Same Sex Marriage: सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली अर्जियों पर सुनवाई कर रही है। केंद्र सरकार लगातार दलील दे रही है कि इस मामले को संसद पर छोड़ देना चाहिए। इसी बीच केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू (Kiren Rijiju) ने कहा है कि यह मामला सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच का है ही नहीं।

इससे पहले 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटिर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि यदि समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा मिल गया तो ऐसे 160 कानून हैं, जिनमें बदलाव करने होंगे।

किरण रिजिजू ने क्या कहा?

किरण रिजिजू ने कहा कि यह ऐसा मामला है जो देश के नागरिकों से जुड़ा है। यह लोगों की इच्छा से जुड़ा सवाल है और जब लोगों की इच्छा की बात आती है तो संसद से लेकर विधानसभा ऐसे फोरम हैं, जहां प्रतिनिधत्व के रूप में लोगों की इच्छा दिखाई देती है। यदि पांच बुद्धिमान लोग यह तय कर लें कि कोई चीज उनके हिसाब से सही है तो मैं उस पर कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं करूंगा। लेकिन आप किसी चीज को लोगों पर थोप नहीं सकते हैं।

रिजिजू ने साफ कहा कि सुप्रीम कोर्ट डायरेक्शन तो दे सकता है, लेकिन जब किसी ऐसे मसले की बात आती है जो देश के प्रत्येक नागरिक से जुड़ा है तब कोर्ट उचित फोरम नहीं है जो कोई फैसला ले सके।

केंद्र सरकार की पहले दिन से एक ही दलील

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान बेंच सेम सेक्स मैरिज के मामले पर 18 अप्रैल से लगातार सुनवाई कर रही है। केंद्र सरकार पहले दिन से ही कह रही है कि यह एक ऐसा मसला है जिस पर कोई निर्णय संसद ही ले सकती है और लगातार अपने दलील पर अड़ी है।

क्या 160 कानून बदलेगा सुप्रीम कोर्ट?

26 अप्रैल को भी केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि यदि सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता दे दी जाए तो तमाम अड़चनें पैदा हो सकती हैं और आखिरकार संसद को ही हस्तक्षेप करना होगा। इसलिए बेहतर है कि इस मसले को यहीं छोड़ दिया जाए। SG तुषार मेहता ने कहा कि यदि शादी की परिभाषा बदली गई तो सिर्फ स्पेशल मैरिज एक्ट ही नहीं बल्कि 160 कानून हैं, जिनमें बदलाव करने होंगे।

SG मेहता ने सवाल किया कि क्या ऐसी परिस्थिति में सुप्रीम कोर्ट ‘सुपर संसद’ बनकर 160 कानून में संशोधन करेगा? मेहता ने सेक्सुअल ओरियंटेशन की परिभाषा की जटिलता का भी जिक्र किया और कहा कि रुचि के आधार पर 72 अलग-अलग ग्रुप हैं।

क्या हैं कानूनी अड़चन?

सुप्रीम कोर्ट जिन 20 अर्जियों पर सुनवाई कर रहा है वो समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा देने से लेकर, अडॉप्शन, वसीयत और उत्तराधिकार से जुड़ी हैं। इन अर्जियों में कहा गया है कि चूंकि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं है, ऐसे में समलैंगिक कपल एडॉप्शन से लेकर टैक्स बेनिफिट जैसी तमाम सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं।

उदाहरण से समझिये

उदाहरण के तौर एक याचिका ‘अंबूरी राय बनाम भारत सरकार’ है। इस याचिका में एडॉप्शन रेगुलेशन एक्ट के सेक्शन 5(2)A और 5(3) को असंवैधानिक करार देने की मांग की गई है। सेक्शन 5(2)A में कहा गया है कि यदि कोई कपल बच्चा गोद लेना चाहता है तो दोनों की सहमति अनिवार्य है और कानूनी तौर पर शादीशुदा होना जरूरी है। साथ ही कोई सिंगल पुरुष किसी लड़की को गोद नहीं ले सकता है। वहीं, सेक्शन 5(3) में कहा गया है कि कोई भी कपल तब तक बच्चा गोद नहीं ले सकता है जब तक दोनों की कम से कम 2 साल की स्थिर शादीशुदा जिंदगी ना हो।

केंद्र सरकार सुनवाई के दौरान लगातार ऐसे ही तमाम कानूनों का हवाला दे रही है, जिनमें समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा मिलने के बाद बदलाव करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट का क्या है रुख?

jहालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही दिन साफ कर दिया था कि वह यह देखेगी कि क्या स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जा सकती है। वह इस मसले से जुड़े कानूनी पहलुओं में हस्तक्षेप नहीं करेगी।