वे मैच को रोक दें। साथ इस मुद्दे (धर्म के आधार बनी टीम का मुद्दा) को व्यापक बनाएं। इस पर उच्चतम दृष्टिकोण से विचार करते हुए खेल जगत से सांप्रदायिक कलंक को दूर करने का निर्णय लें।”
गांधी की इस टिप्पणी को प्रेस ने लपक लिया। 7 दिसंबर 1940 के टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले पन्ने पर मोटे अक्षरों में छपा था, ‘मिस्टर गांधी अगेंस्ट पेंटांगुलर’